कई पीढ़ियों से ग्रामीण परंपरा नहीं भूले, बुढ़वा मंगल को गांव में नहीं जलते चूल्हे
साधु के उपाय से ग्रामीणों की समस्या का हुआ था समाधान हनुमान जी को गुड़ घी,गक्कड़ के मलीदा का लगाते हैं भोग।
बेलखाडू। संस्कारधानी जबलपुर में संस्कृति और परम्पराओं की विविधता ने इसे अलग पहचान दी है। अनूठी परम्परा का केंद्र बने जबलपुर के पनागर तहसील अंतर्गत आने वाले ग्राम बघोड़ा में ग्रामीण कई पीढ़ियों से एक अनूठी परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं। इस गांव में बुढ़वा मंगल के दिन ग्रामीण चूल्हा नहीं जलाते हैं। इसकी शुरुआत करने वाले भले ही नहीं हो,लेकिन इसका निर्वाह उनके परिजन करते चले आ रहे हैं,सामूहिक एकता का प्रतीक बनी इस परंपरा ने इससे कई गांव के लोगों को प्रेरित भी किया है ।
जबलपुर के कटंगी मार्ग में बेलखाडू के समीप ग्राम बंघोड़ा गांव में जहां की जनसंख्या करीब 1200 है इस गांव में एक अनोखी परंपरा जो सैकड़ो सालों से निभाई जा रही है वैशाख माह के पहले मंगलवार को इस गांव के लोग पूरे दिन घरों के अंदर चूल्हा नहीं जलाते सभी लोग गांव में पेड़ मंदिर आदि जगहों पर इकट्ठे होकर खाना बाहर बना कर खाते इस दिन अगर सुबह लोग उठते हैं, तो चाय भी घर के बाहर चूल्हा जलाकर चाय बनाते हैं और इस दिन को गांव के लोग बुढ़वा मंगल कहते हैं
कैसे शुरू हुई है यह परंपरा
गांव के बुजुर्ग नन्है सींग बैधराज हरनाम सिंह ठाकुर चन्नू पटेल बताते हैं कि यह परंपरा सैकड़ो सालों पुरानी और हम भी अपने पापा दादा से सुने हुए हैं की कोई समय था जब गांव में कोई बीमारी फैली हुई थी जिससे गांव में रहने वाले लोगों को एवं पशुओं को खतरा बना हुआ था वैशाख माह का पहला मंगलवार का दिन था उसी दिन गांव में एक साधु महात्मा जी आए थे और उन्होंने गांव वालों को बुलाकर बताया था कि अगर बीमारी से निजात पाना चाहते हो तो वैशाख माह के पहले मंगलवार को घर के अंदर चूल्हा नहीं जलाना है, सभी लोगों को घर के बाहर भोजन बनाकर खाना है, तब से यह परंपरा चलती आ रही है और गांव के लोग इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं ताकि गांव में सुख शांति बनी रहे सभी लोग खुशहाल रहें।
क्या बनाते हैं खाने में
आज के दिन बघोड़ा ग्राम के लोग बच्चे युवा बुजुर्ग महिलाएं पुरुष सभी लोग गांव के बाहर एकत्रित होकर खाना खाते हैं और भी दूसरे गांव के जान पहचान हुआ, रिश्तेदार लोग पहुंच कर खाना खाते हैं खाने में बाटी भरता चूरमा आदि चीज बनाई जाती हैं खाना बनने के बाद पहले भगवान को चढ़ाकर पूजा अर्चन किया जाता है जिसके बाद सभी लोग खाना खाते हैं
कोई भी उत्सव हो घर के अंदर नहीं जलता चूल्हा
ग्रामीणों ने बताया कि इस दिन अगर चाहे कोई त्यौहार हो चाहे किसी के यहां कोई उत्सव हो शादी विवाह हो आदि कोई भी कार्यक्रम हो लेकिन घर के अंदर चूल्हा नहीं चलता है और ना ही भोजन बनता है अगर कोई कार्यक्रम होता भी है तो सभी लोग घर के बाहर बना हुआ ही भोजन करते हैं या तो शादी विवाह है आदि कार्यक्रम हुए तो उस दिन को छोड़कर आगे पीछे के दिनों में उत्सव मना लिया जाता है।