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10 महाविद्या की साधना का महापर्व गुप्त नवरात्रि- जिसकी अनुकंपा से चतुर्मुख ब्रह्मा सृष्टि: ज्योतिषाचार्य पंडित लोकेश व्यास

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WhatsApp Image 2025 01 30 at 03.09.27रचना में समर्थ होते हैं विष्णु जिसके कृपा
कटाक्ष से विश्व का पालन करने में समर्थ होते हैं और रुद्र जिसके बल से विश्व संघार करने में समर्थ होते हैं उन्हें 10 महाविद्याओं का पर्व गुप्त नवरात्रि इस वर्ष 20 जनवरी से 6 फ़रवरी तक है गुप्त नवरात्रि शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होगी गुप्त नवरात्रि की महिमा ऋषि श्रृंगी के द्वारा लोगों को प्राप्त हुई इस नवरात्रि की साधना को गुप्त रखा जाता है इसलिए इसे गुप्त नवरात्रि कहते हैं साल में चार नवरात्र माघ चेत
आषाढ़ और अश्विन में होते हैं माघ और आषाढ़ गुप्त नवरात्रि कहते हैं इनमें 10 महाविद्याओं की पूजा का विधान होता है मां काली तारा त्रिपुर सुंदरी भुवनेश्वरी छिन्नमस्ता त्रिपुर भैरवी धूमावती बगलामुखी मातंगी और कमला देवी दस महाविद्या हैं जीवन में कठिन से कठिन कार्य गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं की साधना से संपूर्ण हो जाते हैं शास्त्रों में शक्ति शब्द के अलग-अलग अर्थ किए गए हैं तांत्रिक लोग इसी को पराशक्ति कहते हैं वेद शास्त्र उपनिषद पुराण आदि में शक्ति शब्द का प्रयोग पराशक्ति ईश्वरी मूल प्रकृति आदि नाम से निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म के लिए भी किया गया है 10 महाविद्याओं की रहस्य को जानकर और आचार्य के बताए हुए मार्ग के अनुसार उपासना करने पर सभी भक्तों को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है इसीलिए श्रद्धापूर्वक और प्रेम पूर्वक विज्ञान आनंद स्वरूप महाशक्ति भगवती देवी की उपासना गुप्त नवरात्रि में की जाती है साथ-साथ उस पराशक्ति से ब्रह्मा विष्णु और रुद्र उत्पन्न हुए हैं उसी से सब मरुधरा गंधर्व अप्सराय उत्पन्न हुए हैं ऋग्वेद में भगवती रहती हैं मैं रूद्र वासु आदित्य और विश्व देवों के रूप में विचरती हूं वैसे ही वरुण इंद्र अग्नि और अश्वनी कुमारी के रूप को धारण भी करती हूं वह पराशक्ति सर्व समर्थ से युक्त है क्योंकि यह प्रत्यक्ष भी महसूस किया जाता है बंगाल में श्री रामकृष्ण परमहंस ने मां भगवती शक्ति के रूप में ब्रह्मा की उपासना की थी वह परमेश्वर को मां तारा काली आदि नाम से पुकारा करते थे ब्रह्मा की महाशक्ति के रूप में श्रद्धा प्रेम निष्काम भाव से उपासना करने से पर ब्रह्म परमात्मा की शक्ति प्राप्त हो सकती है 10 महाविद्याओं को ऋषियों ने तीन भागों में विभक्त किया है वही तीन शक्तियों महाकाली महालक्ष्मी महा सरस्वती नाम से प्रसिद्ध है तमोगुण प्रधान महाकाली कृष्ण वर्ण है वहीं प्रलय काल है रजोगुण प्रधान महालक्ष्मी रक्त वर्ण है यही सृष्टि कल है सत्य गुण प्रधान मा सरस्वती श्वेत वर्ण है यही मुक्ति कल है गुप्त नवरात्रि में महाविद्याओं की पूजा की जाती है लेकिन इनमें भी कोई महाविद्या है कोई सिद्ध विद्या है कोई श्री विद्या है और कोई विद्या ही है अतएव यह विद्याएं महा रात्री कालरात्रि मोह रात्रि दारुण रात्रि नाम से प्रसिद्ध है पृथ्वी जल अग्नि वायु और आकाश तथा मन बुद्धि और अहंकार ऐसे आठ प्रकार से विभक्त हुई मानव प्रकृति है यह आठ प्रकार भेद वाली तो अपराहै अर्थात मानव जड़ प्रकृति है और इससे दूसरी को परा अर्थात चेतन प्रकृति जानकर जिसने संपूर्ण जगत को धारण किया है इन महाविद्याओं का पूजन होता है मनवांछित फल प्राप्त करने के लिए साधक को लगातार सच्चे मन से इस बात की भावना करने से की यह सारा विश्व भगवती का ही रूप है मेरा मन और इंद्रियों के सारे विषय भी जगत जननी के ही रूप है उपासक की स्थिति वास्तव में ऐसी हो जाती है कि वह प्रत्येक वस्तु में जगदंबा का दर्शन करने लगता है तांत्रिक विधि के उपासक अनेक प्रकार के गुप्त मंत्रों तथा यंत्रों कलश आदि पूजा के पात्र मुद्राओं एवं न्यास आदि का प्रयोग गुप्त नवरात्रि में करते हैं इन सब साधनों एवं उपकरणों से इस भावना की पुष्टि तथा समर्थन होता है कि भगवती ही भिन्न-भिन्न रूपों में उसके मन और शरीर उसकी खास-खास इंद्रियों अथवा अवयवों तथा उसकी इच्छाओं तथा अभीष्ट विषयों पर शासन करती है पूजा के क्रियाकलाप के मूल में दर्शन दार्शनिक सिद्धांत वही है जिसकी स्वयं भगवान ने व्याख्या की है गुप्त नवरात्रि में साधक आकार मात्र की विभिन्न देवियों के रूप में पूजा करता है इसके अंतर व शक्ति की छोटी स्वरूपों से ऊपर उठकर बड़े स्वरूपों को पकड़ता है और आगे चलकर उस परम शक्ति की उपासना करने लगता है जो इन सारी विशेष शक्तियों की जननी है और जो इन इन सारी शक्तियों में तथा स्वयं साधक के अंदर तथा उसके रूप में प्रकट होते हैं प्रकट हैं और अंत में जाकर उसे महाशक्ति के साथ वह एक हो जाता है इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है की मां की साधना करने पर शरीर के भीतरी अवयवों के सुख स्पंदन प्रवृत्तियां तथा इच्छाओं और उनसे भी ऊंची मानसिक अवस्थाओं का खास खास शक्तियों एवं देवी देवियों के रूप में विस्तृत एवं सर्वांग पूर्ण वर्णन मिल जाता है

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