स्वाभिमान के लिये समर्पित रहा देवी अहिल्या का जीवन : उत्तम बैनर्जी, त्रिजन्मशताब्दी के अवसर पर व्याख्यान

कटनी। संसार में कुछ ऐसी विभूतियाँ भी जन्मी हैं ,जो अवतारी तो नहीं थीं, लेकिन उनका व्यक्तित्व और कृतित्व अवतारी शक्तियों के समतुल्य रहा ।इंदौर की महारानी देवि अहिल्याबाई का व्यक्तित्व ऐसा ही था।उन्हे “देवि” किसी दरबारी कवि ने नहीं कहा, अपितु जन सामान्य ने कहकर पुकारा उनका सादगीपूर्ण जीवन, धर्म, संस्कृति और राष्ट्र के लिये समर्पण जीवन, उनके द्वारा किये गये जन कल्याणकारी कार्य, विशेषकर किसानों और महिलाओं के हित में लिये गये, उनके निर्णयों ने उनकी ओर पूरे भारत के शासकों का ध्यान आकर्षित किया ।यह उनके व्यक्तित्व की विशेषता ही है कि आज लगभग तीन सौ वर्ष बीत जाने के बाद भी वे जन सामान्य में सम्मान और श्रृद्धा का केन्द्र हैं।
वे सही मायने में अजातशत्रु थीं। उनके जीवन के किसी प्रसंग पर, कोई नई नीति बनाने या निर्णय लेने के औचित्य पर अथवा उनकी कार्यशैली पर कभी किसी ने कोई नकारात्मक टिप्पणी नहीं की। न उनके जीवनकाल में और उनके बाद इतिहास के शोध कर्ताओं ने । वे अपने जीवन में भी एक आदर्श थीं और आज भी सबके लिये आदर्श हैं!
ब्रिटिश इतिहासकार, जॉन कीस ने तो उन्हें “द फिलॉसफर क्वीन” की उपाधि दी है!
यदि भारत की शासक महिलाओं के बारे में विचार करें। सबसे महत्वपूर्ण बात है विषम और विपरीत परिस्थतियों को चीरकर, न केवल अपने राज्य क्षेत्र में अपितु पूरे भारत में उन्होंने साँस्कृतिक पुनर्जागरण का अभियान चलाया ।” उक्ताशय के उद्गार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कटनी संपर्क विभाग द्वारा आयोजित पुण्य श्लोका अहिल्यादेवी के सामाजिक कार्य और पंच परिवर्तन विषय पर मुख्य वक्ता की आसंदी से उत्तम बनर्जी प्रांत कार्यवाह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ महाकौशल प्रांत ने रखे।
आपने आगे कहा कि अहिल्यादेवी व्यवहार में जितनी सरल और शांत थीं, संकल्पपूर्ति केलिये उतनी ही कठोर ।वे बहुत विचार करके निर्णय लेतीं थीं और एक बार निर्णय लेकर फिर कभी पीछे नहीं हटतीं थीं!उन्होने भारत के प्रत्येक भाग और प्रत्येक समाज वर्ग के व्यक्ति के हित को ध्यान में रखकर काम किये ।इन कार्यों पर जितना धन उन्होने व्यय किया उतना किसी रियासत ने नहीं किया,फिर भी उनका राजकोष समृद्ध था ! उनकी विचारशीलता बहुत व्यापक थी।पूरा भारत राष्ट्र और सनातन विचार उनके चिंतन में समाया था । वे बहुत दूरदर्शी थीं। भविष्य का भारत कैसे प्रतिष्ठित हो, आने वाली पीढ़ी और समाज कैसे सुसंस्कृत हो और कैसे भारत राष्ट्र का साँस्कृतिक गौरव हो। उन्होंने महिलाओं को संपत्ति का अधिकार दिया।इसके साथ उन्होंने विधवा विवाह को मान्यता थी ।
उन्होने अपने राज्य को भगवान शिव की धरोहर मानतीं थीं और उनके कार्य शिव को ही समर्पित होते थे । वे राज्य मुद्रा पर स्वयं हस्ताक्षर नहीं करती थीं अपितु “श्रीशंकर” की मुहर लगाती थीं। उनकी मुद्रा पर भी शिवलिंग नंदी और बेलपत्र होते थे !
उन्होंने पूरे भारत राष्ट्र के साँस्कृतिक पुनर्जागरण का अभियान चलाया । उत्तर में बद्रीनाथ तो दक्षिण में रामेश्वरम, मंदिरों का जीर्णोद्धार किया । उन्होंने भारत के लगभग एक सौ तीस स्थानों पर मंदिर धर्मशाला, अन्नक्षेत्र, प्रवचन कक्ष और संत निवास बनवाये।
उनके सामने आने वाली विषमताएँ भी असाधारण थीं । सुख और दुख दोनों साथ चले । फिर भी उनकी संकल्पशीलता स्थिर रही । उन्होंने पहले पति की मृत्यु देखी, फिर पुत्र की, फिर अपने दौहित्र की और फिर दामाद की । दामाद की चिता पर बेटी को सती होते हुये भी देखा । फिर भी वे स्थिर रहीं । प्रत्येक विपत्ति से अधिक सुदृढ होकर निकलीं । वे जीवन की प्रत्येक भूमिका में उत्कृष्ट रहीं। एक बेटी के रूप में, एक बहू के रूप में, एक माँ के रूप में, एक शासक के रूप में और एक यौद्धा के रूपमें भी आदर्श रहीं । इन सभी भूमिकाओं में उनका चिंतन, दूरदर्शिता और व्यवहारिक यथार्थता की झलक है। उनके कृतित्व में भारत के सांस्कृतिक गौरव की पुनर्प्रतिष्ठा और भावी पीढ़ी के निर्माण केलिये चिन्तन के सूत्र भी है । उनका पूरा जीवन कर्त्तव्य पथ पर चलते हुये राष्ट्र और सनातन संस्कृति के लिये समर्पित रहा ।
उल्लेखनीय है कि यह वर्ष पूरा भारत वर्ष अहिल्या देवी जी जन्म त्रिशताब्दी वर्ष मना रहा है।
मंच पर मुख्य अतिथि के रूप से सत्यानंद योग केंद्र के अध्यक्ष पवन मित्तल , विभाग संघचालक विपिन तिवारी और जिला संघ चालक डॉक्टर अमित साहू उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन भगवान दास सिंह राठौर, अतिथि परिचय मोनू शर्मा,संजय गुप्ताऔर आभार प्रदर्शन मुकेश चंदेरिया ने किया। कार्यक्रम में महाकौशल प्रांत सह संपर्क प्रमुख उदय परांजपे, सेवा भारती संगठन मंत्री महेश सोनी,विभाग संपर्क प्रमुख सुरेंद्र सिंह सहित बड़ी संख्या में नगर के गणमान्य नागरिक जन और मातृशक्ति उपस्थित रही।

