
एक महिला की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे एक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर दावा किया है कि अप्रैल 2001 में घटना के समय वह किशोर था।
सुप्रीम कोर्ट व्यक्ति की उस याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें उसने कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा उसे दोषी ठहराने और सजा देने के फैसले को बरकरार रखने को चुनौती दी है। इस व्यक्ति ने अपने वकील द्वारा दायर याचिका में पहली बार किशोरावस्था का मुद्दा उठाया है। उसने यह मुद्दा इस साल 19 फरवरी को ओडिशा के भद्रक जिला स्थित स्कूल के प्रधानाध्यापक द्वारा जारी प्रमाण पत्र के आधार पर उठाया है।
जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड और जस्टिस एम.आर. शाह की बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता के प्रमाण पत्र में अंकों और शब्दों में दर्ज जन्मतिथि में निश्चित तौर पर विसंगति है। सुप्रीम कोर्ट ने भद्रक जिले के सत्र न्यायालय को निर्देश दिया है कि जिस अवधि को लेकर सवाल उठाया गया है, उस समय के मूल स्कूल रिकॉर्ड और सत्यापित छाया प्रति स्कूल से प्राप्त कर अदालत को उपलब्ध कराए।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह पारित आदेश में कहा कि सत्र न्यायाधीश स्कूल के प्रधानाध्यापक का बयान दर्ज करें और उसे इस अदालत को भेजें। सत्र न्यायाधीश प्रधानाध्यापक से यह भी प्रमाणित कराएं कि 19 फरवरी 2021 को जारी प्रमाण पत्र क्या उनके द्वारा जारी किया गया, अगर जारी किया गया तो किस आधार पर जारी किया गया है?
बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता के स्कूल रिकॉर्ड में जन्म तिथि अंकों में 20 मई, 1984 दर्ज की गई है, जबकि शब्दों में 20 जुलाई, 1984 दर्ज है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निश्चित तौर पर उपरोक्त में शब्दों और अंकों में दर्ज जन्मतिथि में अंतर है। हालांकि, याचिका में अनुरोध किया गया है कि इस मामले में किसी भी दृष्टि से घटना के दिन (17 अप्रैल, 2001) को याचिकाकर्ता किशोर होगा।
बेंच ने सत्र न्यायाधीश को अपनी रिपोर्ट दस्तावेजों और प्रधानाध्यापक के बयान के साथ आदेश की प्रति मिलने के चार हफ्ते में सौंपने को कहा है। इसके साथ ही अदालत ने मामले की सुनवाई 20 सितंबर तक के लिए टाल दी है।
उल्लेखनीय है कि इस व्यक्ति को निचली अदालत ने मार्च 2004 में भारतीय दंड संहिता की धारा-302 (हत्या) के तहत दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई गई थी। हाईकोर्ट ने पिछले साल सितंबर में उसकी याचिका खारिज करते हुए सजा बरकरार रखी थी।