सरकारी नौकरी के लिए 17 साल तक कोर्ट में लड़ा केस : मुकदमा जीतने के बाद थम गई सांसे…. पिता का मृत्यु प्रमाण पत्र लेकर शासकीय कार्यालय पहुंचा बेटा

दमोहl जिस व्यक्ति ने न्याय के लिए 17 साल कोर्ट केस लड़कर 57 वर्ष की उम्र में सरकारी नौकरी तो पाई लेकिन ऐन वक़्त पर उसकी सांसे थम गई. प्रशासनिक असंवेदनशीलता का यह उदाहरण मढ़ियादो से निकलकर सामने आया हैl
मढ़ियादो के एक अधेड़ परमलाल कोरी ने न्याय की लड़ाई के लिए 17 साल कोर्ट में बिता दिए. लेकिन जब उसके पक्ष में फैसला आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी. क्योंकि कोर्ट का फैसला आने के कुछ दिन बाद ही उसकी मौत हो गई और सरकारी नौकरी पाने का सपना चूर-चूर हो गया. मानवीय असंवेदनशीलता का यह मामला हटा ब्लॉक का है. नौकरी के लिए 17 साल हाइकोर्ट में शिक्षा विभाग के खिलाफ केस लड़कर जीतना सात समुंदर पार करने जैसा था. केस जीतकर शिक्षक बनने का सपना 57 वर्ष की उम्र में पूरा भी हो रहा था. पूरा परिवार खुश था कि कोर्ट ने उनके फैसला हक में दे दिया है. अब गरीबी मिटेगी ओर सरकारी नौकरी मिल जाएगी. लेकिन नियुक्ति पत्र मिलने के तीन दिन पहले दुःखद निधन हो गया l
माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर ने परमलाल कोरी सहित अन्य के पक्ष में फैसला भी दिया है. फैसले के बाद शिक्षा विभाग ने नौकरी देने की प्रक्रिया शुरू भी कर दी. लेकिन जब दस्तावेज सत्यापन का आदेश की प्रक्रिया शुरू हुई उधर तीन दिन पहले ही परमलाल निधन हो गया जिससे सारी खुशियां मातम में बदल गईl
बताया जाता है कि 12 अप्रैल को जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा सत्यापन का आदेश जारी किया गया था. मृतक परमलाल को 15 अप्रैल को जिला शिक्षा केंद्र दमोह में उपस्थित होकर दस्तावेजों का सत्यापन कराना था. लेकिन आदेश होने के तीन दिन पहले हुई इस घटना से दस्तावेजों के साथ मृत्यु प्रमाण पत्र भी जिला शिक्षा केंद्र पहुंच गया.
*हार नहीं मानी*
माली हालत और गरीबी से लाचार परमलाल कोरी ने वर्ष 1988 में औपचारिक निकेत्तर स्कूल शिवपुर में अनुदेशक पद पर कार्य किया था. तीन साल तक कार्य करने के बाद यह स्कूल बंद हो गए. कुछ अनुदेशकों- पर्यवेक्षकों को शिक्षा विभाग ने गुरुजी का दर्जा देकर शामिल कर लिया तो कुछ छूट गए. परमलाल उन्हीं में से एक था. उसने 2008 में गुरुजी पात्रता परीक्षा पास तो कर ली लेकिन उसे नौकरी नहीं मिली. तब उसने अनुदेशक पद को आधार बताकर उच्च न्यायालय जबलपुर में शरण लीl बताया जाता है कि न्यायालय ने जनवरी 2025 में परमलाल कोरी के पक्ष में फैसला दिया. साथ ही शिक्षा विभाग को भी आदेशित किया. इसी क्रम में जिला शिक्षा अधिकारी दमोह ने 15 अप्रैल 2025 को परमलाल को पत्र जारी किया कि वह अपने सभी दस्तावेज जिला शिक्षा केंद्र दमोह लेकर आए ताकि उनका सत्यापन किया जा सके. उसे संविदा शिक्षा वर्ग 3 में नियुक्त किया जाना था. जब परमलाल कोरी का पुत्र शुभम पिता के दस्तावेजों के साथ पिता का मृत्यु प्रमाण लेकर जिला शिक्षा केंद्र पहुंचा तो सबकी आँखें नम हो गई. साथ ही प्रशासनिक असंवेदनशीलता पर भी सवाल खड़े हुए कि यदि समय रहते नौकरी दे दी जाती तो संभव है परिवार को कुछ आर्थिक सहायता भी मिल सकती थी. क्योंकि अब वह इस दुनिया में नहीं है और सरकारी नौकरी के पहले ही उसकी मृत्यु हो गई ऐसे में एक बार फिर प्रशासन ने उसे आर्थिक सहायता देने से हाथ खड़े कर दिए हैं. डीपीसी एमके द्विवेदी का कहना है कि चूंकि मृतक परमलाल को नौकरी नहीं मिली थी. दस्तावेज सत्यापन के पहले ही निधन हो गया l जिसके कारण शासकीय नियम के अनुसार किसी भी तरह की आर्थिक सहायता या पात्रता का नियम नहीं है l