संतों को जाति-पांत के भेद में मत बांधिए, संत सभी के हैं: डॉ. मोहन राव भागवत
मानस भवन में आयोजित व्याख्यान माला में दिया सामाजिक समरसता अपनाने का संदेश
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जबलपुर। संतों को जाति-पांत के भेद में मत बांधिए,संत सभी के होते हैं। आज के समय में सामाजिक समरसता बहुत जरूरी हो गई है। मनुष्यों में जाति-पात, ऊंच-नीच की दृष्टि से लोगों को देखने की आदत हजारों साल पहले से है ये अभी की आदत नहीं है लेकिन अब समय आ गया है कि इसे धीरे-धीरे सुधारें। भारत को नीचा दिखाकर एकता तोड़ने वालों को समरसता से जवाब दें। हिंदू समाज को आरएसएस संगठित कर रहा है और बिना समरसता के संगठन नहीं होता है। इसलिए सामाजिक समरसता अपनानी होगी। योग्यता जन्म से आती है उसे सीखा नहीं जाता। समाज के लोगों को छोटे-छोटे व्यवहारों को ठीक करना होगा। यह सारी बातें राष्ट्रीय स्वयं सेवक के सरसंघसंचालक डॉ. मोहन राव भागवत ने मानस भवन में आयोजित व्याख्यानमाला में कही।
आद्य जगद्गुरू श्री रामनन्दाचार्य की 723वीं जयंती के मौके पर मानस भवन में व्याख्यान माला आयोजित की गई थी। जिस दौरान पंडित पूज्य जगद्गुरू सुखानंद द्वाराचार्य स्वामी राघव देवाचार्य और राष्ट्रीय स्वयं सेवक के सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत उपस्थित रहे।
आजकल के लोग डरते हैं आदत बदलने में
व्याख्यामाला में डॉ. मोहन भागवत ने यह भी कहा कि बहुत से लोग अपनी आदत बदलने में डरते हैं जिन्हें आज के समय में बदलने की बहुत आवश्यकता आ चुकी है। हमारा शास्त्र बताता है कि अगर भक्त है तो फिर खंबे से भी भगवान निकल सकते हैं। भगवान ने जब जाति-पांत का भेद नहीं दिया तो फिर हम लोग कौन होते भेद करने वाले।
स्वार्थ हो गया है सब पर भारी…
डॉ. मोहन राव भागवत ने कहा कि स्वार्थ सब पर भारी हो गया है। धर्म जोड़ता है। भारत के बाहर धर्म शब्द नही है। समाज में जो जाति-पांत का भेद पैदा हुआ है उसको हटाने का काम सभी को करना होगा। अब समय आ गया है कि हिंदू धर्म को भेद का समर्थन बिल्कुल नहीं करना चाहिए।