यश भारत विशेष : सामुदायिक प्रयासों से बदली गांव की तकदीर : बंजर जंगल बना आजीविका और पारिस्थितिकीय संतुलन का आधार

मंडलाl जिले के बिछिया ब्लॉक में स्थित मलारा गाँव जहां गोंड, कुर्मी और यादव सहित 96 परिवार निवास करते हैं, इन्होंने सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से अपने स्थानीय जंगल को एक नया जीवन प्रदान किया है। इस पहल ने न केवल उनके पारिस्थितिक तंत्र को मजबूत किया है, बल्कि ग्रामीणों के लिए आजीविका के नए रास्ते भी खोले हैं जो मुख्य रूप से छोटे किसान हैं और अपनी आजीविका के लिए कृषि के अलावा जंगलों पर निर्भर करते हैं।
मलारा गांव के ग्राम पर्यावरण समिति के इस प्रयास से प्रत्येक घर तेंदू के पत्ते, महुआ एकत्र करके और उसे बेचकर प्रतिवर्ष आठ हजार रूपए की अतिरिक्त आय कर रहे है। ग्रामीणों को बिना खेती वाले खाद्य पदार्थ मिल रहे हैं। अब ग्रामीण उस क्षेत्र का उपयोग मवेशियों के चरने के लिए भी कर रहे हैं और फसल चोरी की घटनाओं में भी कमी आई है। जानकारी अनुसार मलारा गांव के लिए जंगल हमेशा से आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है। ग्रामीण यहां से पत्तेदार सब्जियां, जड़ें, शूट, कंद, मशरूम और जलाऊ लकड़ी एकत्र करते हैं, जिसका उपयोग वे अपनी जरूरतों को पूरा करने के साथ बेचकर आय भी अर्जित करते हैं। ग्रामीण समय-समय पर वन पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित बनाए रखने के लिए संरक्षण और रखरखाव के प्रयास भी करते हैं, जिससे वन पारिस्थितिक तंत्र की सेवाएं और उन क्षेत्रों में बेहतर दिखती हैं। बताया गया कि बदलते हुए पारिस्थितिक तंत्र के कारण गांव के जंगल को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वर्षा, तापमान में वृद्धि, सर्दियों के दिनों में कमी, बेमौसम आंधी और बिजली, बेमौसम ओलावृष्टि जैसी घटनाएं हुई, इसके साथ ही, लैंटाना, थीमिडा, ममरी और विभिन्न प्रकार के आक्रामक खरपतवारों ने जंगल को पूरी तरह से ढक लिया। इससे पोषणयुक्त घास गायब हो गई। जिससे जंगल का विकास रूक गया और लडिय़ा, तेंदू और पलाश जैसी कुछ प्रजातियां भी लैंटाना के नीचे ठीक से विकसित नहीं हो पाए। जिसका असर ग्रामीणों के जीवन पर पड़ा। ग्रामीणों को ईंधन की लकड़ी, मवेशियों के लिए चारा और आवास के लिए लकड़ी मिलना बहुत मुश्किल हो गया। महिलाओं को इन चीजों को एकत्र करने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी। जंगल से मिलने वाला पोषण और आय का एक बड़ा हिस्सा खत्म हो गया, जिससे कई परिवारों को मवेशियों की संख्या कम करनी पड़ी। इसका ईंधन की लकड़ी की आवश्यकता, मिट्टी की उर्वरता, उत्पादकता, मवेशियों और समग्र रूप से मानव स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ा।
सामुदायिक प्रयास जंगल को बनाया बेहतर
इस गंभीर स्थिति से बाहर आने के लिए प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन समिति ने 90 हेक्टेयर वन भूमि को बहाल करने की रणनीति तैयार की। लैंटाना के संक्रमण के कारण यह क्षेत्र मवेशियों के लिए दुर्गम था और जंगली जानवर विशेष रूप से जंगली सूअर दिन के समय इसमें आश्रय लेते थे और रात में फसलों को नुकसान पहुंचाते थे। ग्राम पर्यावरण समिति ने संबंधित पंचायत से अनुमति ली और वित्तीय सहायता के लिए एफईएस से संपर्क किया जिससे लैंटाना को जड़ से उखाड़ा जा सके।
लैंटाना हटाने के बाद उस क्षेत्र में खुले में चराई शुरू हो गई। इसके संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए ग्राम सभा ने उचित प्रबंधन और संरक्षण के नियम बनाए। इन नियमों ने जंगल में लोगों की आवाजाही और अवैध कटाई को नियंत्रित करने में मदद की। सुशासन के प्रयासों से बेहतर जंगल का आवरण, घास के चारे में वृद्धि, तेंदू के पत्तों की उपलब्धता में वृद्धि हुई। अब इस ग्राम के सभी परिवार वन तक पहुंच सकते थे और महुआ, तेंदू सहित विभिन्न गैर-वन उत्पाद और वन खाद्य पदार्थ एकत्र करने में परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। लेंटाना के खत्म होने के बाद अब ग्रामीणों की आजीविका में सुधार आया है।
ग्रामीणों को मिल रहा जंगल से लाभ
लैंटाना हटने से इस जंगल से महुआ के पेड़ों तक लोगों की पहुंच बढ़ गई है, जिससे 87 महुआ के पेड़ों से लगभग 15 क्विंटल महुआ की अतिरिक्त आय अब हो रही है। तेंदू के पत्तों का अतिरिक्त संग्रह होने लगा। ग्रामीण अब प्रतिवर्ष 20 हजार बंडल तेंदू के पत्तों का अतिरिक्त संग्रह कर रहे है। गांव का प्रत्येक परिवार उस वन टुकड़े से औसतन 2.5 किलोग्राम मैनहर एकत्र कर रहा है, जिससे ग्रामीणों की पोषण सुरक्षा सुनिश्चित हो रही है। बरसात के मौसम में प्रत्येक परिवार को विभिन्न किस्मों के 3 से 4 किलोग्राम मशरूम मिल रहे हैं। इस भूखंड पर औषधीय पौधों की विशाल जड़ें थीं, जो समुदाय की संरक्षण पहल से ठीक से विकसित हुईं। बैगा परिवार के लोग नियमित रूप से भूखंड का उपयोग औषधीय पौधों की जड़ें, पत्ते, गोंद और शाखाएं एकत्र करने के लिए कर रहे है।