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मेडिकल के जूनियर डॉक्टर-नर्सं लापरवाह: डेढ़ साल की सौरभी की बचा सकते थे जान मासूम रात में रोती रही, पिता ने डॉक्टर-नसज़् को उठाया तो, आग बबूला होकर दुत्कारा

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जबलपुर, यशभारत। डॉक्टरों को धरती का भगवान कहा जाता है, लोग इन पर आंख बंदकर भरोसा करते हैं। लेकिन जब धरती के भगवान लापरवाह बन जाए तो क्या कहेंगे। कुछ ऐसा ही हुआ डेढ़ साल की मासूम सौरभी के साथ। नेताजी सुभाष चंद्र मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टर-नसज़् की बदसलूकी के कारण मासूम सौरभी की मौत हो गई। सौरभी के माता-पिता के आंसू थम नहीं रहे हैं, क्योंकि शादी के दो साल बाद उनके घर में लक्ष्मी पैदा हुई थी। मां-बाप की इकलौती सौरभी इस तरह से छोड़कर चली जाएगी मां-बाप ने कभी नहीं सोचा था।

जानकारी के अनुसार लक्ष्मीपुर बड़ी उखरी निवासी सुमित बमज़्न ने अपने डेढ़ साल की बेटी सौरभी को गरम पानी से जलने जाने पर गुरूवार को मेडिकल में भतीज़् कराया था। दो दिन भतीज़् होने के बाद भी मासूम को जब मेडिकल अस्पताल में उचित इलाज नहीं मिला तो सुमित ने उसे निजी अस्पताल भतीज़् कराना चाहा लेकिन मेडिकल से डिस्चाजज़् होते ही बेटी ने दम तोड़ दिया।

बेटी रात में रोई तो डॉक्टर नाराज हो गए
सुमित ने बताया कि बेटी सौरभी मेडिकल की तीसरी मंजिल बच्चा वाडज़् 21 में भतीज़् थी। एक रात में बेटी सौरभी को बहुत तकलीफ हुई वह रोने लगी। बेटी को रोता हुआ देख नहीं पाया उसी रात में वाडज़् के ड्यूटी डॉक्टर-नसज़् से बात करनी चाही वाडज़् में यहां-वहां खोजा तो डॉक्टर अपने कमरे में सोते पाए गए, उनका उठाकर बच्ची का इलाज करने को कहा तो डॉक्टर और नसज़् आग बबूला हो गया। डॉक्टर-नसज़् का कहना था कि 2 बजे रात में उठाने के पहले सोचना चाहिए था।

सब कुछ छिन गया हमारा तो
मासूम की मां नेहा ने रोते हुए कहा कि डॉक्टर और नसज़् की बदसलूकी के कारण उसकी डेढ़ साल की बेटी उनके पास नहीं है। मेडिकल के डॉक्टर-नसज़् अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाते तो आज बेटी साथ में होती। मेडिकल में सभी मरीजों से इसी तरह से बदसलूकी की जाती है जिसका नतीजा यह होता है कि इलाज ठीक से नहीं होता है।

बेटी को खो चुके पिता की जुबानी
पानी से जलने के कारण बेटी को 2 दिसंबर को मेडिकल अस्पताल में एडमिट किया गया जहां डॉक्टरों ने जले हुए स्थान पर पटटी बांध थी, पटटी को दो टाइम चेंज करनी थी दिन मेें। लेकिन डॉक्टर का कहना था कि पटटी एक बार ही चेंज होगी, पट्टी चेंज नहीं होने से बेटी को रात में तकलीफ हो रही थी। पट्टी को तीन दिन बाद खोल दिया गया, डॉक्टर ने उसे नहाने को बोला था, एक ट्यूब लगाने को बोला गया और दो दिन बाद छुटटी होने की बात कही। बच्ची रविवार की सुबह बेहोश हो गई थी। डॉक्टरों ने बोला बुखार सिर में चढ़ गया था। आसीयू में भतीज़् कर दिया था। जिस एडमिट किया गया। उसी रात में बच्ची को ज्यादा तकलीफ हुई तो डॉक्टर और नसज़् के पास पहुंचे थे वह अपने कमरे सो रहे थे,दो बार आवाज लगाई नहीं उठे। रूम में अंदर जाकर हिलाकर उठाया तो कहा तू बाहर जा,रात में दो बजे क्यों उठा रहा है। इसके बाद एक नसज़् ने भी अभद्रता करते हुए पत्नी से कहा घर से जलाकर ले आई हो यहां पर नाटक कर रही हो।

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