भीड़ की वापसी, इंतजामों की विदाई, सालों बाद चल समारोह में लौटी भीड़, लेकिन प्रशासन के इंतजाम चारों खाने चित्त
दो थानेदारों के हवाले चल समारोह छोड़कर बंगले से खबर लेते रहे आला अफसर

कटनी। बारडोली का दशहरा इस बरस भी विवादों की पुरानी चासनी में लिपटे नए सवाल छोड़ गया। कटनी की ऐतिहासिक परंपरा पर शहर और देहात की जनता ने तो भरपूर प्यार लुटाया, लेकिन सरकारी नुमाइंदों ने तकरीबन 9 दशक से चली आ रही परंपरा को बेहद सतही तौर पर लिया। कोतवाली और कुठला थाना प्रभारियों के भरोसे चल समारोह को छोड़कर पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारी नामालूम कहां व्यस्त थे। चल समारोह के तमाम इंतजाम तार तार होते रहे, खुल्लम खुल्ला बीच चौराहे पर शराब बिकती रही और दुर्गा समितियों से लेकर रामलीला कमेटियों तक आपस में उलझती रहीं, लेकिन इन हालातों को अपनी समझ और सूझबूझ से सुलझाने वाला कोई बड़ा अफसर मौजूद नहीं था। नतीजा यह निकला कि 8 बजे के स्थान पर 10 बजे रावण महाराज झंडाबाजार से आगे खिसक पाए। विवादों के बीच जुलूस की रफ्तार पर लगे ब्रेक ने जनता को तो परेशान किया ही, विसर्जन का काम भी बहुत विलंब से हो पाया। जुलूस में शामिल झंडाबाजार की पहली प्रतिमा रात 2 बजे के बाद गाटरघाट पहुंच पाई और क्रेन से नदी में उतारते रात साढ़े तीन बज गए।
दशहरे की व्यवस्थाओं को लेकर जिला प्रशासन ने शान्ति समिति की बैठक लेकर जो बिंदु तय किए थे, खुद प्रशासन के नुमाइंदों ने इस पर अमल कराने में रुचि नहीं ली। डीजे की धुनों पर फूहड़ नृत्यों का सिलसिला भी भक्ति गीतों की आड़ में जमकर चला। चल समारोह की टाइमिंग को लेकर भी गाइड लाइन निर्धारित थी, लेकिन जुलूस शुरू होने के कुछ ही देर बाद सारे नियम और कानून हवा में उड़ गए। दरअसल विवादों के लिए चर्चित कटनी के दशहरा चल समारोह में सालों से गोलबाजार और घंटाघर रामलीला कमेटियों के बीच आगे और पीछे के क्रम को लेकर विवाद होता आया है। बताया जाता है कि गोलबाजार रामलीला कमेटी के बैनर तले शामिल झंडाबाजार व्यापारी संघ की प्रतिमा के साथ चल रहे डीजे की गाड़ी का टायर पंचर हो गया। इस वजह से वाहन आगे नहीं बढ़ पाने से गोलबाजार कमेटी ने रावण महाराज को भी वही रोके रखा। काफी देर इंतजार करने पर घंटाघर कमेटी के लोग बिफर गए। उन्होंने हनुमान जी को आगे बढ़ाते हुए झंडाबाजार में लाकर खड़ा कर दिया। बाद में पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों से बातचीत के बाद रावण महाराज को आगे निकलने दिया गया। इस विवाद में लगभग 2 घंटे विलंब से जुलूस आगे बढ़ा।
अब नहीं आते कलेक्टर, एसपी
करीब एक दशक से विजयादशमी चल समारोह की व्यवस्थाओं पर ग्रहण लग चुका है। इसके पहले कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक स्वयं चल समारोह में रुचि लेकर सारे इंतजामों पर निगरानी रखते थे। विसर्जन होने तक जुलूस मार्ग का लगातार भ्रमण करते थे, लेकिन कुछ सालों से बड़े अफसरों ने बारडोली की इस गौरवशाली परंपरा को अपने मातहतों के हवाले कर दिया, इसका प्रमाण कल दशहरा जुलूस में देखने मिला भी। कोतवाली टीआई आशीष शर्मा और कुठला टीआई अभिषेक चौबे ने अगर गोलबाजार और घंटाघर रामलीला कमेटियों के साथ माथापच्ची न की होती तो और भी कठिन हालात बन सकते थे। जुलूस मार्ग पर वाहनों के घुसने पर भी कोई कंट्रोल नही थी। सुभाष चौक पर तो बेरिकेटिंग की गई लेकिन उपमार्गों से लोग दुपहिया वाहन लेकर चल समारोह को बाधित करते रहे। मेन रोड की सेंट्रल पार्किंग चल समारोह जैसे बड़े जलसे में भी आबाद रही। यातायात पुलिस तय ही नही कर पाई कि उसे जुलूस के दौरान आने वाले वाहनों को कैसे व्यवस्थित करना है। विसर्जन घाट पर नगर निगम का अमला तो चौकस था लेकिन यहां भी जिला प्रशासन के नुमाइंदों के नाम पर पटवारी और आरआई ही मौजूद थे।
सालों बाद दिखी भीड़, चबूतरों पर बैठे दिखे लोग
पिछले एक दशक से कटनी के दशहरे पर जैसे ग्रहण सा लग गया था। देहात से आने वाली महिलाओं और लड़कियों के साथ होने वाली छेड़छाड़ की वारदातों के मद्देनजर लोग चल समारोह में आने से परहेज करने लगे थे। इस बरस शहरी क्षेत्र के लोगो के साथ ग्रामीण इलाकों से आए लोगों ने भी दशहरा जुलूस में शिरकत की। इस बार नवरात्र की अष्टमी से ही भीड़ का जो सिलसिला शुरू हुआ तो विजयादशमी चल समारोह तक जारी रहा।








