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पृथ्वी दिवस पर विशेष : 2030 तक देश की लगभग 40 फीसदी आबादी के सामने होगा पानी का संकट 

यश भारत । विश्व पृथ्वी दिवस यानी वर्ल्ड अर्थ डे हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाता है, जिसे भारत के साथ-साथ दुनिया के 195 से भी ज्यादा देशों द्वारा सेलिब्रेट किया जाता है। यह दिन पृथ्वी, पर्यावरण और ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रति जागरूकता बढ़ाने और इसकी सुरक्षा के लिए कार्रवाई करने का प्रतीक है।

 

दरअसल 1960 के दशक में पर्यावरण के मुद्दे को लेकर जागरुकता बढ़ रही थी। क्योंकि उस दौरान विश्वविद्यालयों में छात्र आंदोलन हो रहे थे जो प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे। इसके बाद 22 अप्रैल 1970 को दुनिया में पहली बार पृथ्वी दिवस मनाया गया था। तब से हर साल 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जा रहा है. इस दिवस को हर साल एक नई थीम के साथ सेलिब्रेट किया जाता है। पृथ्वी पर पीने के पानी का संकट और उसका निवारण एवं पृथ्वी पर हवा, मिट्टी और पानी सभी आपस में जुङे हैं। यह अंतर्संबंध पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाए रखने के लिए आवश्यक है। पृथ्वी की सतह से पानी वास्पित हो जाता है और फिर वर्षा के रूप में वापस जमीन पर गिरता है। यह चक्र पृथ्वी के तापमान कोर्ट नियंत्रित करने में मदद करता है। पृथ्वी पर 97 प्रतिशत भाग पानी है जिसमें से केवल 2.5 प्रतिशत से लेकर 2.75 प्रतिशत पानी पीने योग्य है। भारत पहली बार 2011 में पानी की कमी वाले देशों की सूची में शामिल हुआ था। यूनिसेफ द्वारा 18 मार्च 2021 की जारी रपट के अनुसार भारत में 9.14 बच्चे गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं।

 

अनुमान है कि 2030 तक देश की लगभग 40 फीसदी आबादी के सामने पानी का संकट होगा। वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (डबल्यू आर आई) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार यदि जल प्रबंधन से जुड़ी नितियों में सुधार नहीं किया गया तो इसके चलते आने वाले 27 वर्षों में भारत, चीन और मध्य एशिया को उसके जीडीपी के 7 से 12 प्रतिशत के बराबर का नुकसान हो सकता है।देश का 70 फिसदी भूजल स्रोत सुख चुके हैं और पुनर्भरण की दर 10 फिसदी से भी कम रह गई है। चेन्नई, बेंगलुरु जैसे शहर पानी की कमी को लेकर खबरों की सुर्खियों में है। इसलिए पीने योग्य पानी सभी को उपलब्ध करवाने और इसे संरक्षि‌त करने कानून बनाया गया।संविधान के भाग (9) में तेरहवें संशोधन के अनुच्छेद 243(छ) में आर्थिक विकास एवं समाजिक न्याय के लिए योजना बनाने की शक्ति पंचायत को दिया गया है। जो ग्यारहवीं अनुसूची में लिस्टेड है। 11 नबंर पर पेयजल व्यवस्था का उल्लेख किया गया है।

 

परन्तु सभी कानूनी प्रावधानों के बाबजूद जल स्रोत की दशा इस रिपोर्ट से उजागर हो जाता है।पर्यावरण दिवस के मौके पर जारी स्टेट ऑफ एनवायरमेंट(एसओई) रिपोर्ट 2023 के मुताबिक, देश की कुल 603 नदियों में से 279 यानी 46 फीसद नदियाँ प्रदूषित हैं। राज्यों में महाराष्ट्र में सर्वाधिक 55 नदियाँ तथा मध्यप्रदेश में 19 नदियाँ प्रदूषित हैं। वहीं बिहार और केरल में 18-18 नदियाँ प्रदूषित हैं। मध्य प्रदेश जल संसाधनों से समृद्ध है। तीन नदियां अर्थात नर्मदा, तापी ,माही और गंगा बेसिन की प्रमुख सहायक नदियों जैसे चंबल, सिंध, बेतवा ,केन और सोन का मूल स्थान मध्यप्रदेश है।नर्मदा बेसिन के उपरी हिस्सों में जंगल कटने के कारण जल संसाधन मंत्रालय की वाटर ईयर बुक 2014-15 के मुताबिक नर्मदा घाटी के जिलों में 1901-1950 के दौरान औसत वार्षिक वर्षा की तुलना 2006-2010 के बीच करने पर पता चलता है कि नर्मदा के उद्गम वाले जिले अनूपपुर में औसत वार्षिक वर्षा 1397 मिलीमीटर से घटकर 916 मिलीमीटर रह गई है।

 

अपर नर्मदा के मंडला जिले में भी औसत वार्षिक वर्षा 1557 मिलीमीटर से घटकर 1253 मिलीमीटर रह गई है।केन्द्रीय जल आयोग द्वारा गरूडेश्वर स्टेशन में जुटाए गए वार्षिक जल आंकङे अनुसार 2004- 2005 और 2014- 2015 की तुलना में 37 प्रतिशत प्रवाह में कमी आया है। मध्यप्रदेश की ग्रामीण अबादी हैंडपंप पर निर्भर है।अप्रेल 2023 के आंकड़े अनुसार प्रदेश में पांच लाख 64 हजार 290 हैंडपंप थे। जिसमें में से 14 हजार 191 हैंडपंप पानी नहीं दे रहा था। ‌‌‌‌‌

 

पेयजल के स्रोतों में कमी के निम्न कारण है जैसे प्रति व्यक्ति पानी की खपत में बढोत्तरी,भूजल में गिरावट, प्राकृतिक स्रोतों का जल प्रदुषित होना, परम्परागत जल स्रोतों में कमी आना अंधाधुंध पेङो की कटाई, मृदा अपरदन आदि प्रमुख है।

ऐसे में सरकार और समाज को मिलकर जमीनी स्तर पर ठोस प्रयास करने होंगे। जैसे जल स्रोतों को चिन्हित करना और उसके संरक्षण, प्रबंधन के लिये ग्राम सभा में चर्चा कर इसकी जिम्मेदारी गांव समिति को देना। गांव की नदी, नाले के पास शौच रोकने तथा उसके दुष्परिणाम पर ग्राम सभा में चर्चा और गांव स्तर की निगरानी समिति का गठन करना। गांव समुदाय के पारम्परिक जल संरक्षण, प्रबंधन और नियंत्रण के तरीके के लिए गांव स्तर की अध्ययन दल का गठन करना। पास के नदी नाले के पानी को बरसात बाद रोकने हेतु बोरी बंधान या अन्य उपाय करना।

वर्षा जल को रोकने वाला गांव के आसपास जल संचय वयवस्था कायम करना।सूख चुकी सभी नदियों, जोहङो, झील, तलाबों और अन्य जल निकाय को पुनर्जीवित करना जल संकट का स्थाई निवारण हो सकता है।

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