जबलपुरमध्य प्रदेशराज्य
नगर निगम चुनाव जगत और जामदार का भविष्य कार्यकर्ताओं के हाथ मे
किस की क्या है ताकत और क्या है कमजोरी डॉ जामदार और अन्नू का तुलनात्मक विश्लेषण

जबलपुर यश भारत। नामांकन फॉर्म दायर होते ही आधिकारिक रूप से डॉक्टर जामदार और जगत बहादुर सिंह अन्नू चुनावी समर में भाजपा कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी हो गए हैं। यदि शहर की राजनैतिक नब्ज को पकड़ने तो मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच मैं होगा। जीत हार का फैसला तो जनता करेगी लेकिन इसके लिए इन दोनों को जनमानस की कसौटी पर खरा उतरना होगा।
वोट सिर्फ चुनावी सोर, रैलियों के माहौल और पोस्टर होडिंग के आधार पर नहीं मिलते। इसके लिए देखना होगा कि प्रत्याशी की क्या ताकत है साथ ही कमजोर कड़ी को भी जनता देखेगी। जिसके आधार पर लोकतंत्र के महोत्सव में उसकी स्वीकार्यता या अस्वीकार्यता होगी।
अनुभव कि नहीं कमी
राजनीतिक तौर पर दोनों ही नेताओं के पास लंबा राजनीतिक अनुभव है। उम्र के पैमाने पर डॉक्टर जामदार अन्नू पर बीश है तो जोश में अन्नू डॉक्टर साहब पर भारी है। यदि इनकी राजनीतिक यात्रा की बात करें तो डॉक्टर जामदार ने संघ के रास्ते संगठन के गुण सीखे हैं जिस कारण अनुशासन और नेतृत्व क्षमता उनके व्यक्तित्व में स्पष्ट दिखाई देती है । वही अन्नू ने ग्रास रुट से अपनी राजनीति का सफर शुरू किया है। गली मोहल्लों से लेकर बार्ड की राजनीति में लंबा समय बिताया है। जिसके चलते जमीनी कार्यकर्ता और आम जनता से उन का सीधा संवाद है।
यदि डॉक्टर जामदार को देखें तो उनकी जो ताकत है वही उनकी कमजोरी भी है। वह हमेशा से शहर के प्रबुद्ध जनों में गिने जाते रहे हैं संघ के बाद उन्होंने जो राजनीति का क, ख, ग सीखा भी तो वह सीखा दिल्ली और भोपाल के राजनीतिक गलियारों में । जिसके चलते सत्ता और संगठन के शीर्ष लोगों के साथ उनका संवाद अच्छा रहा है। लेकिन जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ उनकी डोर जरा कमजोर सी दिख रही है। वही अन्नू जमीनी कार्यकर्ता होने के नाते क्रॉस रोड पर जाकर संवाद स्थापित कर लेते हैं लेकिन उनके ऊपर हमेशा किसी न किसी नेता का तमगा लगा रहा है हालांकि कांग्रेस की परिपाटी को देखें तो यहां स्वामी भक्ति तो चरण वंदना का लंबा इतिहास रहा है।
धर्म के प्रति है झुकाव
एक बात दोनों नेताओं में समान भी है। दोनों का झुकाव धर्म की तरफ है। दोनों ही गुरु शिष्य परंपरा के अनुयाई हैं जिसके चलते धार्मिक आयोजनों में इनकी सहभागिता हमेशा से रही है। सामाजिक सेवा के क्षेत्र में डॉक्टर जामदार ने अपनी चिकित्सकीय योग्यता का प्रयोग करते हुए ऐसे लोगों की मदद की है जो अपना समुचित उपचार नहीं करवा पाते हैं। साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अलग-अलग प्रकल्प के माध्यम से भी वे सेवा कार्य में लगे रहते हैं । अन्नू भी समाज सेवा के साथ-साथ सामाजिक और धार्मिक आयोजनों में लंबे समय से सक्रिय रहे हैं। राजनीति के साथ-साथ सामाजिक और धार्मिक आयोजन शहर में उनकी पहचान रहे हैं।
संगठन से उम्मीद
लेकिन समाज सेवा और आयोजनों के दम पर चुनावी किला नहीं जीता जा सकता । इसके लिए कार्यकर्ताओं का टप और समर्थकों का समर्पण भी लगता है। यदि भाजपा को देखें तो यहाँ निष्ठावान कार्यकर्ताओं की फौज है और समर्थकों की जगह भाजपा में आनुयाई होते हैं जो इमली को आम कहने तैयार रहते हैं। ऐसे में डॉक्टर जामदार को सिर्फ कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद स्थापित करना होगा और उन्हें विश्वास दिलाना होगा कि वे उनके बीच के हैं और उनके लिए सहज सरल रहेंगे। यदि वे कार्यकर्ताओं को विश्वास में ले लेते हैं तो फिर वे सिर्फ चेहरा रह जाएंगे किला फते करने के लिए उनके कार्यकर्ता ही सक्षम है।
वहीं अन्नू स्थिति जरा अलग है वे कार्यकर्ताओं के साथ साथ आमजन के लिए सहज और सरल है। लेकिन इनकी पार्टी में कार्यकर्ताओं की निष्ठा पार्टी के प्रति ना होकर व्यक्ति के प्रति होती है । यदि अन्नू क्षेत्रीय नेताओ को साधने में कामयाब हो जाते हैं तो समीकरण कांग्रेस के पक्ष में होंगे। गुटी राजनीति कांग्रेस के पार्षद प्रत्याशियों की सूची को देखकर समझी जा सकती है जहां विधानसभा वार विधायकों के करीबियों को टिकट बांटी गई है। लेकिन हर बार से उलट इस बार कांग्रेस के पास 3 विधायक हैं जो अन्नू के लिए संजीवनी साबित हो सकते हैं। परंतु गुटबाजी की सिकार इस पार्टी में सभी मोतियों को एक धागे में पिरोना अन्नू के लिए टेढ़ी खीर होगी।
इस पूरे समर में कहीं डॉक्टर जितेंद्र जामदार का वजन ज्यादा है तो कहीं अन्नू बलवान लग रहे हैं। परन्तु आखिरी फैसला तो जनता को करना है जहां इन्हें हर कसौटी पर कसा जाएगा।