दुर्गोत्सव की तैयारियों ने पकड़ा जोर, मिट्टी को मां भवानी बनाने में जुटे मूर्तिकार, कई सालों से कलकत्ता से कटनी आकर बना रहे भव्य प्रतिमाएं


कटनी, यशभारत। आदिशक्ति जगत जननी मां दुर्गा की शक्ति आराधना का महापर्व नवरात्रि आगामी 22 सितंबर से शुरू रहा है, जिसके लिए दुर्गा उत्सव समितियों सहित दशहरा चल समारोह के अलावा देवी-दीवालों में तैयारियों का सिलसिला शुरू हो चुका है। मंदिरों में जहां साफ सफाई एवं रंग-रोगन का काम चल रहा है, तो वहीं दुर्गा उत्सव समितियों द्वारा पंडाल निर्माण के साथ ही अन्य तैयारियां की जा रही है। शहर व बंगाल से आए मूर्तिकारों द्वारा मां दुर्गा की भव्य और मनोहारी प्रतिमाओं के निर्माण को अंतिम रूप दिया जा रहा है। प्रमुख रूप से कोलकाता नोदिया, कृष्णा नगर से आए कार्तिक पाल द्वारा प्रेम नारायण धर्मशाला बरही रोड, कलकत्ता के बप्पा घोष द्वारा तिलक राष्ट्रीय स्कूल के पीछे, बंगाल से आए गोपी नागपाल द्वारा आदर्श कालोनी मोड़ के समीप पिछले 4 माह से गणेश व दुर्गा प्रतिमाओं का निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा शहर के चंदन मूर्तिकार द्वारा कुठला में, खिरहनी रोड में चक्रवर्ती मूर्तिकार द्वारा भी एक से बढक़र एक मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है। कटनी में 25 से 30 वर्षों से कलकता, बंगाल के प्रसिद्ध मूर्तिकारों का दल गणेश व दुर्गा प्रतिमाएं बनाते आ रहे हैं। ये कलाकार रात दिन लगातार अथक मेहनत कर दुर्गा प्रतिमाओं को अंतिम रूप दे रहे है। कलाकारों की तीन माह से जारी मेहनत से भव्य प्रतिमाओं का निर्माण अब अंतिम चरण पर पहुंच गया है। हर साल की तरह इस साल भी श्रद्धालु इन प्रतिमाओं के दर्शन कर सडक़ों पर रतजगा करेंगे।
निर्माण के बाद गुमनामी में खो जाते है…
इन प्रतिमाओं के निर्माण में अहम योगदान देने वाले कलाकार अक्सर गुमनाम रह जाते हैं। यह वही कलाकार हैं, जो अपनी सृजनात्मकता, मेहनत और तकनीक के माध्यम से बेजान मिट्टी को सजीव बना देते हैं और उनके इस योगदान से ही शहर की यह पुरानी परंपरा जीवित है। कटनी में मूर्तियों के स्वरूप को दशहरे के रूप में परिवर्तित करने की परंपरा की शुरुआत 1960 के दशक में स्व. रामदास अग्रवाल लल्लू भैया ने की थी, तब से इस परंपरा का साल दर साल निर्वाहन किया जा रहा है। हर साल नई-नई मूर्तियों का निर्माण कर झांकियों के माध्यम से कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।
करीब साढ़़े तीन से सौ ज्यादा प्रतिमाओं का हो रहा सृजन
कलकत्ता व स्थानीय कलाकारों द्वारा शहर के विभित्र स्थलों में लगभग साढ़े तीन सौ से ज्यादा मूर्तियों का निर्माण अब अंतिम चरण में है। स्थानीय कलाकारो ने भी एक से बढक़र एक दुर्गा प्रतिमाओं का निर्माण किया है।
कलकत्ता से चेहरा बनाने वाली मिट्टी लाते हैं मूर्तिकार
मूर्तिकारों ने बताया कि मूर्ति बनाने का सामान कलकत्ता से बुलाते है। खासतौर पर मूर्ति के चेहरे का निर्माण गंगा मिट्टी से किया जाता है, इसलिए वे विशेष मिट्टी कलाकार खुद कलकता से लाते है और चाकी मूर्ति का निर्माण स्थानीय मिट्टी से करते हैं। स्थानीय मिट्टी भी विशेष तरह की उपयोग की जाती हैं।
क्या कहते है मूर्तिकार
मूर्ति बनाने के तरीकों में भी बदलाव : कार्तिक
कार्तिक ने बताया कि वो जून माह से कालकत्ता के 10 साथी कलाकारों के साथ मूर्ति बनाने में जुटे हुए हैं। इस बार उन्होंने 50 करीब गणेश प्रतिमाओं और 160 के करीब दुर्गा प्रतिमाओं का निर्माण किया है। मूर्तिकारों के मुताबिक तब और अब के इस दौर में काफी बदलाव आ गया है। पहले के समय में मूर्तियों व झांकियों के निर्माण के लिए मजदूर स्थानीय स्तर पर मिल जाते थे लेकिन अब ऐसा नहीं। आज के दौर में तकनीक के साथ ही सामग्री और मूर्ति बनाने के तरीकों में भी बदलाव आ चुका है। जिससे मूर्ति अब अधिक सजीव और प्रभावी दिखाई देती हैं।
महंगाई का असर : गोपी नागपाल
आदर्श कॉलोनी मोड पर मूर्तियों को अंतिम रूप दे रहे गोपी नागपाल ने बताया की हमारे यहां 16 कलाकारों के दल ने 50 से अधिक गणेश व लगभग 60 दुर्गा मूर्तियों के निर्माण के साथ 11 फीट तक की दुर्गा प्रतिमा का बनाई गई है। अभी इन प्रतिमाओं में मिट्टी लेपन ओर रंग रोगन का कार्य तेजी से चल रहा है। इस बार बरसात की वजह से काफी दिक्कतें भी आई क्योंकि मिट्टी ज्यादा गीली हो जाने फिर सूखने में वक्त लगा जिसके लिए हमे हीटर का भी सहारा लेना पड़ा है। बढ़ती महंगाई पर गोपीपाल ने बताया की पहले 10 रुपये घनफीट लकड़ी मिलती थी तो आज उसकी कीमत 40 रुपये तक पहुंच गई है। बांस पहले 10 रुपये में मिल जाता थाए अब यह बास 60 से 80 रुपये में मिलता है। इसके अलावा मूर्तियों के श्रृंगार से संबंधित अन्य सामग्री के दाम भी बढ़ गए हैं। मूर्तियों के निर्माण के लिए भवन लेना पड़ता है, जिसका किराया लाखों रुपये होता है।
मूर्ति के निर्माण की लागत बढ़ी : बप्पा घोष
तिलक राष्ट्रीय स्कूल के पीछे मूर्ति बना रहे बप्पा घोष का कहना कि है। अब के दौर में मूर्ति के निर्माण की लागत भी काफी बढ़ गई है। मूर्तियों में लगाए जाने वाले जेवर व मूर्तियां के रंग भी काफी महंगे हो गए। पहले कागज के मुकुट बगैरा ज्यादा चलते थेए अब इनमें बदलाव हो गया अब मुकुट में नक्काशी का दौर आ गया है। इस बार हमारे यहां गणेश मूर्तियों के अलावा करीव 50 छोटी बड़ी मूर्तियों का निर्माण किया गया, जिसमे सबसे बड़ी 18 फीट की मूर्ति भी है। इस कार्य में हमारे 20 साथी कलाकार रात दिन पिछले 4 माह से मेहनत कर रहे है। गणेश चौक में स्थापित की गई गणेश प्रतिमा हमारे द्वारा ही निर्मित की गई थी।
मूर्ति की फिनिशिंग व साजसज्जा पर फोकस : चंदन मूर्तिकार
शहर के प्रसिद्ध शम्भू पेंटर के पुत्र राजकुमार चंदन मूर्तिकार भी पिछले कुछ सालों से दुर्गा और गणेश प्रतिमाओं का निर्माण कर रहे हैं, जिसमे इनकी पुत्री स्नेहा पटेल द्वारा मूर्ति की फिनिशिंग व साजसज्जा में सहयोग देती हैं। हालांकि स्थानीय मूर्तिकारों की कई परेशानियों से गुजरना पड़ता है। स्थानीय मूर्तिकार चेहरे की मिट्टी की वजह से दौड़ में पीछे यह जाते हैं क्योंकि मूर्ति की साज-सज्जा रंग रोगन का सामान भी कटनी में नहीं मिलता, जिसके लिए इन्हें दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है, इसके बाबजूद कलाकार मूर्तियों के निर्माण में तल्लीन हैं।
ऑर्डर पर ही होता है निर्माण : विजय चक्रवर्ती
गायत्री मंन्दिर के पास बरही रोड के स्थानीय कलाकार विजय चक्रबर्ती ने बताया ये कला पुश्तैनी है हमारे पिता और दादा बड़े मूर्तिकार थे वो पेटिंग के साथ मूर्तियां भी बनाते थे, उन्ही से हम लोगो ने कला सीखी है। पहले हम लोग 20 से 25 मूर्ति बनाते थे पर सिर्फ ऑडर पर मूर्ति निर्माण करते है इस बार हमें लगभग 25 मूर्ति बनाई है जो की बरही, विजयराघवगढ़, ढीमरखेड़ा, स्लीमनाबाद, रीठी और कुछ आसपास लोकल में विराजित की जायेंगी। इस कार्य मे हमारे पूरे परिवार के लोग बड़ी तल्लीनता से लगे हुए लगभग कार्य पूरा हो चुका सिर्फ फिनिशिंग का कार्य चल रहा है।
पिता से सीखी कला : चंदन मूर्तिकार
कटनी के प्रसिद्व चंदन मूर्तिकार राजकुमार का कहना है पिता के सानिध्य में रहकर पहले पेंटिंग औऱ दीवाल लेखन इत्यदि का कार्य करते थे, फिर धीरे धीरे माटी की मूर्ति बनाने की पहल की और अब इस बार 11 फीट की दुर्गा मूर्ति बनाई हैं जो की उण्प्र के महोबा जाएगी। हमारे मैहर, सतना, दमोह, महोबा, रीठी, बहोरीबंद, बरही, कटनी के फिक्स कस्टमर हैं। मेरे इस कार्य में मेरी बेटी स्नेहा का भरपूर सहयोग मिलता हैं, वो अभी महिला महाविद्यालय में अध्ययन के मूर्तियों में फिनिशिंग, सजावट, इत्यादि कार्य बखूबी करती हैं।







