ठाकरे बंधुओं की संभावित सियासी सुलह: नेतृत्व का सवाल बना सबसे बड़ा रोड़ा
राज और उद्धव ठाकरे के बीच तीन दशकों की कटुता के बाद मेल-मिलाप की चर्चा तेज, लेकिन नेतृत्व और भरोसे की कमी बनी चुनौती

महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर ठाकरे परिवार चर्चा के केंद्र में है। राज ठाकरे के एक पॉडकास्ट के वायरल होने के कुछ घंटों बाद, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के आधिकारिक एक्स हैंडल पर एक वीडियो साझा किया गया, जिसमें उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के हित में छोटे-मोटे मतभेदों को भुलाने की बात कही। इस वीडियो में दोनों बंधु मातोश्री के बाहर हाथ मिलाते नजर आ रहे हैं, जिससे राजनीतिक गलियारों में उनके संभावित गठबंधन की अटकलें तेज हो गई हैं।

तीन दशकों की दूरी के बाद सुलह की संभावना
राज और उद्धव ठाकरे, दोनों कभी शिवसेना के प्रमुख नेता रहे हैं, लेकिन पिछले तीस वर्षों से उनके बीच राजनीतिक कटुता रही है। राज ठाकरे ने 2005-06 में शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) की स्थापना की थी। अब, आगामी नगर निगम चुनावों के मद्देनजर, दोनों के बीच सुलह की संभावनाएं जताई जा रही हैं, जो महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा बदलाव ला सकती हैं।
मराठी अस्मिता और हिंदी अनिवार्यता का मुद्दा
हाल ही में महाराष्ट्र सरकार द्वारा सभी प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी को अनिवार्य करने के निर्णय ने मराठी अस्मिता के मुद्दे को फिर से उभारा है। एमएनएस और अन्य विपक्षी दलों ने इस निर्णय का विरोध किया है। ऐसे में, ठाकरे बंधु इस मुद्दे को आगामी चुनावों में प्रमुखता से उठा सकते हैं, जिससे मराठी मतदाताओं को एकजुट किया जा सके
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नेतृत्व का सवाल: सबसे बड़ी चुनौती
संभावित गठबंधन में सबसे बड़ा सवाल यह है कि नेतृत्व कौन करेगा? एमएनएस नेता संदीप देशपांडे के अनुसार, “हमने 2014 और 2017 में भी उद्धव ठाकरे के साथ गठबंधन की कोशिश की थी, लेकिन उन्होंने अंततः कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।” शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के एक वरिष्ठ नेता ने भी सवाल उठाया, “क्या राज उद्धव के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे, और क्या उद्धव राज के नेतृत्व को?”
भाजपा और शिंदे गुट के साथ बातचीत
राज ठाकरे की भाजपा और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ भी बातचीत चल रही है, जिससे संभावित गठबंधन की जटिलता और बढ़ गई है। राज ठाकरे ने हाल ही में शिंदे के साथ अपने निवास पर रात्रिभोज किया, जिसके बाद उनके इरादों पर सवाल उठने लगे हैं।
पारिवारिक कटुता और व्यक्तिगत आरोप
राज और उद्धव ठाकरे के बीच की कटुता केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि व्यक्तिगत भी रही है। 2017 के नगर निगम चुनावों से पहले, राज ने सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया था कि बाल ठाकरे अपने अंतिम दिनों में असंतुष्ट थे। इसके अलावा, 2024 के विधानसभा चुनावों में, राज ने उम्मीद की थी कि उद्धव उनके बेटे अमित ठाकरे के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, जिससे राज और अधिक नाराज हो गए।
संभावनाएं और चुनौतियां
राजनीति में कुछ भी संभव है, लेकिन ठाकरे बंधुओं के बीच सुलह के लिए कई बाधाओं को पार करना होगा। भरोसे की कमी, नेतृत्व का सवाल, और व्यक्तिगत कटुता जैसी चुनौतियां इस संभावित गठबंधन के रास्ते में बड़ी रुकावटें हैं। यदि ये दोनों नेता अपने मतभेदों को भुलाकर एकजुट होते हैं, तो यह महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया अध्याय लिख सकता है।