जबलपुरमध्य प्रदेश

जबलपुर में घट रही गिद्धों की प्रजनन क्षमता: प्रदूषण तस्करी प्रमुख कारण; आधी रह गई संख्या

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जबलपुर यश भारत l भारत समेत दुनियाभर से गिद्ध विलुप्त होते जा रहे हैं। भारतीय गिद्धों का विलुप्त होना मनुष्य और पर्यावरण संरक्षण के लिए घातक है, क्योंकि गिद्ध प्राकृतिक तौर पर सफाई में मदद करते हैं। उनके आहार में मुख्य तौर पर मरे हुए जानवर शामिल होते हैं। जबलपुर में गिद्धों की गणना को लेकर इस बात का खुलासा हुआ है कि गिद्धों में प्रजनन क्षमता लगातार घट रही है जिसके चलते अवयस्क गिद्ध की संख्या पिछले वर्ष के मुकाबले कम हुई हैl जो चिंता का विषय हैl

होती है तस्करी

एक शोध के अनुसार गिद्धों की कमी का सबसे बड़ा कारण तस्करी और मवेशियों के इलाज में इस्तेमाल डाइक्लोफेनाक नामक दवा है। इस दवा से मवेशी और मनुष्य दोनों के लिए कोई खतरा नहीं था, लेकिन जो पक्षी डाइक्लोफेनाक से उपचारित मरे हुए जानवरों को खाते थे उन पक्षियों के गुर्दे तेजी से खराब होने लगते थे और कुछ ही हफ्तों में उनकी मृत्यु हो जाती थी। यह शोध अध्ययन प्रोफेसर योगेश कुमार पटेल ने प्रसिद्ध लेखक बी आर नलवाया के शोध निदेशन में किया है।

गिद्धों की संख्या कम होने से मरे हुए जानवरों को जंगली कुत्तों और चूहों ने खाना शुरू कर दिया है, लेकिन ये गिद्धों की तरह शव को पूरी तरह खत्म करने में सक्षम नहीं होते हैं। जबकि गिद्धों का समूह एक जानवर के शव को लगभग 40 मिनट में साफ कर सकता है क्योंकि गिद्ध झुंड में रहते हैं। गिद्धों का समूह एक किलोमीटर की ऊंचाई से भी मरे हुए जानवर की गंध सूंघ लेता है और उसे देख लेता हैं।

 

दुनियाभर में 23 प्रजातियां

 

गिद्धों की संख्या तेजी से घट रही है। इसका कारण प्रदूषण और घटते जंगलों के चलते नष्ट होते उनके प्राकृतिक आवास हैं। मध्य प्रदेश में व देश में भी अपेक्षाकृत इनकी संख्या कम हुई है। दुनिया भर में 23 प्रजाति के गिद्ध (वल्चर) पाए जाते हैं, जिसमें से भारत में केवल 9 प्रजातियां बताई जाती है।

यह है आंकड़े

प्रदेश व्यापी गिद्ध गणना के क्रम के अंतर्गत वनमण्डलाधिकारी वन मंडल सामान्य जबलपुर ऋषि मिश्र के निर्देशन में समस्त परिक्षेत्र में गिद्धों की गणना प्रारंभ की गई। जिसमें परिक्षेत्र अधिकारी पाटन श्रीमती विशाखा तिनखेड़े के द्वारा पाटन परिक्षेत्र एवम् परिक्षेत्र अधिकारी शहपुरा श्रीमती सोनम जैन के नेतृत्व में क्षेत्रीय कर्मचारियों द्वारा पूर्व से चिन्हांकित स्थलों पर जाकर गिद्धों की गणना की गई। जिसमें पाटन परिक्षेत्र की तमोरिया, हरदुआ और कटंगी बीट में 70 व्यस्क तथा 11अवयस्क गिद्ध पाए गए। इसी प्रकार शहपुरा परिक्षेत्र की बेलखेड़ा बीट में 06 तथा गुबरा खुर्द बीट में 02 व्यस्क गिद्ध पाए गए। इस प्रकार अंतिम दिन कुल 78 वयस्क तथा 11अवयस्क गिद्ध पाए गए। जबकि वर्ष 2021 की गणना में 28 अवयस्क एवं 64 वयस्क गिद्ध पाए गए थे।

यह है प्रजनन काल

गिद्ध धीमी गति से प्रजनन करने वाले पक्षी हैं। वे युवा होते हैं और पांच साल बाद ही प्रजनन शुरू करते हैं। मादा गिद्ध प्रजनन के मौसम में प्रति वर्ष केवल एक अंडा देती हैं। प्रजनन का मौसम अक्टूबर से अप्रैल तक छह महीने तक रहता है।

 

गिद्ध एकांगी पक्षी होते, जो जीवन के लिए जोड़ी बनाते हैं। यह उनके प्रजनन को प्रभावित करता है। प्रजनन काल के दौरान अनुकूल खाद्य आपूर्ति और जलवायु परिस्थितियाँ भी प्रजनन की सफलता को निर्धारित करती हैं। यही वजह है कि कैप्टिव (बंद जगह में) प्रजनन के लिए प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है।

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