जबलपुर के महापौर- जन आंदोलन के प्रणेता डा. के. एल. दुबे पांच पार्षदों के सहारे चुने गए महापौर

डा. के. एल. दुबे वैसे तो होम्यिोपैथी चिकित्सक थे लेकिन उनकी असली पहचान जनता व कर्मचारियों के नेता के रूप में थी। डा. के. एल. दुबे कट्टर समाजवादी और राम मनोहर लोहिया के अनुयायी थे। वे मूल रूप से कानपुर देहात के ग्राम रामसारी तहसील घाटमपुर के निवासी थे। लोहिया की तरह कद काठी होने और जबलपुर में किसी भी समस्या के लिए जन आंदोलन करने के कारण लोग उन्हें ‘जबलपुर का लोहिया’ कहने लगे थे। समाजवादियों की तरह पूरे समय उत्तेजित दिखने वाले डा. के. एल. दुबे की स्थायी पोशाक धोती कुर्ता थी। उनके कुर्ते की बांह कोहनी तक मुड़ी रहती थी। तुर्शी व जुझारूपन उनका स्थायी भाव था। उनका पूरा नाम कन्हैया लाल दुबे था लेकिन शायद ही कोई उन्हें इस नाम से पहचानता था। वे तो सभी के लिए डा. के. एल. दुबे ही थे।
कानपुर और जबलपुर में रहने के दौरान डा. के. एल. दुबे ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। कलकत्ता से होम्यिोपैथी की शिक्षा ग्रहण करने के बाद डा. के. एल. दुबे वर्ष 1944 में जबलपुर आ गए। उन्होंने वर्ष 1946-47 में प्रेक्टिस शुरू की। तुलाराम चौक में उनकी डिस्पेंसरी थी। डाक्टरी प्रेक्टिस का सिलसिला वर्ष 1963-64 तक चला। इसके बाद वे राजनीति व जन सेवा में पूरी तरह से सक्रिय हो गए और प्रेक्टिस पीछे छूट गई।
स्वतंत्रता के पूर्व जबलपुर नगर निगम चुनाव में वे वर्ष 1945 में पहली बार राइट टाउन वार्ड से पार्षद चुने गए। वर्ष 1957 में डा. के. एल. दुबे होम साइंस कॉलेज से एमएलबी स्कूल मार्ग में गायकवाड़ कम्पाउंड में किराए के मकान में रहने आ गए। वर्ष 1957 से ही मृत्यु पर्यत तक उनका स्थायी अड्डा नगर निगम से शास्त्री ब्रिज (मोटर स्टेंड) जाने वाले रास्ते पर लक्ष्मी टेलर की दुकान हुआ करती थी। लक्ष्मी टेलर के मास्टर मूलचंद थे। इसके अलावा डा. के. एल. दुबे का दूसरा अड्डा इसी मार्ग के सामने दूसरी ओर जहांगीराबाद की अबू वकर की साइकिल दुकान थी। वे सुबह से नगर निगम पहुंच जाया करते थे और दिन भर दोनों जगहों पर वे लोगों से मिलते-जुलते थे और उनका समय बीतता था।
डा. के. एल. दुबे रहते तो राइट टाउन में थे लेकिन उनकी पूरी तरह राजनीति व जन सेवा घमापुर में केन्द्रित थी। लगातार सक्रिय रहने के कारण वे वर्ष 1956 में पूर्वी घमापुर वार्ड और वर्ष 1973 में लालमाटी वार्ड से पार्षद चुने गए। वर्ष 1963 में कांग्रेस की ओर से नारायण प्रसाद चौधी जब जबलपुर नगर निगम के महापौर निर्वाचित हुए तब डा. के. एल. दुबे सोशलिस्ट उम्मीदवार के रूप में उप महापौर बने। इस चुनाव में डा. के. एल. दुबे ने बाबूराव परांजपे को हराया था। कहा जाता है कि जब तक डा. के. एल. दुबे रहे तब तक बाबूराव परांजपे का राजनीति में सूर्य नहीं चमक पाया।
डा. के. एल. दुबे घमंडहीन, जातपात न मानने वाले और लोगों में एकदम घुल जाने वाले व्यक्ति थे। जाति से ब्राम्हण होने के बावजूद वे सफाई कर्मचारियों के एकमेतन नेता रहे। उन्होंने कई प्रादेशिक व केन्द्रीय शासन के कर्मचारियों की यूनियन को एक सूत्र में बांध कर उनका लम्बे समय तक नेतृत्व किया। वर्तमान जबलपुर पूर्व विधानसभा क्षेत्र उनका कार्यक्षेत्र रहा था और राजनीति में मुख्य आधार दलित वोट रहा। डा. के. एल. दुबे के जन आंदोलन घमापुर और आसपास के क्षेत्र से शुरू होते और धीरे धीरे पूरे शहर में उसका असर देखने को मिलता था। पानी की कमी के समय मटके फुड़वाने का जन आंदोलन उनकी ही देन है।
डा. के. एल. दुबे का तत्कालीन नगर निगम प्रशासक एल. पी. तिवारी से हर समय टकराव बना रहता था। एल. पी. तिवारी के प्रशासन काल में जबलपुर में नगर निगम ने कई महत्वपूर्ण कार्य किए थे लेकिन डा. दुबे प्रतिदिन उनके सामने समस्याओं की फेहरिस्त रख कर आंदोलन की चेतावनी दिया करते थे। वर्ष 1967 का एक वाक्या यह भी है कि जगमोहन दास की मूर्ति स्थापित कर दी गई थी लेकिन उसका अनावरण कार्यक्रम तय नहीं हो पा रहा था। इस बात से डा. के. एल. दुबे उत्तेजित थे। उन्होंने नगर निगम प्रशासक को चेतावनी दी कि एक निश्चित तारीख को वे स्वतंत्रता सेनानी व सर्वोदयी नेता गणेश प्रसाद नायक से मूर्ति का अनावरण करवा देंगे। इस बात को सुन कर एल. पी. तिवारी तुरंत भोपाल रवाना हुए और वहां से विजयाराजे सिधिंया का कार्यक्रम तय कर के आ गए। जगमोहन दास की मूर्ति का अनावरण हुआ। विजयाराजे सिधिंया मंच से उतर कर गणेश प्रसाद नायक के पास इस अनुरोध के साथ गईं कि वे ऊपर मंच पर चल कर मूर्ति का अनावरण करें। नायक जी ने विनम्रता से इंकार कर दिया। इस कार्यक्रम में डा. के. एल. दुबे ने सत्य शोधक संघ का पर्चा एक नागरिक के नाम से वितरित करवाया, जिससे काफ़ी विवाद हुआ।
डा. के. एल. दुबे वर्ष 1973-74 में सोशलिस्ट पार्टी की उम्मीदवार के रूप में जबलपुर के महापौर चुन लिए गए। उस समय सिर्फ पांच समाजवादी ही पार्षद के रूप में चुने गए थे, लेकिन डा. दुबे ने कांग्रेस व निर्दलीयों के सहयोग से जबलपुर नगर निगम की सत्ता जीत ली थी। उस समय अनिल शर्मा सोशलिस्ट उप महापौर चुने गए थे। डा. दुबे वर्ष 1975 में स्थायी समिति के कार्यवाहक अध्यक्ष चुने गए। इसी वर्ष वे नगर निगम में प्रतिपक्ष के नेता बने। डा. दुबे का जिंदगी भर कार्य क्षेत्र जबलपुर पूर्व रहा और वर्ष 1977 में विधानसभा चुनाव में वे जबलपुर पश्चिम कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए और विधायक निर्वाचित हुए। इसके बाद वर्ष 1980 तक डा. दुबे कांग्रेस विधायक दल के मुख्य सचेतक रहे। उन्होंने जबलपुर नागरिक सहकारी बैंक के अध्यक्ष का दायित्व भी निभाया और विश्वविद्यालय कोर्ट सभा के सदस्य भी रहे।
डा. के. एल. दुबे का समाजवाद इस मायने में महत्वपूर्ण है कि वे जीवन पर्यंत किराए के मकान में रहे और पैदल या साइकिल से नगर निगम या अपने कार्य क्षेत्र में जाते रहे।# पंकज स्वामी