कल धूमधाम से मनाई जाएगी देवउठनी, घर-घर होगा तुलसी शालिग्राम का विवाह, बाजार में रौनक

कटनी, यशभारत। दीपावली के 11 दिन बाद कल देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। पर्व को लेकर एक बार फिर बाजार में चहल-पहल देखी जा रही है। देवउठनी एकादशी के दिन लोग घरों में भगवान सत्यनारायण की कथा सुनने के साथ ही तुलसी शालिग्राम के विवाह पूजन भी करेंगे। देवों के जागने के साथ ही मांगलिक कार्यों पर लगा विराम भी हट जाएगा और शादी विवाह भी शुरू हो जाएंगे। भगवान विष्णु की पूजा अर्चना और माता तुलसी व शालिगराम का विवाह होगा। घरों में गन्ने के मंडप के नीचे तुलसी और शालिगराम के विवाह के साथ ही सभी मांगलिक कार्यों की शुरूआत हो जाएगी। देवउठनी ग्यारस को लेकर बाजारों में ही चहल-पहल नजर आ रही है। छोटी दीवाली के रूप में मनाए जाने वाले इस पर्व का अपना अलग महत्व है। एक बार फिर सारा घर आंगन दीपकों की जगमग रोशनी से जगमगा उठेगा। शहर के थाना तिराहा, सुभाष चौक, झंडाबाजार के अलावा उपनगरीय क्षेत्रों में पूजा में उपयोग आाने वाले गन्नों की बिक्री हो रही है। गन्ना व्यापारियों के अनुसार इस बार बारिश नहीं होने से किसानों को गन्ना उत्पादन में ज्यादा लागत लगाना पड़ी है, इसके बावजूद बाजार में गन्ने की कीमत गुणवत्ता अनुसार 20 रुपए से लेकर 50 रुपए है। शहर के मुख्य मार्ग पर विभिन्न प्रकार की पूजन सामग्री की दुकानें सज चुकी है। बेर, सीताफल, चना की भाजी, आंवला, फूल माला, लक्ष्मी गणेश जी के अलावा मिट्टी के बने बर्तन खिलौने सहित रंगो से रंगी विभिन्न प्रकार की पूजन सामग्री की दुकानें भी शहर में अनेक जगह लगी हुई।
क्या है पर्व की मान्यता
ऐसी मान्यता है कि देवता चार माह के शयन के बाद एकादशी से जागते हैं और उनकी उपस्थिति में ही ग्यारस से शुभ कार्यों की शुरूआत होती है। जो मुहूर्त के हिसाब से आगे तक चलती है। हिन्दू धर्म में कार्तिक शुक्ल पक्ष की ग्यारस का विशेष महत्व है। यह भी कहा जाता है कि अयोध्या में भगवान राम के वन जाने के बाद किसी भी घर में 14 वर्ष तक कोई मांगलिक कार्य नहीं हुये थे। भगवान श्रीराम के वापस लौटने के बाद अयोध्यावासियों ने दिये जलाकर उनका स्वागत किया था तथा दस दिनों तक चले उत्सव का समापन ग्यारस को माता तुलसी और शालिगराम के विवाह के साथ हुआ था। कार्तिक शुक्ल एकादशी के अवसर पर तुलसी पूजन का उत्सव मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि तुलसी का पौधा गंगा जमुना के समान पवित्र है। शास्त्रों में इस एकादशी को अनेक नामों से संबोधित किया जाता है। जिसमे प्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी, देवउठनी एकादशी आदि प्रमुख रूप से उल्लेखित हैं। एकादशी पर्व पर गन्ने, सीताफल, सिंघाड़े, बेर, मकोरा, अमरूद, चना की भाजी आदि मौसमी फलों की पूजा होती है।

