आउटसोर्स कर्मचारियों को हटाने के बाद बिगड़ी शहर की सफाई व्यवस्था, कई इलाकों में चार दिन में एक बार लग रही झाड़ू
कटनी। 300 से ज्यादा आउटसोर्स कर्मचारियों के घर बैठ जाने की वजह से शहर में सफाई व्यवस्था का हाल बुरा हो चुका है। नगर निगम में वित्तीय संकट के बाद जिन कर्मचारियों को हटाया गया, उनमें पहले दौर के सत्यापन के बाद करीब 300 कर्मचारियों की ही वापसी हो पाई है, जिनमें स्वास्थ्य विभाग के अलावा अन्य विभागों में कार्यरत कर्मचारी भी शामिल है। आउटसोर्स कर्मचारियों की छंटनी का सबसे ज्यादा असर शहर की सफाई व्यवस्था पर पड़ा है। कई इलाके तो ऐसे हैं जहां चार दिन में एक बार झाड़ू लग पा रही है। दूरस्थ वार्डों में तो कई कई दिन सफाई कर्मियों के दर्शन नहीं हो रहे। सूत्र बताते है कि नगर निगम में जिस कंपनी के जरिए आउटसोर्स कर्मचारी रखे गए थे, उसका एग्रीमेंट 30 सितंबर को खत्म हो गया है। अब सेडमैप के जरिए कर्मचारी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इस विषय पर जल्द ही एमआईसी की बैठक में चर्चा भी होना हैं। इसके बाद नए नए टेंडर की प्रकिया होगी।
सूत्रों का कहना है कि आउटसोर्स कर्मचारियों की छंटनी का सर्वाधिक असर सफाई व्यवस्था पर ही पड़ा है। नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत कर्मचारियों के भरोसे शहर के 45 वार्डों की सफाई नहीं हो पा रही। वर्तमान स्थिति में किसी वार्ड में 6 तो किसी वार्ड में 9 कर्मचारी तक काम कर रहे हैं, इनमें झाड़ू लगाने से लेकर नाले नालियों की सफाई करने वाले कर्मचारी शामिल है। एमएसडब्ल्यू कंपनी के पास कचरा कलेक्शन का काम है किंतु जब मोहल्लों में झाड़ू लग ही नहीं पा रही तो कचरा गाड़ी भी क्या कर लेगी। ज्यादातर वार्ड दरोगा और पार्षदों की यही शिकायत है कि आउटसोर्स कर्मचारियों के हटने के पहले वार्डों में डबल कर्मचारी काम कर रहे थे, इसलिए सफाई व्यवस्था दुरुस्त थी किन्तु कर्मचारियों की छंटनी के बाद हालात बिगड़ रहे है। कई वार्ड ऐसे हैं जिनका विस्तार अधिक है, वहां बमुश्किल 5 या 6 कर्मचारियों से काम चलाने के कारण चार दिन में एक बार झाड़ू लग पा रही है। नेहरू वार्ड और बंशस्वरूप वार्ड जैसे बड़े इलाकों में इन दिनों सफाई का हाल बुरा है।
वित्तीय स्थिति से गड़बड़ाया गणित
सूत्र बताते हैं कि नगर निगम की माली वित्तीय हालत गड़बड़ाने के कारण कुछ दिनों पहले प्रभारी आयुक्त शिशिर गेमावत ने आउटसोर्स कर्मचारियों की उपयोगिता का परीक्षण करने के लिए वैरिफिकेशन करने के निर्देश दे दिए। इसमें कई तरह की विसंगतियां भी सामने आई। बड़ी संख्या में जिनके नाम पर वेतन निकल रहा था, ऐसे कर्मचारी अपने दस्तावेज के साथ स्वयं हाजिर नहीं हो पाए, जिससे आरोप लगे कि फर्जी तरीके से कर्मचारियों के नाम पर वेतन निकल रहा था, इस खेल में बड़े नाम शामिल थे। आरोप तो पार्षदों पर भी लगे कि किसी को 2, किसी को 3 तथा किसी को चार – पांच सफाई कर्मचारियों का पैसा मिल रहा था, जबकि वे कर्मचारी केवल रजिस्टर पर थे। सत्यापन के बाद सैकड़ों कर्मचारियों को घर बिठा दिया गया। कुछ दिन बाद करीब 300 कर्मचारियों की वापसी हो गई। ये कर्मचारी अलग अलग विभागों में सेवाएं दे रहे है। स्वास्थ्य विभाग के पास अब पहले की तुलना में कम आउटसोर्स कर्मचारी है, जिससे शहर की सफाई व्यवस्था बिगड़ी हुई है। आरोप तो यह भी है कि वार्डों में जो परमानेंट सफाई कर्मचारी है वे कम पैसे देकर अपना काम दूसरों से करवा रहे हैं। मतलब यह है कि वेतन उन्हें मिल रहा है, पर काम कोई और कर रहा है, और इसकी जानकारी पार्षदों और वार्ड हवलदार को भी है।
वापसी होगी या नहीं ? बड़ा सवाल
इस बीच बड़ा सवाल यही है कि जिन सैकड़ों आउटसोर्स कर्मचारियों को घर बैठा दिया गया है, इनकी वापसी होगी या नहीं। सूत्र बताते है कि अभी ये सारे लोग जबलपुर की एक संस्था से नगर निगम के हुए अनुबंध के आधार पर काम कर रहे थे। अब नगर निगम नए टेंडर करने जा रहा है। यदि नई संस्था इन्हें अनुबंधित करेगी तो जरूरत के हिसाब से इनकी सेवाएं ली जा सकती है। फिलहाल सेडमैप से काम कराया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक जितने कर्मचारी नियुक्त थे, उसमें बड़ा गड़बड़झाला था, किंतु जो वास्तव में कार्य कर रहे थे, उनके सामने फिलहाल संकट आ खड़ा हुआ है, दूसरी ओर जिन विभागों में ये काम कर रहे थे, वहां फिलहाल की स्थिति में काम भी प्रभावित हो रहा है।