क्या हरिराम नाइयों की वाट लगा पायेंगे वफादार
मान मनौवल, ताल ठोकने वाले सच-मुच लड़ेंगे चुनाव
भोपाल/ जबलपुर यश भारत। टिकटों का दौर पूरा हो गया है। अब दौर शुरू हुआ है। रूठों को मनाने का, विरोधियों के साथ बैठने का । इस सिलसिले में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है राजनीति के हरिराम नाइयों की जो यहां की वहां फैलाने में माहिर होते हैं। शोले का हरिराम नाई कौन नहीं जानता। जो जय- वीरू की बिछाई विषाद पर उनका मोहरा बनकर काम करता था। राजनीति भी किसी विषाद से कम नहीं जहां हरिराम के माध्यम से खबरें यहां से वहां पहुंचाई जाती हैं। बात सिर्फ क्षेत्रीय स्तर की नहीं है। राजनीति तो राजनीति होती है चाहे वह गली मोहल्लों की हो या दिल्ली- भोपाल की हो। छोटी जगह पर वहां के छोटे समीकरण होते हैं तो बड़े स्तर की राजनीति में उस स्तर के दाव पेंच लगाए जाते हैं। लेकिन राजनीति का मिजाज वही रहता है कलेवर वही रहता है।
कभी अपने तो कभी पराये
राजनीति में ना तो कोई परमानेंट दोस्त होता है ना कोई परमानेंट दुश्मन होता है। जरूरत पड़ने पर अपनों को भी पराया कर दिया जाता है और पराये कब अपने बन जाएं कहा नहीं जा सकता। इसमें सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं राजनीति के हरिराम नाई। शोले में तो हरिराम जय वीरू की विषाद पर जेलर को प्लांटेड समाचार पहुंचाता था।लेकिन राजनीति के हरिराम कभी खबर पहुंचाने का माध्यम बनते हैं तो कभी काम की खबरें लेकर भी आते हैं। जिसमें रूठे को मनाने में और विरोधियों को गलत खबर पहुंचाने में इन लोगों की भूमिका कभी सामने तो नहीं आती लेकिन उनकी भूमिका हमेशा बड़े महत्वपूर्ण बनी रहती।
बना देते हैं बिगड़े काम
ऐसा नहीं है कि ये लोग राजनीति की अंदरूनी खबर सिर्फ यहां की वहां करने में माहिर होते हैं। कई ऐसे भी हैं जो सेटलमेंट के मास्टर माने जाते हैं। वह अपने नेता के लिए कई ऐसे काम भी कर जाते हैं जो कभी कोई सोच भी नहीं पाता। जब परिणाम सामने आते हैं तो ऐसे काम ही उसके मुख्य कारक होते हैं। जबकि चुनावी बिगुल बज चुका है तो अब राजनीति के इन हरीराम की पूछ बढ़ गई है। जो किसी का खेल बनाएंगे तो किसी का खेल बिगड़ेंगे। टिकटों के बाद जबलपुर से लेकर भोपाल तक हो रहे हंगामें को थामने में और रूठो को मनाने में इन चेहरों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होगी। जिसे भाजपा और कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भली भांति जानता है।