संगठन की बड़ी कुर्सी पर काबिज होने दावेदारों की दिल्ली दौड़ तेज हुई.

जबलपुर यश भारत। प्रदेश में सत्ताशीन पार्टी के संगठन की सबसे बड़ी कुर्सी पर आसीन होने के लिए दावेदारों की दिल्ली दौड़ तेज हो गई है। जैसी की जानकारी लग रही है की होली के पूर्व मार्च के पहले पखवाड़े में ही कुर्सी पर आसीन होने वाले का नाम भी घोषित हो जाएगा जब से इसकी जानकारी दावेदारों को लगी है वे ज्यादा एक्टिव होकर सत्ता संगठन और संघ की परिक्रमा में लग गए हैं। दावेदारों की सूची में आधा दर्जन से ज्यादा नाम तैर रहे हैं जिनमे सांसद मंत्री पूर्व मंत्री विधायक और पूर्व विधायक तक शामिल हैं। जो अपनी तरफ से कुर्सी पर आसीन होने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। इसी बीच अचानक एक कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री का नाम अचानक उछलकर सामने आने से दावेदारों में बेचैनी बढ़ गई है अब देखना यह है कि आखिर में सफलता किसे हाथ लगती है। और कौन इस कुर्सी पर आसीन हो पाता है। वैसे तो अब तक इस कुर्सी पर आसीन होने वाले का नाम घोषित हो जाना चाहिए था लेकिन किसी न किसी कारणवश इसमें विलंब होता रहा। कभी दिल्ली विधानसभा के चुनाव आडे आ गये तो कभी मुख्यमंत्री का विदेश दौरा तो कभी प्रधानमंत्री का मध्य प्रदेश दौरा और राजधानी में आयोजित होने वाली ग्लोबल इन्वेस्टर समिट। अब जबकि यह सारे काम निपट गए हैं तो पूरा फोकस प्रदेश संगठन के नए नेता को चुने जाने पर है। जिसके चलते प्रदेश में सत्ता रुढ पार्टी के गलियारों में हलचल तेज हो गई है। एक तरफ जहां दावेदार अपने तरीके से एक्टिव मोड पर नजर आ रहे हैं तो दूसरी तरफ उनके समर्थक भी अपने-अपने तरीके से अपने नेता को इस बड़ी कुर्सी पर आसीन करने के लिए अपने संपर्कों के माध्यम से प्रदेश और देश के शीर्ष नेतृत्व तक अपने नेता की ताजपोसी कराने अपनी बात पहुंचा रहे हैं। कोई
कोई जातीय समीकरण का गुणा गणित बता रहा है तो कोई बड़े नेताओं तक यह बात पहुंचाने की कवायद में लगा है कि यदि उनके नेता को इस बड़ी कुर्सी पर आसीन कर दिया गया तो संगठन को बड़ा फायदा होगा। ऐसे में पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी पशोपेस में है कि किसे इस कुर्सी पर आसीन किया जाए। इसको लेकर पार्टी के जिम्मेदार शीर्षनेतृत्व आम सहमति बनाने से लेकर माथापच्ची करने तक में लगा है। क्योंकि जो जो नाम दावेदारों के रूप में शीर्ष नेतृत्व तक पहुंच रहे हैं सभी अपने आप में वजन रखते है ऐसे में किसी एक का चुनाव करना बड़ी मुश्किल बात है पार्टी के वरिष्ठ नेताओ की कोशिश है कि आम सहमति के जरिए ही किसी नेता का चुनाव हो जाए इसके लिए पार्टी का शीर्षनेतृत्व अलग-अलग फार्मूले पर काम कर रहा है। अब देखना यह है कि अंत में क्या होता है और कौन इस बड़ी कुर्सी पर आसीन हो पता है।