तकनीक मानव मूल्य, श्रम व संवेदन का स्थान नहीं ले सकती – पटेल – आईएफएम में आयोजित किया गया ट्रांसफार्म रूलर इंडिया द्वारा संवाद कार्यक्रम

तकनीक मानव मूल्य, श्रम व संवेदन का स्थान नहीं ले सकती – पटेल
– आईएफएम में आयोजित किया गया ट्रांसफार्म रूलर इंडिया द्वारा संवाद कार्यक्रम
भोपाल यशभारत। तकनीक हमारे जीवन को बेहतर बना सकती है, लेकिन वह मानव मूल्य, श्रम और संवेदना का स्थान नहीं ले सकती। जंगली, वन्यजीवी और नदियों जैसे अमूल्य संसाधनों के संरक्षण को प्राथमिकता है। मध्यप्रदेश में 92 नदियों के उद्गम स्थल चिह्नित किए जा चुके हैं, जिनमें से अधिकांश आदिवासी क्षेत्रों में स्थित हैं। आज भी शिवरात्रि जैसे पर्व पर आदिवासी इन स्थलों की पूजा करते हैं। पढ़े-लिखे लोग इनसे पूरी तरह कट चुके हैं। यह बात पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल ने आईएफएम भोपाल में आयोजित ट्रांसफार्म रूरल इंडिया द्वारा आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही। वन प्रबंधन संस्थान के सहयोग से कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। रूरल इंडिया द्वारा विशेष संवाद किया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पटेल ने कहा कि हम पानी को केवल उपभोग की दृष्टि से देखते हैं। उसकी उत्पत्ति और संरक्षण की चिंता नहीं करते। यह सोच हमें बदलनी होगी। मंत्री ने पटेल ने नर्मदा परिक्रमा पथ और पारंपरिक जीवन मूल्यों पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि क्या हम अपने विगत की गलतियों को स्वीकार कर रहे हैं? क्या हम उनसे सीखकर भविष्य की योजना में उन्हें शामिल कर रहे हैं?
ग्राम पंचायत हेल्पडेस्क की शुरूआत की
कार्यक्रम के दौरान ग्राम पंचायत हेल्पडेस्क की शुरुआत की गई। जिसकी प्रेरणास्रोत बनी रेशमा निनामा जो अलसिया, पेटलावद से आई और ग्राम स्तर पर परिवर्तन का नेतृत्व कर रही हैं। इस अवसर पर पद्मश्री जनक पल्टा ने अपने जीवन की यात्रा साझा की। पल्टा ने सौर ऊर्जा आधारित रसोई, सोलर आयरन, वाष्पीकरण यंत्र और प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर जैविक उत्पादों का निर्माण और विपणन सिखाया। कार्यक्रम में छोटे सिंह (निदेशक, पंचायती राज), डॉ. पीके विश्वास, डॉ. उज्जवल शर्मा, राजपाल गौर (महिला एवं बाल विकास विभाग), डा के रविचंद्रन (निदेशक) अलीवा दास, राजेश सिंह, नेहा गुप्ता, जितेन्द्र पंडित मौजूद रहे।
महिलाओं ने रखी अपनी बात
कार्यक्रम के दौरान महिलाओं ने अपनी बात रखी। खातेगांव की अंजली ने कहा कि महिलाएं शाम 5 बजे के बाद घर से निकलने में डरती हैं। उन्होंने सडक़ प्रकाश व्यवस्था और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन की मांग की।
रमा केवट ने बताया कि लड़कियां आठवीं के बाद स्कूल छोड़ देती हैं क्योंकि स्कूल दूर हैं और सुरक्षा का अभाव है। छेड़छाड़ जैसी घटनाओं से डर और बढ़ जाता है। बरछा की महिला सरपंच ने साझा किया कि महिला नेतृत्व को लेकर अब भी उपहास और असुरक्षा का वातावरण है, जिससे लड़कियों को स्कूल भेजने में डर बना रहता है।
स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर के प्रतिनिधि डॉ. विश्वास ने कहा कि सतत विकास लक्ष्यों को लागू करने की शुरुआत ग्रामीण भारत से ही होनी चाहिए। महिलाओं को आज भी संसाधनों पर अधिकार नहीं है, जबकि वे सबसे बेहतर प्राकृतिक संसाधन प्रबंधक हैं। उन्होंने जोर दिया कि हमें सांस्कृतिक अवरोधों को समझना होगा और महिला नेतृत्व को प्रोत्साहित करना होगा। इस संवाद के माध्यम से यह स्पष्ट हुआ कि ग्रामीण भारत का भविष्य तब ही उज्ज्वल होगा जब उसकी परिकल्पना स्थानीय सहभागिता, पारंपरिक ज्ञान और महिलाओं के नेतृत्व से की जाएगी।







