वह कई सालों से अपने पिता के साथ हर रविवार को हुकुमचंद मिल श्रमिक संघर्ष समिति की मीटिंग शामिल होने आती थी। पिता को भरोसा था कि उनके सहित 6 हजार मिल श्रमिकों का बकाया रुपया कभी तो मिलेगा लेकिन उनके जीते जी नहीं मिल पाया। दो साल पहले इस महिला के पिता की बीमारी से मौत हो गई।
मरने के पूर्व पिता ने बेटी को कहा कि यह लड़ाई मेरे अकेले की नहीं है बल्कि मिल के सारे श्रमिकों की है। मेरे भी खून-पसीना से कमाया गया 4.50 लाख रु. बकाया है। मेरी मौत के बाद भी इस श्रमिक संघर्ष में पूरा साथ देना और हर हफ्ते मीटिंग में शामिल होना।
पिता ने बेटी से यह भी कहा कि मेरे मरने के बाद हर मीटिंग में मेरे कपड़े लेकर जाना ताकि सरकार को, मेरे साथी श्रमिकों को भी मेरी उपस्थिति का एहसास होता रहे। तब से यह महिला हर हफ्ते के मीटिंग में एक थैली में अपने पिता के कपड़े साथ में लेकर आती है। उसका मानना है कि आज पिता भले ही गुजर गए हो लेकिन उनके शर्ट-पेंट उनकी मौजदूगी का एहसास कराते हैं।
यह कहानी है पिता से किए वादे को पूरा करने और उनके खून-पसीने की कमाई को पाने का संघर्ष कर रही महिला लता जाधव (52) निवासी कुशवाह नगर की। मामला उनके पिता स्व. भगवानदास चौहान का है जो हुकुचमंद मिल में थे और 35 साल तक सेवाएं दी। इस बीच 1991 में मिल बंद हो गई। तब वे भी मिल में ही काम करते थे। इसके बाद उनके परिवार पर भी आर्थिक संकट आ गया।