जादूगर आनंद से प्राइम टाइम विद आशीष शुक्ला में खास बातचीत, भारतीय जादू का विश्व में विशेष स्थान है: जादूगर आनंद, 1978 में वर्ल्ड मैजिशियन कन्वेंशन में गोल्ड मेडल मिला, देश के सबसे सम्मानित जादूगर है आनंद

जबलपुर, यश भारत। दुनिया भर में 38000 से ज्यादा शो करने वाले और भारतीय मैजिशियन आर्ट को एक नया मुकाम देने वाले जादूगर आनंद से प्राइम टाइम विद आशीष शुक्ला में खास बातचीत की गई। जहां उन्होंने 5 साल की उम्र से जादू की तरफ बढ़ते रुझान से लेकर आचार्य रजनीश के साथ बिताए वक्त और दुनिया भर में हासिल किया अपने अनुभव को विस्तार से साझा किया है। जहां उन्होंने जादूगरों की वर्तमान स्थिति के साथ-साथ समाज में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका और वर्तमान मनोरंजन जगत पर अपनी बातें खुलकर सामने रखी। इस साक्षात्कार के दौरान उन्होंने सबसे महत्वपूर्ण बात बच्चों के बौद्धिक विकास और उनकी रुचि को लेकर की जिसे आप यश भारत न्यूज़ चैनल के साथ-साथ यश भारत के सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर विस्तार से देख सकते हैं।

बच्चों के हुनर को पहचाने
कार्यक्रम की शुरुआत में जादूगर आनंद ने अपनी बचपन से जुड़ी यादें साझा किया और उन्होंने बताया कि उन्होंने 5 साल की उम्र में ही डिसाइड कर लिया था कि उन्हें जादूगर बनना है। वह लगातार उस दिशा में बढ़ते रहे। पहले तो घर वालों ने इस बात का विरोध किया लेकिन जब वह सफल हो गए तो उन्हें घर में और बाहर दोनों जगह सम्मान मिला। इसी तरह उन्होंने अभिभावकों से भी कहा कि बच्चों की जो क्षमताएं होती हैं उन्हें पहचानना चाहिये, जो उनके मन में है उन्हें उस दिशा में काम करने देना चाहिए। जिससे वे अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग करके उस कार्यक्षेत्र में सफलता हासिल करते हैं ना कि उन पर उनकी मर्जी के खिलाफ चीजों को डालना चाहिए।
यह हजारों साल पुरानी कल है
जादूगर आनंद ने बताया कि भारतीय जादू और रशियन सर्कस का विश्व पटल पर विशेष सम्मान है और यह भारत की हजारों साल पुरानी कल है । इसके संरक्षण को लेकर सरकार को काम करना चाहिए। वर्तमान में जो सरकार है वह हमारी पुरातन परंपराओं का संरक्षण कर रही है। लेकिन इस क्षेत्र में अभी भी कोई काम नहीं किया गया है। क्योंकि जो जादूगर है मदारी है या सम्मोहन का काम कर रहे हैं वह पूरी जिम्मेदारी के साथ काम करते हैं। यदि उनमें भटकाव आ जाए या वे गलत दिशा में चले जाए तो वह अपनी इस कला का प्रयोग समाज विरोधी कार्यो में कर सकते हैं। इसको लेकर उन्होंने मादारियों के उदाहरण दिए जो गरीबी में जीवन जी रहे हैं लेकिन गलत काम नहीं करते , जो किसी तपस्या से कम नहीं है, जिसको लेकर सरकार को काम करना चाहिए।
ओशो चाहते थे मैं संन्यासी बनू
जादूगर आनंद ने बताया कि जब वे जादू की कला सीख रहे थे और जबलपुर में पढ़ाई करते थे इस दौरान उनकी मुलाकात आचार्य रजनीश ओशो से हुई, जो की जबलपुर में ही रहा करते थे। इस दौरान मैंने उनसे सम्मोहन का ज्ञान प्राप्त किया। उन्हें सदैव ही नई चीज़ सीखने और नई बातों को जानने को लेकर उत्सुकता रहती थी । वह मुझे जादू की कला सिखाते थे और मैं उनसे सम्मोहन का ज्ञान लेता था, जो कि मेरे गुरु भी थे। बाद में जब वे अमेरिका चले गए तो वे चाहते थे मैं भी उनके साथ रहूं और उनके अभियान को विश्व भर में आगे फैलऊ, लेकिन मुझे सन्यासी नहीं बना था मुझे अपनी दिशा में काम करना था। ऐसे में मैंने उनसे आज्ञा लेकर जादू के क्षेत्र में आगे बढ़ा। जादूगर आनंद ने बताया कि भगवा में एक शक्ति तो होती है क्योंकि जो लोग कभी उन्हें मिलने का समय नहीं दिया करते थे जब वे आचार्य रजनीश के साथ संत का जीवन बिता रहे थे इस दौरान वे सभी लोग उनके सामने आकर नतमस्तक हुआ करते थे।
यही पैदा हुआ यही मरना चाहता हू
जबलपुर में अगला शो करने के सवाल पर जादूगर आनंद ने बताया कि उन्होंने 7 साल पहले जबलपुर में अपना शो किया था और उसे समय उन्होंने सोचा था कि यह उनका जबलपुर में आखिरी शो होगा। लेकिन जबलपुर के लोग और संस्थाएं आज भी चाहती है कि वह अपना एक और शो जबलपुर में करें, साथ ही साथ उन्होंने बताया कि लोग जब सफलता हासिल कर लेते हैं तो वह अपने शहर को छोड़कर चले जाते हैं, वे दुनिया भर में शो करें हैं लेकिन अपना निवास स्थान जबलपुर में ही बनाया है । वे चाहते हूं कि जब उन की मृत्यु हो तो वह जबलपुर में ही हो जादूगर आनंद बताया कि जादू को वर्तमान समय में लोगों के फोकस बदलते जा रहे हैं और एक परिवार में जितने भी लोग हैं सभी के अलग-अलग फ़ोकस है। ऐसे में जादू की तरफ से लोगों का रुझान बदल रहा है लेकिन समय का चक्र गोल चलता है और ऐसे में दौर बदलते रहते हैं ,चीज बदलती रहती हैं। जादू हजारों साल पुरानी कला है ऐसे में यह कभी समाप्त नहीं होगी।