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दुख है, पिता को दफनाने के लिए बेटे को अदालत आना पड़ा… सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा ऐसा

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नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के 9 जनवरी 2025 के आदेश को चुनौती देने वाली विशेष अनुमति याचिका (स्रुक्क) पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। हाई कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें याचिकाकर्ता ने अपने पादरी पिता (ईसाई) को छिंदवाड़ा के एक गांव के कब्रिस्तान में दफनाने की अनुमति मांगी थी। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मृतकों को सम्मानपूर्वक दफनाने के अधिकार को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए और उसने इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाने पर जोर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि जिस व्यक्ति ने अपना पूरा जीवन गांव में बिताया, उसे वहां दफनाने की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती?
जस्टिस नागरत्ना ने राज्य सरकार की इस दलील पर भी आपत्ति जताई कि गांव के कब्रिस्तान में धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्तियों को दफनाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। कोर्ट ने राज्य और हाई कोर्ट की विफलता पर नाराजगी जताई और कहा, हमें दुख है कि एक व्यक्ति को अपने पिता को दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ा। न तो पंचायत, न ही राज्य सरकार, और न ही हाई कोर्ट इस समस्या का समाधान कर सका। कोर्ट ने सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता अपने पिता को अपनी निजी जमीन पर दफना सकते हैं, लेकिन इस पर राज्य ने आपत्ति जताई कि यह भूमि की च्पवित्रताज् को प्रभावित करेगा। कोर्ट ने सुनवाई के बाद अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया और कहा कि अंतिम निर्णय जल्द ही सुनाया जाएगा। जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ के सामने राज्य की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए और कहा कि दफनाने के लिए ईसाई जनजातियों के लिए निर्धारित क्षेत्र (जो गांव से 20-25 किलोमीटर दूर है) का उपयोग किया जाना चाहिए।
क्या है पूरा मामला?
याचिकाकर्ता एक ईसाई आदिवासी हैं, जिनके पिता का 7 जनवरी 2025 को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था। परिवार ने अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए गांव में दफनाने की योजना बनाई थी लेकिन गांव के कुछ लोगों ने इसका हिंसक विरोध किया। इसके कारण शव 7 जनवरी से अब तक शवगृह (मर्चरी) में रखा हुआ है। याचिका में उल्लेख किया गया है कि गांव छिंदवाड़ा में परंपरागत ग्राम पंचायत द्वारा कब्रिस्तान मौखिक रूप से ईसाई और अन्य जातियों के लिए विभाजित किया गया है। मामले में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने यह कहते हुए राहत देने से इनकार कर दिया था कि गांव छिंदवाड़ा में ईसाइयों के लिए कोई अलग कब्रिस्तान नहीं है। गांव से 20-25 किलोमीटर दूर करकपाल में कब्रिस्तान मौजूद है।

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