महिला सशक्तिकरण के नाम पर लूट की तैयारी, पहले स्व सहायता समूह के नाम पर हुआ खेल अब CLF की बारी

जबलपुर यश भारत। जिले में 2 दिसंबर से उपार्जन का कार्य प्रारंभ हो चुका है। हालांकि इसे गति पकड़ने में 4 से 5 दिन का समय लगेगा। इसके लिए 86 उपार्जन केंद्रों की स्थापना की गई है लेकिन उपार्जन शुरू होने के बाद भी उपार्जन में गोलमाल करने की तैयारी चल रही है। जिसमें महिलाओं को सामने रखकर पर्दे के पीछे से गोलमाल को लेकर पूरी तैयारी हो गई है। जिसमें क्लस्टर लेवल फेडरेशन के माध्यम से 10 से 15 उपार्जन केंद्र खोलने की तैयारी चल रही है। जिनकी जिला पंचायत लेवल पर जमकर खरीद फरोख्त हुई है,जिन्हें बोली लगाकर खरीदा गया है।अब बिचौलिए महिलाओं को सामने रखकर धान खरीदी करने की तैयारी कर रहे हैं।
प्रशासन नहीं ले रहा सीख
पिछले साल धान उपार्जन के द्वारान स्व सहायता समूह को लेकर सबसे बड़ा मामला सामने आया था। जहां जबलपुर से लेकर भोपाल तक प्रशासन के कान खड़े हो गए थे। आधा उपार्जन बीत जाने के बाद भी जबलपुर के अधिकारियों द्वारा 42 महिला स्व सहायता समूह के नाम ड्रॉप डाउन के लिए भोपाल भेज दिए गए थे । जब मामला गर्म हुआ तो भोपाल से आई हुई टीम द्वारा जिन 42 केंद्रों के लिए प्रस्ताव भेजे गए थे वहां जांच की गई तो भारी अनियमिताएं देखने को मिली जिस में से 36 प्रस्तावित केंद्रों के वेयरहाउस को ब्लैकलिस्टेड कर दिया गया था जो कि आज भी ब्लैकलिस्टेड है। उसके बाद भी कोई सीख नहीं ली गई और अब स्व सहायता समूह की जगह उनके बड़े स्वरूप क्लस्टर लेवल फेडरेशन को खरीदी देने की तैयारी की जा रही है।
किन महिलाओं को मिला फायदा
महिलाओं को सशक्त करने के लिए पिछले कई वर्षों से स्व सहायता समूह को उपार्जन का काम दिया जा रहा है। लेकिन ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कितनी महिलाओं को इसका फायदा मिला और किन के खाते में कितना पैसा गया इसकी भी जांच होनी चाहिए। सबसे बड़ी बात तो यह है कि उपार्जन को लेकर जो प्रासंगिक व्यय और कमीशन की राशि का भुगतान किया गया है वह जिन खातों में किया गया है वह समूह के खातों से किन खातों में ट्रांसफर किया गया यह कितनी नगद निकासी की गई इस पर कभी कोई जांच ही नहीं होती। वास्तविकता यह है कि महिलाओं के संगठन के नाम पर काम तो ले लिया जाता है लेकिन इसका फायदा महिलाओं को कभी मिलता ही नहीं है।
लगती है बोली
स्व सहायता समूह को लेकर तो इस बार जिला प्रशासन ने इजाजत नहीं दी है नहीं तो इसके पहले धान की खरीद करने वाले व्यापारी स्व सहायता समूह की खरीद फरोख्त करते हैं जिनको लेकर जनपद पंचायत और जिला पंचायत में अधिकारी सीधे बोली लगाते हैं और 5 लाख से 10 लाख तक की कीमत पर इन समूहों को बेचा जाता है। जिसके एवज में महिलाओं को एक दो लाख रूपए देकर किनारे कर दिया जाता है और उनसे खाली चेक ले लिए जाते हैं और फिर जो राशि उनके खातों में आती है उसकी बंदर बांट अधिकारी और दलाल मिलकर करते हैं।
कुछ जगहों पर समितियो की कमी है, जिसको लेकर क्लस्टर लेवल फेडरेशन के प्रस्ताव बुलवाए गए थे । उनके द्वारा जो दस्तावेज दिए गए हैं उनकी जांच की जा रही है जांच पूरी हो जाने के बाद निर्णय लिया जाएगा।
दीपक सक्सेना, कलेक्टर जबलपुर