देवास. आज से नवरात्रि शुरू हुई हैं. देवास में भी भक्तों का मेला लगेगा. यहां पहाड़ी पर मां चामुंडा और तुलजा भवानी विराजी हैं. ये शक्तावतों की आराध्य देवी हैं. वेद और पुराण मां चामुंडा और तुलजा भवानी की शक्ति की महिमा से भरे पड़े हैं. इनकी महिमा ऐसी है कि अनादि काल से इनके प्रति आस्था और चमत्कार के किस्से चलते आ रहे हैं. भक्तों की आस्था इतनी गहरी है कि वो कहते हैं जिस पर मां की कृपा हो जाती है उसके जीवन का उद्धार हो जाता है. इस मंदिर की खासियत ये है कि माता यहां दिन में तीन स्वरूप बदलती हैं.
देवास के इस शक्ति पीठ को रक्त गिरने से अर्द्ध शक्ति और रक्त शक्ति पीठ भी कहा जाता है. कहते हैं माता के इस मंदिर में गुरु ग्रोखनाथ, राजा भर्तहरि, सद्गुरु शीलनाथ महाराज, जैसे कई सिद्ध पुरुष तपस्या कर चुके हैं. राजा विक्रमादित्य और चक्रवर्ती राजा पृथ्वीराज चौहान भी माता के दरबार में माथा टेक चुके हैं. यहां देवी को पान का बीड़ा खिलाने की प्रथा है. मां चामुंडा और तुलजा भवानी नाथ सम्प्रदाय की इष्ट देवी मानी जाती हैं. यहां का राज परिवार अष्टमी और नवमी के दिन यहां पूजन कर हवन में आहुति देते हैं.
माता सती के अंग गिरे थे यहां
देवास के चामुंडा मंदिर में शिखर दर्शन का खास महत्व है. माता सती के जहां जहां अंग गिरे वहां शक्ति पीठ कहलाए और जहां रक्त गिरा वहां रक्त शक्ति पीठ और अर्ध शक्ति पीठ कहलाए. यहां देवास में माता सती का रक्त गिरा था. उससे दो देवियों की उत्पत्ति हुई. इसलिए यहां के बारे में दो बहनों की कहानी प्रचलित है. ये भी कहते हैं कि दोनों बहनों में किसी बात को लेकर अनबन हो गयी उसके बाद दोनों की पीठ यहां स्थापित हो गयी. लेकिन बजरंग बली और भैरव बाबा की विनती पर देवियां उसी अवस्था में रुक गयीं जैसी पहले थीं.
दो बहनों का वास देवास
देवास में माता टेकरी है. इस शहर का नाम दो देवियों के वास के नाम पर दे वास पड़ा. इसका पहले नाम देववासिनी था. बाद में यह देवास हो गया. इसे मां चामुंडा और तुलजा भवानी की नगरी भी कहकर पुकारा जाता है. देवास का इतिहास माता टेकरी से जुड़ा हुआ बताया जाता है. यहां पर कई साधकों ने तपस्या कर अपनी साधना को उच्च शिखर पर पहुंचाया है. गुरु गोरखनाथ, राजा विक्रमादित्य के भाई राजा भर्तहरि व सद्गुरु योगेंद्र शीलनाथ महाराज की यह तपोभूमि रही है. यहां पर कई वर्षों तक इन्ही साधकों ने माता के चरणों में घोर तपस्या की है.
क्या है पूरी कहानी-
मान्यताओं के अनुसार यहां देवी मां के दोनों स्वरूप अपनी जागृत अवस्था में हैं. इन दोनों स्वरूपों को छोटी मां और बड़ी मां के नाम से जाना जाता है. बड़ी मां को तुलजा भवानी और छोटी मां को चामुण्डा देवी का स्वरूप माना गया है. उसके अलावा भी यहां पर 9 देवियों का वास है. पुजारी बताते हैं कि बड़ी मां और छोटी मां के मध्य बहन का रिश्ता है. एक बार दोनों में किसी बात अनबन हो गयी. अनबन होने के कारण दोनों की पीठ हो गयी. इससे क्षुब्द होकर दोनों ही माताएं अपना स्थान छोड़कर जाने लगी. बड़ी मां पाताल में समाने लगीं और छोटी मां अपने स्थान से उठ खड़ी हो गयीं और टेकरी छोड़कर जाने लगीं.माताओं को कुपित देखकर माना जाता है कि बजरंगबली माता का ध्वज लेकर आगे और भेरूबाबा मां का कवच बन दोनों माताओं के पीछे चलते हैं. हनुमानजी और भेरूबाबा ने उनसे क्रोध शांत कर रुकने की विनती की. इस समय तक बड़ी मां का आधा धड़ पाताल में समा चुका था. वे वैसी ही स्थिति में टेकरी में रुक गयीं वहीं छोटी माता टेकरी से नीचे उतर रही थीं. वे मार्ग अवरुद्ध होने से और भी कुपित हो गईं और जिस अवस्था में नीचे उतर रही थीं, उसी अवस्था में टेकरी पर रुक गयीं. इस तरह आज भी माताएं अपने इन्हीं स्वरूपों में विराजमान हैं.