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राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, एमयू इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के आचरण की जांच करेंः हाईकोर्ट

 

जबलपुर यशभारत। हाई कोर्ट की इंदौर बैंच के न्यायमूर्ति विवेक रुसिवा व न्यायमूर्ति विनोद कुमार द्विवेदी की युगनपीठ ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग व मत्र आयुर्विज्ञान विवि, जबलपुर को इंडिक्स मेडिकल कालेज हास्पिटल एड रिसर्च सेंटर, इंदौर के आचरण की जांच करने के जांच करने के सख्त निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने साफ किया है कि यह जांच इसलिए आवश्यक है क्योंकि इस निजी मेडिकल कालेज के मनमाने आचरण के कारण राज्य और देश के विभिन्न हिस्सों के डाक्टरों को अपना स्वीकार्य दावा करने के लिए बार-बार इस हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है। यदि कोई उपयुक्त कार्रवाई आवश्यक है, तो वह की जाए, ताकि भविष्य में किसी भी छात्र को हाई कोर्ट आने के लिए मजबूर न होना पड़े। संबंधित कालेज को यह भी निर्देशित किया जाता है कि वह याचिकाकर्ताओं के प्रत्येक मामले की जांच करने के बाद उन्हें देय राशि आरटीजीएस-यूपीआई या डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से तत्काल वापस करे, साथ ही पात्रता की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक आठ प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से व्याज का भी भुगतान करें। हाई कोर्ट ने इस टिप्पणियों और निर्देशों के साथ याचिका का पटाक्षेप कर दिया।

 

याचिकाकर्ता रीवा निवासी डा. अभिषेक पांडे महित 61 एमबीबीएस उपाधिधारक व मेडिकल पीजी कोर्म कर चुके मेडिकल छात्रों की ओर से अधिवक्ता निशांत दत्त ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि सभी याचिकाकर्ताओं ने इंडेक्स मेडिकल कालेज, इंदौर से एमबीबीएस कोर्स किया था। उसके बाद पीजी कोर्स में दाखिला लिया था। इस अवधि में अपनी सेवाएं दीं, जिसके एवज में स्टायपेंड के पात्र हैं। उनकी मांग है कि राज्य सरकार के सात जून, 2021 और 17 नवंबर, 2022 के परिपत्रध्आदेश के अनुपानन में संशोधित दर पर स्टायपेंड की बकाया राशि का भुगतान व्याज सहित करने और 25 हजार रुपये की जमानत सुरक्षा रानि वापस करने का निर्देश दिया जाए। याचिकाकर्ताओं ने वर्ष 2019 में 25 हजार रुपये की राशि जमानत राशि के रूप में जमा की थी। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राज्य सरकार द्वारा दो परिपत्रों के माध्यम से स्टापपेंड की दर संशोधित की गई थी, जी एक अप्रैल, 2021 में पीजी कोर्स करते हुए मेडिकल कालेजों में अपनी सेवाएं देने वाले डाक्टरों को देय थी, इसलिए, याचिकाकर्ता भी संशोधित स्टायपेंड पाने के हकदार हैं। याचिकाकर्ताओं को प्रतिवादियों द्वारा कम दर पर स्टायपेर दिया गया था। चूंकि वे कानेर में पढ़ रहे थे, इसलिए उस प्रासंगिक समय पर उन्होंने कोई विरोध नहीं जताया।

बहस के दौरान एमयू व इंटेक्स कालेज का जवाब आया। संबंधित दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता रेखांकित की गई। इस पर कोर्ट ने छात्रों का पक्ष सुनने के बाद साफ किया कि सभी दस्तावेज इंटेक्स मेडिकल कालेज के पास पहले में ही उपलब्ध हैं क्योंकि निश्चित रूप में याचिकाकर्ताओं को प्रवेश दिया गया था। छात्र फिलहाल अध्ययनरत हैं तथा उन्होंने अपना पीजी कोर्स पूरा कर लिया है। देश के विभिन्न स्थानों से याचिकाकर्ताओं को अनावश्यक रूप में राजि प्राम करने के लिए बुलाने का मनमाना रवैया उन्हें परेशान करने के अलावा और कुछ नहीं है। कोनें पूरा होने के बाद इंडेक्स मेडिकल कालेज की स्वप्रेरणा से याचिकाकर्ताओं को बिना किसी अभ्यावेदन प्रस्तुत करने या हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए बाध्य किए बिना निर्विवाद राशि वापस कर देनी चाहिए थी। लिहाजा, इंडेक्टस मेडिकल कालेज ब्याज का भुगतान करने के लिए भी उत्तरदायी है। 61 छात्रों का पक्ष माननीय उच्च न्यायालय में अधिवक्ता निशांत दत्त द्वारा प्रस्तुत किया गया।

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