जबलपुर के महापौर: सात बार के महापौर पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जिनकी मुट्ठी में जनचेतना बंद थी

जबलपुर, यशभारत। नगरीय निकाय का घमासान शुरू हो चुका है। भाजपा-कांग्रेस दोनों ने महापौर प्रत्याशी मैदान में उतार दिए है। चुनाव जीतने की हर कोशिश होने लगी। इसी बीच जबलपुर के पुराने महापौर पंडित भवानी प्रसाद तिवारी का जिक्र भी बुद्वजीवियों के मन में आ रहा है। पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जबलपुर के सात बार महापौर रहे। इतने सालों तक कोई मेयर नहीं रहा जितने साल पंडित तिवारी रहे। बाद में वे राजसभा के दो बार सदस्य भी रहे। सेठ गोविंददास 1950 से लगातार संसद सदस्य रहे और किसी ने यह नहीं कहा ये नगरी गोविंददास की है, सब ये कहते थे कि ये नगरी पंडित भवानी प्रसाद की है। तिवारी जी की लोकप्रियता उनकी अपनी जीवनशैली के कारण थी। उस समय मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार होते हुए भी जबलपुर नगर निगम व म्युनिसपेलिटी पर सदा ही प्रजा समाजवादी का ही कब्जा रहा और जिसके सिरमौर पंडित भवानी प्रसाद तिवारी रहे।
प्रथम महापौर के पद को भवानी प्रसाद तिवारी ने सुशोभित किया
आजादी के बाद जब जबलपुर नगर पालिका का स्तरोन्नयन हो कर उसे नगर निगम का दर्जा मिला तो उसके प्रथम महापौर के पद को भवानी प्रसाद तिवारी ने सुशोभित किया। उस समय नगर निगम में महापौर का चुनाव आज भी भांति पांच वर्ष के लिए और सीधे जनता द्वारा न हो कर प्रतिवर्ष प्रत्यक्ष प्रणाली अर्थात निर्वाचित पार्षदों द्वारा किया जाता था।
कवि की तरह काम करते थे हरिशंकर परसाई का मानना था कि भवानी प्रसाद तिवारी मूल रूप से कवि थे-बल्कि केवल कवि थे, राजनीतिज्ञ नहीं। इसलिए राजनीति भी वे कवि की तरह करते थे और छलछंद, काटछांट, जमाना-पटाना, अवसरवादिता, निमज़्म सत्ता संघषज़् कर नहीं पाते थे। परसाई कहते थे कि जन चेतना उनकी मुट्ठी में बंद थी।
किसी कार्यक्रम में रिक्शे से जाते थे
भवानी प्रसाद तिवारी नगर निगम की कार का व्यक्तिगत उपयोग कभी नहीं करते थे। उस समय मेयर की कार का नंबर 102 था। मेयर रहते हुए वे जबलपुर में किसी कार्यक्रम में रिक्शे से जाते थे। भवानी प्रसाद तिवारी जबलपुर के संभवत: एकमात्र ऐसे नेता थे जो हिंसक भीड़ को अपने उद्बोधन से नियंत्रित कर लेते थे। एक ऐसा ही वाक्या तिलक भूमि तलैया में हुआ जब एक सभा में भीड़ उत्तेजित व हिंसक हो गई। तब सिटी कोतवाल प्रयाग नारायण शुक्ल भवानी प्रसाद तिवारी को वहां यह अनुरोध कर के ले गए कि वे दो मिनट खड़े हो कर भाषण दे देंगे तो भीड़ शांत भी हो जाएगी और पुलिस का काम हल्का हो जाएगा। तिलक भूमि तलैया पहुंच कर जैसे ही भवानी प्रसाद तिवारी ने भाषण देना शुरू किया भीड़ शांत हो गई और पुलिस का काम बिना लाठी चाजज़् किए हो गया। वषज़् 1977 में जब भवानी प्रसाद तिवारी का निधन हुआ तब उनकी शवयात्रा में इतनी भीड़ उमड़ी जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। शहर के जिस व्यक्ति को यह खबर मिली वह शवयात्रा में शामिल हुआ। सबसे ज़रूरी व महत्वपूणज़् बात यह कि भवानी प्रसाद तिवारी के बाद उनके परिवार का कोई सदस्य राजनीति में नहीं आया।