जबलपुरभोपालमध्य प्रदेशराज्य

रोज कुआं खोदो और रोज पानी पियो की लाचारी आज भी है मजदूरों के सामने

रोज कुआं खोदो और रोज पानी पियो की लाचारी आज भी है मजदूरों के सामने

WhatsApp Image 2025 05 01 at 1.41.06 PM

जबलपुर यश भारत। आज 1 मई याने की अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस। दुनिया में भारत सहित कई देशों मई एक को मजदूर दिवस मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य मजदूरों की भलाई के लिए काम करना व उनके अधिकारों के प्रति जागृति लाना है मगर खेद के साथ कहना पड़ता है कि ऐसा हो नहीं पाया। आजादी के इतने बरसों के बाद भी आम मजदूर की दशा पर कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया है। आज भी मजदूरों की ऐसी बड़ी संख्या है जो रोज कुआं खोदो और रोज पानी पियो की तर्ज पर काम कर अपना जीवन यापन करने के लिए लाचार है। उनकी मेहनत ही इनकी पूंजी है और गर्मी ठंड हो या बारिश इससे इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता शहर में जगह-जगह हर मौसम में बड़ी संख्या में मजदूर बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों से लेकर दूसरे निर्माण कार्यों में काम करते देखे जा सकते हैं। शहर में शास्त्री ब्रिज चौराहा लेबर चौक रद्दी चौकी कटरा मोड और न जाने इतने कितने चौराहे हैं जहां सुबह से मजदूरों की भीड़ काम की तलाश में खड़ी हो जाती है। इन मजदूरों में पुरुषों के अलावा महिलाएं और किशोर उम्र के लड़की लड़कियों तक शामिल रहते हैं। जो काम के लिए चौराहों में एकत्र रहते हैं इनमें से कुछ को काम मिलता भी है तो कुछ की हाथ निराशा भी लगती है और यही इनकी नियति भी है।

उत्पीड़न शोषण के शिकार भी होते हैं

अनेक बार समाचारों के माध्यम से मजदूरों के शोषण और उनके साथ किए जाने वाले उत्पीड़न के मामले भी सामने आते रहते हैं। कभी काम कराने की बाद मजदूरी नहीं दी जाती तो कभी ठेकेदार उनकी मेहनत के हजारों रुपए डकार जाता है। कई बार तो मजदूरों के साथ मारपीट तक के समाचार सामने आते हैं लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। महिला मजदूरों पर लोगों की बुरी नीयत के समाचार भी और उनके शोषण व उत्पीड़न के मामले कई बार थानों तक भी पहुंचाते रहे हैं और आम मजदूरों की यही हकीकत है। भले ही दुनिया मजदूर दिवस के बहाने इनकी भलाई और बेहतरीके लिए काम करने की दुहाई क्यों ना दें लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है। शहर में बाहर से आते हैं बड़ी संख्या में मजदूर

यदि जबलपुर की बात की जाए तो यहां पर पड़ोसी जिला मंडला डिंडोरी दमोह बालाघाट और दूसरी जगह के मजदूर बड़ी संख्या में काम करने के लिए आते हैं। इनकी रहने का ना तो कोई सुरक्षित ठिकाना रहता है और ना ही सुरक्षा की कोई गारंटी। यदि किसी अच्छी जगह काम लग गया तो रहने आदि की व्यवस्था सुनिश्चित हो जाती है वरना शहर के कई इलाकों में आप सड़क किनारे बनी झुग्गियों और फुटपाथ पर इन्हें खानाबदोश की तरह रहते हुए देख सकते हैं।

क्या कहते हैं आंकड़े

यदि भारत की बात की जाए तो आंकड़ों के मुताबिक यहां पर 90% मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं जिनको सभी सामाजिक सुरक्षा सुविधा प्राप्त नहीं है। देश में श्रमिक वर्ग की संख्या एक आंकड़े के मुताबिक संगठित व असंगठित क्षेत्र में 50 करोड़ से ज्यादा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
WhatsApp Icon Join Yashbharat App
Notifications Powered By Aplu