
जबलपुर, यशभारत। एमपी की चुनावी फिज़ां पूरे शबाब पर पहुंच चुकी है। लेकिन सत्ता में वापसी का पूरा समीकरण क्रिकेट की गुगली गेंद की भांति चकमा देता प्रतीत हो रहा है। मतदाताओं के मन की थाह पाना कठिन है। पूरे प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा के बीच चल रहे शह और मात के चुनावी गणित में उलझकर ज्योतिष विद्या के जानकारों से लेकर सट्टा बाजार भी कफ्यूज है। सर्वे रिपोर्टों में दोनों दलों को मिलने वाली सीटों की घटती-बढ़ती संख्या इन दलों से जुड़े कार्यकर्ताओं की बेचैनी बढ़ा रही है। कांग्रेस को इस बार वापसी की उम्मीद दिख रही है, जबकि भाजपा सरकार बचाने के लिए एड़ी चोटी का पसीना बहा रही है।
इस बार एमपी का चुनाव ऐसे मोड़ पर आ खड़ा हुआ हैं, जहां किसी की स्पष्ट जीत को लेकर अनुमान लगा पाना बेहद कठिन हैं। चुनाव की घोषणा से पहले इस बार कांग्रेस की तैयारी किसी मायने में भाजपा से उन्नीस नही रही। टिकट वितरण में भी पार्टी ने बहुत सावधानी बरती। प्रदेश में अनेक स्थानों पर टिकट न मिलने से नाराज नेताओं का आक्रोश सामने भी आया लेकिन बड़े नेताओं ने इस विरोध को ठंडा करने में काफी हद तक सफलता पा ली, इसी वजह से बीजेपी की तुलना में कांग्रेस के बागियों की संख्या कम है।
प्रदेश में मालवा-निमाण, विंध्य, बुंदेलखंड, बघेलखण्ड और महाकौशल में इस बार समीकरण बदले हुए हैं। जिन इलाकों में 2018 के चुनाव में भाजपा ने बढ़त ली थी वहां इस बार मामला फिफ्टी-फिफ्टी पर आ गया है। इसी तरह जिन क्षेत्रों में कांग्रेस की सीटें ज्यादा आई थी, वहां इस बार बीजेपी मेहनत कर रही है।
18 साल से ज्यादा की सत्ता में भाजपा को इस बार एन्टीइनकमबेंसी से जूझना पड़ रहा है। चुनाव के पहले लाड़ली बहना के मास्टर स्ट्रोक के जरिये भाजपा सरकार ने महिला वोटर्स के वोट अपने पाले में लाने की कोशिश जरूर की लेकिन इसका असर कितना होगा यह देखने लायक होगा। सूत्र बताते हैं कि एमपी की पूरी स्थिति को भांपकर केंद्रीय नेतृत्व ने इलेक्शन की पूरी कमान अपने हाथ मे ले ली है। अमित शाह से लेकर बड़े नेता जिस तरह बागी उम्मीदवारों को मनाने में सक्रिय हुए उसका मैसेज साफ है कि पार्टी सत्ता में वापसी के हर सम्भव उपाय कर रही है। आने वाले दिनों में पीएम मोदी और अमित शाह से लेकर बड़े भाजपा नेता पूरे प्रदेश में ताबड़तोड़ रैलियां करने वाले हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस में भी प्रियंका गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खडग़े से लेकर प्रदेश के सभी बड़े नेता माहौल बनाते नजर आएंगे।
कुल मिलाकर मतदान के 11 दिन पहले परिणामो को लेकर कोई स्पष्ट भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। 11 दिन में अभी बहुत कुछ होना बाकी है। दोनों दल पूरी ताकत लगाएंगे। जीत के लिए साम, दाम, दंड, भेद आजमाया जाएगा। इसके बाद ऊंट किस करवट बैठता है, इसका इंतजार प्रदेश की जनता कर रही है।