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सरहद पर लहू और राख: राजौरी-पुंछ में धर्म नहीं, देश निशाना

सरहद पर लहू और राख: राजौरी-पुंछ में धर्म नहीं, देश निशाना

राजौरी/पुंछ: कश्मीर की शांत वादियों में नियंत्रण रेखा (LoC) के आसपास अमन की एक नई सुबह ज़रूर आई है, पाकिस्तान की ओर से हुए सीजफायर और भारत की स्वीकृति के बाद हालात सुधरे हैं। लेकिन इस शांति के पीछे छिपे दर्द और दुश्मन की नापाक हरकतों की दास्तान राजौरी और पुंछ की सरज़मीं चीख-चीख कर बयां कर रही है। NDTV के वरिष्ठ संवाददाता अनुराग द्वारी ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इन सरहदी इलाकों में जो मंजर देखा, वह न केवल पाकिस्तान के गुनाहों का पुलिंदा है, बल्कि यहां के बाशिंदों के गहरे जख्मों की भी तस्वीर पेश करता है।

हाल ही में पहलगाम में हुई आतंकी घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। पीड़ितों के परिजनों के बयान सुनकर रूह कांप उठी थी। हमलावरों ने नाम और धर्म पूछकर बेगुनाहों को मौत के घाट उतारा था। यह सिर्फ हिंसा नहीं थी, बल्कि हमारी पहचान पर एक कायरतापूर्ण हमला था। इस घटना ने देश में एक बार फिर सांप्रदायिक बहस को जन्म दे दिया था, नफरत की दीवारें उठने लगी थीं।

लेकिन जब मैं कुछ दिनों बाद राजौरी और पुंछ पहुंचा, तो मंजर बिल्कुल अलग था। यहां भी आग लगी थी, लेकिन इस बार सरहद पार से गोले बरसे थे। यहां किसी ने यह नहीं पूछा कि तुम किस खुदा को मानते हो या तुम्हारा नाम क्या है। यहां तो सिर्फ मौत का तांडव था, जिसमें हर मजहब के लोग बराबर के शिकार थे।

मैं पुंछ बाज़ार में मोहम्मद हाफ़िज़ के जले हुए घर के बाहर खड़ा था। तीन परिवार और उनके सत्रह सदस्य कभी इसी छत के नीचे हंसी-खुशी से रहते थे, लेकिन अब सब कुछ राख में तब्दील हो चुका है। उनके घर की तीसरी मंजिल पर सीधा गोला गिरा था। स्टोररूम जलकर खाक हो गया था और दो गैस सिलेंडर ऐसे टेढ़े-मेढ़े पड़े थे, जैसे किसी घायल लोहे के जानवर हों।

मोहम्मद हाफ़िज़ की आंखों में अपार दर्द और गुस्सा था। उन्होंने बताया कि हमले में उनके परिवार के कई सदस्य घायल हुए हैं। उनके पड़ोसी पंडित प्यारे लाल का घर भी इस बर्बर हमले में तबाह हो गया। हाफ़िज़ ने गुस्से से कहा, “वे हमारे घरों पर बम बरसा रहे हैं। वे यह नहीं देखते कि घर किसका है, उसमें हिंदू रहते हैं या मुसलमान। उनका मकसद सिर्फ दहशत फैलाना है, हमारे देश को कमजोर करना है।”

पंडित प्यारे लाल भी गहरे सदमे में थे। उन्होंने कहा, “हमने कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसा मंजर देखना पड़ेगा। हम सब भाई-बहन की तरह रहते थे। इस हमले ने हमें एक साथ रुला दिया है। यह हमला धर्म पर नहीं, बल्कि हमारी एकता और हमारे देश पर है।”

राजौरी और पुंछ के हर गांव, हर शहर में ऐसी ही कहानियां बिखरी पड़ी हैं। यहां के लोग दशकों से सीमा पार से होने वाली हिंसा का शिकार होते रहे हैं। उन्होंने अपनों को खोया है, अपने घर उजड़ते देखे हैं, लेकिन उनका हौसला कभी कम नहीं हुआ। वे आज भी अपनी मिट्टी से जुड़े हुए हैं और देश की रक्षा के लिए चट्टान की तरह खड़े हैं।

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