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श्रीराम की जन्मभूमि के कैनवास पर कलाकृतियां उकेर रहे संस्कारधानी के कलाकार

जबलपुर/अयोध्या, यशभारत। धोबी से धोबी ना लेत धुलाई, नाई से कछु लेत न नाई। तुम भी केवट मैं भी केवट, कैसे तुम से लूं उतराई। कर दीजो भवपार प्रभु, जब घाट तिहारे अइहौं। उतराई ना लइहौं।।

यह लाइनें रामानंद सागर के धारावाहिक रामायण में उस वृतांत का बखान करती हैं जब वनवास पर जाने के लिए निकले मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, माता जानकी और लक्ष्मण को गंगा पार कराते वक्त केवट और भगवान के बीच का संवाद होता है। कुछ ऐसे ही नजारे अयोध्या के सरयूतट पर जगह-जगह देखने को मिल रही हैं। जगह-जगह राममंदिर की प्राणप्रतिष्ठा के समारोह को यादगार बनाने लोग अपने-अपने तरीके से सहयोग प्रदान कर रहे हैं। इनमें जबलपुर के भी कुछ कलाकार शामिल हैं।
जिन्होंने सबके जीवन में रंग भरे, उनके लिए भर रहे रंग
दरअसल जबलपुर में वॉल पेंटिंग कर विभिन्न कलाकृतियां उकेरने वाले कलाकार स्वेच्छा से अयोध्या पहुंच गए हैं। जिनका मानना है कि जिसने सारे संसार के जातकों के जीवन में विभिन्न रंग भरे हैं। आज उनके धाम में प्राणप्रतिष्ठा का ऐतिहासिक समारोह हो रहा है। इन कलाकारों की इतनी हैसियत नहीं कि वे मंदिर निर्माण में बड़ी राशि दान कर सकें लेकिन वे प्रबसि नगर के नरेश भगवान राम की नगरी को थोड़ा बहुत सजा-धजा कर आकर्षक बना दें तो भी उनका जीवन सफल हो जाएगा। यही कारण है कि जबलपुर के ये कलाकार स्वेच्छा से अयोध्या जा पहुंचे हैं और सरयू तट पर दीवारों में मनमोहक चित्र बनाकर इस महान अवसर पर अपनी आहुति दे रहे हैं।
भारतीय कलाकार संघ के हैं सदस्य
भारतीय कलाकार संघ के इन सदस्यों ने बताया कि वे अयोध्या में जगह-जगह ऐसी खाली दीवारें तलाश रहे हैं, जहां कलाकृतियां और चित्रकारी से किसी को आपत्ति न हो। ये कलाकार अभी तक अयोध्या में करीब दो दर्जन दीवारों में चित्रकारी कर उन्हें नयनाभिराम बना रहे हैं। कलाकारों का मानना है कि प्राणप्रतिष्ठा समारोह में लाखों लोग अयोध्या पहुंचने वाले हैं, ऐसे में भगवान की नगरी पूरी तरह से सुव्यवस्थित और सुंदर दिखे इसी लालसा से वे स्वेच्छा से यह सेवाकार्य में रत हैं।

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