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यश भारत विशेष : बुंदेलखंड का अभिशप्त गांव जहां देवी के प्रकोप के डर से सदियों से नहीं जलाई जाती होली 

सागर यश भारत (संभागीय ब्यूरो)l बुंदेलखंड के सागर जिले में एक ऐसा गांव भी है जहां कई सदियों से होली नहीं जलाई जाती है। जनजातीय बहुल इस गांव में होलिका दहन की महज चर्चा तक करने से यहां के लोग किसी भयंकर आपदा के भय से सिहर उठते हैं।

यूं तो देश के हर हिस्से में होली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। लेकिन बुंदेलखंड के सागर जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां होलिका दहन नहीं किया जाता है। इस गांव में होलिका दहन की रात भी आम रातों के जैसी ही होती है।

सागर जिले की देवरी तहसील का हथखोह गांव एक ऐसा गांव है, जहां होली का जिक्र आते ही लोग डर से कांप उठते हैं। यहां के लोग होलिका का दहन नहीं करते। इस गांव में होलिका दहन को लेकर न तो कोई चर्चा या उत्साह रहता है और न ही किसी तरह की कोई उमंग नजर आती है। हथखोह गांव में होली की रात आम रातों की तरह ही सामान्य रहती है।

 

गांव के बुजुर्गों की बात मानें तो उनकी पूरी उम्र गुजर गई, लेकिन उन्होंने गांव में कभी होलिका दहन होते नहीं देखा। वे कहते हैं कि यहां के लेागों को इस बात का डर है कि होली जलाने से झारखंडन देवी नाराज न हो जाएं। इस गांव में होलिका दहन भले नहीं होता, लेकिन लोग रंग गुलाल लगाकर होली का त्यौहार मनाते हैं। झारखंडन माता मंदिर के पुजारी कहते हैं कि हथखोह गांव के लोगों के बीच चर्चा है कि देवी ने साक्षात दर्शन दिए थे और लोगों से होली न जलाने को कहा था तभी से यह परंपरा चल रही है।

हथखोह गांव में होली नहीं जलाने को लेकर कुछ अन्य स्थानीय लोगों द्वारा बताया जाता है कि कई दशकों पहले गांव में होलिका दहन के दौरान झोपड़ियों में आग लग गई थी। तब गांव के लोगों ने झारखंडन देवी की आराधना की और फिर आग बुझ गई थी। स्थानीय लोगों का मानना है कि झारखंडन देवी की कृपा से ही आग बुझी थी इसलिए होलिका का दहन नहीं किया जाता। यही कारण है कि पीढ़ियों से हथखोह गांव में होलिका दहन नहीं होता। झारखंडन धाम में चैत्र नवरात्रि में मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें दूर-दराज से लोग आते हैं। उनकी मनोकामनाएं पूरी होती है। झारखंडन माता यहां के ग्रामीणों की कुलदेवी मानी जाती है।

 

 

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