सागर यश भारत संभागीय ब्यूरो)/ शहर के श्मशान घाट पर उस वक्त एक भावुक और हृदयस्पर्शी दृश्य देखने को मिला, जब नगर निगम के दिवंगत सफाईकर्मी डालचंद बाल्मीकि को उनकी सात बेटियों ने अंतिम विदाई दी। हिंदू परंपराओं को दरकिनार करते हुए, बेटियों ने न केवल अपने पिता की अर्थी को कंधा दिया, बल्कि चिता को मुखाग्नि देकर समाज के सामने साहस और प्रेम की एक नई परिभाषा गढ़ दी। इस भावुक क्षण ने वहां मौजूद हर शख्स की आँखें नम कर दीं।
डालचंद बाल्मीकि का हाल ही में तबीयत बिगड़ने के बाद निधन हो गया था। उनका कोई पुत्र नहीं था, लेकिन उन्होंने अपनी सातों बेटियों को बेटे जैसा प्यार और परवरिश दी थी।
अंतिम संस्कार के लिए जब अर्थी श्मशान घाट पहुंची, तो सबसे छोटी 12 वर्षीय बेटी सहित सभी सातों बेटियों ने पूरी दृढ़ता के साथ अंतिम यात्रा की जिम्मेदारी संभाली। पिता की चिता को अग्नि देते समय, उनका साहस देखने लायक था। पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने बताया कि यह दृश्य इस बात का प्रमाण था कि बेटियां हर जिम्मेदारी निभाने में सक्षम हैं।
परिवार पर आर्थिक संकट के बादल
दिवंगत डालचंद ही घर के एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे। उनकी आकस्मिक मृत्यु ने इस गरीब परिवार पर दुखों का पहाड़ तोड़ दिया है। बेटियों और परिवार के सामने अब जीवनयापन का गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया है।
अंतिम संस्कार के दौरान बेटियों ने अपने पिता की चिता के सामने खड़े होकर पिता की जिम्मेदारी निभाने का संकल्प लिया।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और पड़ोसियों ने एकजुट होकर प्रशासन और समाज के दानदाताओं से अपील की है कि वे आगे आएं और इन साहसी बेटियों तथा उनके परिवार को इस मुश्किल वक्त में आर्थिक संबल प्रदान करें।
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