जबलपुरमध्य प्रदेश

संत दादा धनीराम जी की 54वीं पुण्य-तिथी : मानव कल्याण हेतु समर्पित रहे संत दादा धनीराम…. चमत्कारों से भरा है जीवन

WhatsApp Icon
Join Youtube Channel

मंडला, यश भारतl

महिष्मती नगरी मंडला आस्था की नगरी है। यहां एक से बढ़कर एक संत है, जिन पर लोगों की आस्था है। जिले के सैकड़ों धार्मिक स्थल भी आस्था का केन्द्र है। इन्हीं में एक ऐसे औघड़ संत जिले में थे, जिनकी प्रसिद्धी चहुंओर फैली हुई है। जिले में ये संत एक लौते थे, जो गालियां देकर लोगों को आर्शीवाद देते थे और उनके एक हाथ में हमेशा हंसिया रहता था। बता दे कि मंडला के उपनगर महाराजपुर में नर्मदा नदी के दूसरे तट पर इस औघड़ संत का आश्रम था। ये संत दादा धनीराम के नाम से प्रसिद्ध है।

 

 

बता दे कि उपनगरीय क्षेत्र महाराजपुर में नर्मदा किनारे दादा धनीराम की समाधी आस्था का केन्द्र है। मंडला में औघड़ संत दादा धनीराम के प्रति लोगों में काफी आस्था है। मंडला में दादा के कई चमत्कार भी है, जिससे लोग काफी प्रभावित हुए। दादाजी के भक्त देश विदेश तक हैं। हजारों भक्त आज भी उनकी सामधी स्थल पर पहुंचकर माथा टेकते हैं। कहा जाता था कि दादा जी के गालियां भक्तों के लिए वरदान साबित होती थी । गालियां खाने के बाद भक्त खुशकिस्मत समझते थे।

 

दादा के है अनेक चमत्कार

 

बताया गया कि संत धनीराम दादा ने अपना जीवन मानव कल्याण के लिए समार्पित कर दिया। वे शिवशंकर और मां नर्मदा के परम भक्त थे।

उनके चमत्कार और हठी तपस्या के कारण लोग उनसे जुड़ते गए। उनके निधन के 54 साल बाद भी हजारों भक्त उनसे जुड़े हुए हैं। उनकी समाधी दादा धनीराम आश्रम के नाम से पहचानी जाती है। आश्रम का संचालन ट्रस्ट के द्वारा किया जा रहा है। ट्रस्ट के अध्यक्ष ने बताया कि दादाजी के भक्त जिले के साथ ही रायपुर, मुम्बई, नागपुर, बालाघाट, सिवनी सहित कुछ विदेशों में भी है, जो समय समय पर आश्रम पहुंचते हैं। दादा धनीराम औघड़ संत थे। उन्होंने 1927 से 1970 तक महाराजपुर में रहकर मानव कल्याण के लिए कार्य किया। उनकी गालियां लोगों के लिए आशीर्वाद होती थी। दादा ने अनेक चमत्कार किए, जिनके अनुयायी आज भी उन्हें पूरी श्रद्धा और विश्वास से मानते हैं।

 

माँ नर्मदा के थे परम भक्त

 

उपनगर महाराजपुर के नर्मदा के किनारे बने दादा धनीराम महाराज का आश्रम पहले एक छोटी सी कुटिया के रूप में थी। यहीं कुटिया के पास दुख

इमली का पेड़ और पेड़ के नीचे कुत्तों के साथ खाते खेलते थे, जिन्हें देखकर नहीं लगता था कि वे एक महान संत हैं। दादा औघड़ संत थे। दादा धनीराम को औघड़दानी भगवान शिवशंकर का आशीर्वाद प्राप्त था। इसके साथ ही दादा धनीराम मां नर्मदा के परम भक्त भी थे। लोगों के रोग, तकलीफ दूर करना दादा का काम था। दादा की भद्दी और अश्लील गालियां भक्तों के लिए आशीर्वाद बनकर बरसती थी। लोग बताते है कि दादा जिसे भी गालियां दे देते थे, समझो वह धन्य हो गया।

महान तपस्वी और औघड़ संत थे दादा

दादा के भक्त बताते है कि दादा धनीराम बहुत ही तपस्वी और हठी संत थे। दादा का मनाना था कि वे जीवन पर्यंत जो भी काम करेंगे, एक हाथ

से ही करेंगे और इसलिए उन्होंने अपने एक हाथ में हंसिया बांध रखा था । यहीं दादा का तप था। उनके हठ और तप के कारण ही उनके एक हाथ हमेशा हंसिया बंधा रहता था। दादा धनीराम एक महान तपस्वी और औघड़ संत थे। दादा धनीराम मंडला ही नहीं बल्कि प्रदेश के अन्य जिलों व अन्य प्रांतों में भी प्रसिद्ध थे। दादा के चमत्कार से लोग उनसे प्रभावित थे। दादा के भक्त दादा की समाधि स्थल पर साल भर आते रहते है। दादा ने जन कल्याण और मानव सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया। दादा के भक्त आज भी इनकी समाधि स्थल पर आते हैं।

Related Articles

Back to top button