यश भारत मेगा स्टोरी : अस्तित्व की लड़ाई लड़ते जमींदोज हो गये, नगर के 17 कुऐं : सूख गए कुएं और तालाब
नरसिंहपुर/तेंदूखेड़ा, यशभारत। एक समय था जब लोग दूसरों को ठंडा शीतल पेयजल व्यवस्था हेतु जगह जगह कुआ बावडिय़ों का निर्माण कराया करते थे। लेकिन अब समय की बलिहारी कही जाये या फिर सुविधा भोगी होती जिंदगी के चलते प्राचीन जल स्रोत अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ते हुए जमींदोज होते चले जा रहे हैं।
भले ही शासन-प्रशासन भीषण पेयजल संकट के समय या पर्यावरण समस्या के समय जल जंगल जमीन को बचाने तरह तरह के अभियानों के माध्यम से कागजी घोड़े दौड़ा कर केवल खाना पूर्ति में जुट जाती है समय निकलते फिर वही स्टिम प्रारंभ हो जाता है।
तेंदूखेड़ा के सरकारी रिकॉर्ड में 17 पक्के कुये और 13 अन्य जल स्रोत दर्ज हुआ करते लेकिन आज की तारीख में यह स्थिति बनीं हुई है कि यहां पर ना ही कोई जल स्रोत सुरक्षित है और ना ही एक भी कुआ सुरक्षित बचा हुआ है। किसी पर आलीशान भवन तो कहीं मंदिर या फिर किसी को कचड़ा दान का स्वरूप प्रदान कर दिया गया है।
यही हाल तालाबों का भी
इसी तरह से नगर में दो तालाब है जिनमें खसरा क्रमांक 17 रकबा 11/88 में फुट्टा तालाब दर्ज है तो खसरा नंबर 396 में 5.38 हेक्टेयर भूमि में बिल तला स्थित है लेकिन आज भी दोनों तालाब अपने अस्तित्व को बचाने में जुटे हुए हैं। दिनों दिन इनका आकार सकरा होने के साथ अब कृषि उपज उपजाई जाने लगी है। रामघाट के समीप एक बावड़ी तथा परम्परागत जल स्रोत हुआ करते थे जो अब नहीं बचें है। विगत वर्षों में बावड़ी की सफाई के दौरान उसमें पानी जरूर निकलने लगा था लेकिन उचित रखरखाव ना हो पाने के कारण वही ढाक के तीन पात वाली कहावत ही चरितार्थ हो रही है।
विलुप्त हो गये राधा कृष्ण कुंड
रामघाट के समीप झरनों और कुंडों के बीच दो राधा कृष्ण नाम से कुंड बनें हुए थे इनमें एक कुंड में गर्म और दूसरे में ठंडा पानी रहता था लोग प्रात: काल दैनिक क्रियाओं के उपरांत अक्सर कर नहाने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचते थे लेकिन अब इन कुंडों का अस्तित्व ही खत्म हो चुका है। न झरनें बचें है और ना ही कुंड यदि इनका शुरू से ही उचित रखरखाव होता रहता तो शायद आज यह स्थिति नहीं बनती।
ढिलवार की बहर ही शेष बची
गौड़ राज दरबार में अपनी व्यक्तिगत व्यवस्थाओं को लेकर आदिवासी बाहुल्य ग्राम ढिलवार में ही केवल बहर देखने को मिलती हैं। ग्राम पंचायत के साथ साथ गांव के लोगों की सजगता के चलते यह अभी तक सुरक्षित है। समय समय पर इसकी साफ-सफाई और पुताई होती रहती है इसमें अभी भी पानी भरा हुआ है। लेकिन लोग बहुत ही कम उपयोग किया करते हैं। लेकिन इस धरोहर को संजोकर रखने की जवाबदेही ग्रामीणों की है।