कटनीमध्य प्रदेश

निलंबित सहायक खनिज अधिकारी पर दर्ज हो सकती है एफआईआर ? कलेक्टर ने यशभारत से कहा – कमिश्नर कर रहे जांच, वही करेंगे तय

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कटनी। खनिज विभाग में बिना अधिकार के तीन खनिज व्यवसायियों को भंडारण की अनुमति देकर सस्पेंड हुए सहायक खनिज अधिकारी पवन कुशवाहा पर उनके नियम विरुद्ध कार्य के लिए एफआईआर भी दर्ज हो सकती है। इस मामले में यशभारत से बातचीत में कलेक्टर दिलीप यादव का कहना है कि सारे मामले की जांच जबलपुर कमिश्नर अभय वर्मा के कार्यालय से हो रही है। जांच के बाद संभागायुक्त ही तय करेंगे कि यह सीधे तौर पर सरकार के साथ धोखाधड़ी का मामला है या केवल पद के दुरुपयोग का। इसमें विभागीय जांच ही आगे बढ़ेगी या एफआईआर तक प्रकरण जा सकता है इसका खुलासा जांच रिपोर्ट से हो जाएगा। उधर कलेक्टर दिलीप यादव का कहना है कि पवन कुशवाहा ने जिन खनिज व्यवसायियों को भंडारण की अनुमति के लाइसेंस का नवीनीकरण कर दिया था, उनकी अनुमति निरस्त हो चुकी हैं। उन्हे अब फिर से आवेदन करना होगा।

दरअसल खनिज विभाग में पवन कुशवाहा की कार्यप्रणाली शुरू से ही विवादित रही है। इस मामले के सामने आने के बाद इनके दायित्व से जुड़ी बाकी फाइलों पर भी कमिश्नर कार्यालय की निगाह है। सूत्र बताते हैं कि पवन कुशवाहा ने खनिज विभाग में ऐसा दबदबा बनाकर रखा था कि खदान मालिकों के छोटे छोटे काम भी उनके जरिए ही हो पाएं। इसके बदले में उपकृत होने की चर्चाएं तो कई बार सुनी गई, लेकिन इस बार वे माइनिंग अधिकारी की पदमुद्रा के इस्तेमाल का कुछ ज्यादा ही साहसिक कदम उठा ले गए। वे ये भुला बैठे के संतोष सिंह के रिटायरमेंट के बाद से संयुक्त कलेक्टर संस्कृति शर्मा विभाग के अतिरिक्त प्रभार में हैं। उन्हे भी पूरे मामले की भनक नहीं लगने दी गई। संस्कृति शर्मा के पास विभाग के ही अन्य कर्मचारियों के जरिए जब बात पहुंची तो उन्होंने फौरन सारे दस्तावेज तलब कर कलेक्टर को जानकारी दी और कलेक्टर ने भी मामले की गंभीरता को समझते हुए बिना देर किए कमिश्नर जबलपुर को पत्र लिखकर विभागीय कार्यवाही की अनुसंशा कर दी। सूत्र बताते हैं कि विभागीय कार्यवाही से बचने के लिए पवन ने संभागायुक्त कार्यालय में हर तरह के प्रयास किए। राजनीतिक दबाव का भी इस्तेमाल किया गया लेकिन यशभारत में मामले की खबर प्रकाशित होने के बाद कमिश्नर अभय वर्मा ने सस्पेंशन लैटर जारी कर दिया।

एक कदम ज्यादा चलने से बिगड़ा खेल

संतोष सिंह के रिटायरमेंट के बाद से ही पवन कुशवाहा की नजर खनिज अधिकारी की कुर्सी पर है। वे इसके लिए भोपाल स्तर पर सारे फार्मूले आजमा रहे थे, लेकिन अति आत्मविश्वास में एक कदम एक्स्ट्रा चलकर उन्होंने अपना ही खेल बिगाड़ लिया। सूत्र बता रहे हैं कि निलंबन समाप्त कराने के लिए प्रयास तेज कर दिए गए हैं। इसमें विभाग के कुछ बड़े ओहदे वालों से डीलिंग तक की चर्चाएं सामने आ रही हैं। सूत्रों के मुताबिक कटनी में खनिज अधिकारी रिक्त के पद पर सिंगरौली में पदस्थ एके राय की नियुक्ति की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी थी, किंतु किसी पावरफुल व्यक्ति के प्रभाव में उनकी कटनी में पोस्टिंग रुक गई। सूत्र यह भी बताते हैं कि पवन कुशवाहा जब सतना में पदस्थ थे तब भी इनकी कार्यप्रणाली विवादों से घिरी रही। कटनी में संतोष सिंह के रिटायरमेंट के बाद खनिज अधिकारी का पद 2 माह 23 दिन से रिक्त है। कोई प्रभारी न होने से कलेक्टर ने तात्कालिक व्यवस्था के तौर पर संयुक्त कलेक्टर संस्कृति शर्मा को खनिज विभाग का अतिरिक्त प्रभार दे दिया। परमानेंट खनिज अधिकारी न होने का फायदा उठाते हुए सहायक खनिज अधिकारी पवन कुशवाहा खुद को सर्वेसर्वा मान बैठे और माइनिंग ऑफिस की पदमुद्रा का इस्तेमाल कर खदान संचालकों के काम सुलटाने में लग गए। उन्होंने भंडारण की अवधि बढ़ाने से संबंधित रेफकास्ट एंड सिरेमिक इंडस्ट्रीज, सिद्ध एसोसिएट तथा प्रहलाद इंटरप्राइजेज की फाइलों के नवीनीकरण की अनुमतियां खुद के हस्ताक्षर से जारी कर दी। पता चला है कि ऐसा करने में लंबा लेनदेन किया गया। उन्होंने गणेश चतुर्थी से एक दिन पहले 6 सितंबर को उक्त तीनों नवीन अनुज्ञप्तियां जारी की। उसके अगले 3 तीन दिन तक सरकारी कार्यालय बंद थे, लिहाजा उन्होंने सोचा सबकुछ गोपनीय रहते हुए अवकाश में सामान्य हो जायेगा, लेकिन सारी बात बाहर आ गई।

इसकी भी जांच हो..

सूत्रों का यह भी कहना है कि जब से खनिज अधिकारी संतोष सिंह कटनी से सेवानिवृत्त हुए है तब से लेकर आज तक विभाग में कितने लायसेंस ( अनुज्ञप्तियां) जारी हुई उसकी भी जांच होनी चाहिए। यह भी तर्क संगत है कि जब कलेक्टर ने रिक्त खनिज अधिकारी के पद पर संयुक्त कलेक्टर संस्कृति शर्मा को खनिज विभाग का प्रभारी अधिकारी बनाया था, बाबजुद इसके सहायक खनिज अधिकारी ने प्रभारी अधिकारी को दरकिनार करते हुए उक्त लायसेंस कैसे जारी कर दिए। कुशवाहा ने खनिज अधिकारी के अधिकारों का इस्तेमाल खुद करते हुए संबंधित खदान संचालकों को लाभ किस मोटे मुनाफे के बदले दे दिया। जांच में यह कृत्य कदाचरण की श्रेणी में माना गया है।

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