अध्यात्म

ज्‍योतिष : राशि के किस भाव में रहने से शनि देव देते हैं कैसा फल, जानिये प्रथम से बारहवें भाव की स्थिति

शनि को राशि चक्र पूरा करने ( सभी बारह भावों में ) में तीस साल लगते है और ज्योतिष के ग्रन्थों के अनुसार शनि केवल तृतीय , षष्ठ व एकादश भाव में ही शुभ फल देता है यानि तीस साल में व्यक्ति को केवल साढ़े सात साल ही शनि शुभ फल देता है | इसका तात्पर्य है की बाकी के 22.5 साल में शनि अशुभ फल ही देता है। इन 22.5 साल में 7.5 साल साढ़े सती के व 5 साल अष्टम व कंटक (चतुर्थ शनि ) के अत्यधिक अशुभ बताये गये हैं। यदि इतने सारे अशुभ फल केवल शनि के कारण ही मिलने है तो बाकी ग्रहों को देखने की क्या आवश्‍यक्‍ता है।

इसमें उनका भी कोई दोष नहीं है। आजकल जातक फेसबुक पर अपनी आधे अधूरे विवरण वाली पत्री डालकर मुफ्त में अपनी समस्याओं का ज्योतिषीय हल चाहते हैं। ज्योतिष के ग्रंथों में जातक के लिए भी दैवज्ञ के प्रति श्रद्धा व यथोचित दक्षिणा का प्रावधान बताया गया है। मूल विषय शनि के चंद्रमा से विभिन्न भावों में स्थिति के अनुसार फल का था | हमें सिर्फ गोचर के हिसाब से फलकथन नहीं करना चाहिए। कुंडली को समग्रता में देखना ही उचित है।

शनि का भावानुसार फल ( चन्द्र कुंडली में )

प्रथम भाव : बहुत खराब

द्वितीय भाव : धन की हानि

तृतीय भाव: धन लाभ

चतुर्थ भाव : सुख की हानि , शत्रुओं की संख्या में वृद्धि

पंचम भाव: सन्तान पक्ष से चिंता या गुरु को शिष्यों से कष्ट

षष्ठ भाव : धन लाभ

सप्तम भाव : वैवाहिक जीवन में कलेश, साझेदारी के व्यवसाय में हानि

अष्टम भाव : शत्रुओं की संख्या में वृद्धि, बीमरी की आशंका

नवम भाव : धन व भाग्य की हानि

दशम भाव : मानसिक चिंता, कार्य क्षेत्र में परेशानी

एकादश भाव : धन लाभ

द्वादश भाव : बहुत ख़राब

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