जबलपुर में 6 माह में 1 हजार 967 सड़क हादसों में 209 मौतें : 36 हत्याकांडों से दहल गई संस्कारधानी

अनुराग तिवारी
जबलपुर, यशभारत। मेट्रो सिटी की तर्ज पर संस्कारधानी को विकसित करने लाख जतन हुए…। लेकिन कोरे विकास के विष बुझे आश्वासनों के तीखे तीरों ने जीवन की सांसे ही रोक दीं। स्याह पक्ष के आंकड़ों से झांकती तस्वीर को देखकर किसी का भी दिल दहल जाएगा। जी हां संस्कारधानी में पिछले 6 महिनों में हुए 1 हजार 967 सड़क हादसों में अब तक 209 लोगों का कफन-दफन हो चुका है तो वहीं बेजोड़ पुलिसिंग का एक नायाब कीर्तिमान स्थापित करते हुए पुलिस प्रशासन के पहरे के बीच 36 लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं। जिसके बाद लगता है कि दाल में कुछ काला नहीं बल्कि पूरी की पूरी दाल ही काली है…!!!
शहर विकास का सपना संजो रहे संस्कारधानी वासियों को लंबे समय से केवल हसीन ख्बाव दिखाए जा रहे है। सच्चाई के धरातल में हालात यह है कि राहगीरों को चलने के लिए भी शहर के प्रमुख मार्गों में फूंक-फूंक कर परिवहन करना पड़ता है। जिसके चलते सड़क हादसों में बेतरतीब इजाफा हुआ है।
ये हैं जनवरी से जून 2022 तक के आंकड़े
जबलपुर मे वर्ष 2022 में जनवरी से जून तक 6 माह की अवधि में 1967 यातायात दुर्घटनाएं घटित हुई है। जिनमें 209 व्यक्तियों की मृत्यु हुई एवं 2048 व्यक्ति घायल हुए है। इस दौरान 302 भारतीय दंड संहिता के अपराध में मृत व्यक्यिों की संख्या 36 होना पाई गई।
सड़क दुर्घटनाओं में हत्याकांडों की अपेक्षा 6 गुना मौतें
जिले में बीते 6 माह में हत्याकांड़ों की अपेक्षा सड़क दुर्घटनाओं में 6 गुना अधिक मौतें हुईं है। अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यातायात व्यवस्था कितनी दुरुस्त है? जिम्मेदार जहां फोर्स में कमी का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़ते है तो वहीं गड्ढों में तब्दील हुईं सड़कों के लिए जिम्मेदार बंगले झांकते हुए शहर को विकसित करने की मंशा पर कार्य करने का भरोसा देते है।
…तो कहां जाए आम आदमी!
बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त हो चुका आम आदमी अब सड़कों में भी महफूज नहीं है। कब उसके लहू से सड़क लाल हो जाए, कहना मुश्किल है। घटिया ट्रेफिक व्यवस्था और बदहाल जिम्मेदारों के जिम्मे, अब रहवासियों की जिदंगी महफूज नही रही। जिसको लेकर पूरे प्रशासन को अब चिंतन करना चाहिए।
इन्होंने कहा……
विनाशकाले विपरीत बुद्धी….
एडीशनल एसपी अपराध समर वर्मा ने हत्याकांडों को लेकर बताया कि हर हत्यारे को यह पता रहता है कि आज नहीं तो कल वह पकड़ा ही जाएगा और माननीय न्यायालय उसे सजा से दंडित करेगा, लेकिन उसके बाद भी वह खौफनाक वारदातों को अंजाम देता है। यह छडि़क आवेश है, जहां व्यक्ति के सोचने और समझने की क्षमता क्षीण हो जाती है और वह हत्या कर देता है। लेकिन बाद में उसे पछतावा होता है। यह विनाशकाले विपरीत बुद्धी जैसा ही है।
दुर्घटनाओं को रोकने परीक्षा में 5 नंबर का सिलेबस होना चाहिए
एडीशनल एसपी यातायात प्रदीप शेंडे ने बताया कि जब तक लोगों में ट्रेफिक सेंस नहीं आएगा। तब तक अंकुश लगाना नामुमकिन है। देश में यदि सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाना है तो पढ़ाई में यह सिलेबस आना अनिवार्य है और परीक्षा में पांच नंबरों के प्रश्र केवल ट्रेफिक से संबंधित पूछे जाएं। ताकि जागरुकता बढ़े।
बाइक 60 से ज्यादा स्पीड में ना चले
श्री शेंडे ने इस दौरान बताया कि बाइक निर्माता कंपनियों को सरकार यह आदेश दे कि बाइक 60 किमी प्रति घंटे से ज्यादा की स्पीड से ना चलें। इसके साथ ही पूरे समाज और विभागों को भी आगे आना होगा। तभी सड़क दुर्घटनाओं में अंकुश लगाया जा सकता है।