जबलपुरमध्य प्रदेश

जबलपुर के प्रिंस को घातक बीमारी : अपोलो में 22 लाख का खर्च, परिजनों ने कहा- हमारे पास केवल 9 लाख है, सभी करें मदद तो जिंदा रह सकेगा लाल

- दुर्लभ है एल्ड्रिज फेलियर सिंड्रोम बीमारी, सीएम-पीएम फंड से मिली 5 लाख रुपये की मदद

जबलपुर, यशभारत। जबलपुर के 8 वर्षीय प्रिंस को एल्ड्रिज फेलियर सिंड्रोम नामक घातक बीमारी है। यह बीमारी लाखों में किसी एक को होती है। परिजनों को जब इस बात का पता ढाई साल के बाद चला तो उनके पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गयी। जिसके बाद बच्चे को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में दिखाया गया, जहां इलाज के लिए 22 लाख रुपए का खर्च बताया गया है। लेकिन पीडि़त परिजनों की इतनी हैसियत नहीं है कि वह प्रिंस का अपोलो में इलाज करा सकें। उनका कहना है कि प्रिंस को बचाने के लिए उनके पास केवल 8-9 लाख रुपय ही है,जिसमें पांच लाख की मदद शामिल है। लेकिन इतने में इलाज संभव नहीं है। जिसके बाद पीडि़तों ने जबलपुर की समाजसेवी संस्थाओं और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई है। ताकि जबलपुर के लाल को बचाया जा सके।

गोकलपुर निवासी प्रिंस के नाना गोपाल प्रसाद ने बताया कि प्रिंस को एल्ड्रिज फेलियर सिंड्रोम नामक घातक बीमारी है। जो करीब लाखों में एक को होती है और यह केवल लड़कों में ही पाई जाती है। जिसके इलाज के लिए दिल्ली स्थित अपोलो अस्पताल और गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया। चिकित्सकों ने इलाज के लिए करीब 22 लाख रुपए का खर्चा बतलाया है। परिवार को सीएम और पीएम फंड से करीब 5 लाख रुपए प्राप्त हुए है। लेकिन कुल मिलाकर उसके पास करीब नौ लाख रुपए हुए है। लेकिन इन पैसों से इलाज नहीं कराया जा सकता है। बच्चे के नाना ने देश व प्रदेश की संस्थाओं और संगठनों सहित जनप्रतिनिधियों से मदद की गुहार लगाई है। जिससे बच्चे को जीवन दान मिल सकेगा।

यह है बीमारी के लक्षण
प्रिंस कोरी की मां लक्ष्मी कोरी ने बताया कि एल्ड्रिज फेलियर सिंड्रोम बीमारी के कारण प्रिसं को खून की उल्टी आना….याददाश्त कमजोर होना…आधे शरीर में झुनझुनी की शिकायत…सहित किडनी पर दुष्प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है। यदि जल्द इलाज नहीं कराया तो स्थिति जटिल हो सकती है।

बच्चे की मां को पति ने छोड़ा
प्रिंस कोरी की मां लक्ष्मी कोरी ने बताया कि प्रिंस के जन्म के कुछ साल बाद ही उसके पिता ने उसे छोड़ दिया। जिसके बाद वह अपने मायके में ही रह रही है। प्रिंस की नानी पेंशनर्स है। जिसके चलते परिवार का भरण-पोषण तो जैसे-तैसे हो जाता है, लेकिन इलाज संभव नहीं है।

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