उत्कृष्ट धरोहरों की स्थापत्य कला ने किया अचंभित : यूनेस्को की सूची में मध्ययप्रदेश की 6 धरोहरों को किया गया शामिल….

मण्डला , यश भारत l
यूनेस्को के विश्व हेरिटेज सेंटर द्वारा भारत की अस्थाई सूची में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों से समृद्ध मध्यप्रदेश की 6 संपत्तियों को जोड़ा है। यह देश और मप्र के लिए गर्व और सम्मान का विषय है।

इस गौरवपूर्ण उपलब्धि की जानकारी देते हुए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने मोहन यादव ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर जानकारी देते हुए प्रदेशवासियों को बधाई और शुभकामनाएं दी है। बता दे कि मध्यप्रदेश से छह विरासत संपत्तियों के लिए दस्तावेज प्रस्तुत किए गए है। जिसमें ग्वालियर किला, धमनार का ऐतिहासिक समूह, भोजेश्वर महादेव मंदिर, चंबल घाटी के रॉक कला स्थल, खूनी भंडारा, बुरहानपुर और आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला गौड़ स्मारक रामनगर को विश्व धरोहर सूची में अंकित करने के लिए अस्थायी सूची में जोडना अनिवार्य है।
जानकारी अनुसार मप्र की 06 धरोहरें समृद्ध इतिहास और संस्कृति का प्रतीक हैं। ये धरोहरें जल्द ही विश्व धरोहर सूची में भी शामिल होंगी। जानकारी देते हुए यूनेस्को में भारत के स्थाई प्रतिनिधिमंडल की तरफ से बताया है।
भारत के मध्यप्रदेश से 06 विरासत संपत्तियों के लिए दस्तावेज प्रस्तुत किए गए हैं। प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि विश्व धरोहर सम्मेलन के परिचालन दिशा निर्देशों का अनुपालन करता है और उन्हें 14 मार्च 2024 को यूनेस्को के विश्व हेरिटेज सेंटर की ओर से भारत की अस्थायी सूची में जोड़ा गया है। यदि भविष्य में किसी संपति को नामांकित किया जाएगा तो विश्व धरोहर सूची में अंकित करने के लिए अस्थायी सूची में जोडना अनिवार्य है।
मंडला जिले के रामनगर में स्थित मोती महल का निर्माण सन् 1667 ईसवी में गोंड राजा हृदय शाह द्वारा पवित्र नर्मदा नदी के किनारे कराया गया था। इस महल को मोती महल या राजा का महल भी कहा जाता है। इस महल का मुख उत्तर दिशा, नर्मदा नदी की ओर है। मोती महल का आकार आयताकार है जो बाहर से 64.5 मीटर लंबा और 61 मीटर चौड़ा है। महल के भीतर विशाल आँगन है, जिसके बीचो-बीच एक विशाल कुंड है जिसमें पानी भरा रहता है, इसे स्नानागार भी कहा जाता है। महल के सामने एक बड़ा गेट है। मोती महल तीन मंजिला है, जिसमें ऊपर जाने के लिए सीढियां बनी हैं। महल में तलघर भी है। मोती महल की हर मंजिल पर बहुत से छोटे बड़े कमरे हैं, जिनमें बीच की ओर, बहार की और स्थित कमरे लंबे है और बगल के अंदर के कमरे के आकार छोटे हैं। जिनमे राजा का पूरा निवास हुआ करता था। माना जाता है कि निर्माण के समय महल नर्मदा नदी से 80 फीट के ऊंचाई पर था। मोती महल के आँगन की दीवार में लेख जड़ा हुआ है।
जिसमें गोंड राजवंश के संस्थापक यदुराय जिन्हें जादौराय भी कहा जाता है से लेकर हृदय शाह तक के राजाओं की वंशावली दी गई है। इस लेख में तिथि विक्रम संवत् 1724 (सन् 1667 ) लिखी हुई है। महल की दीवार से लगा हाथी खाना है जिसमें हाथियों को रखा जाता था। हाथी खाने के पास ही घोड़ों को रखने भी व्यवस्था थी। महल का निर्माण चूने, गारे, गुड और बेल की गोंद से किया गया है। मोती महल में कुछ सुरंगे भी है। माना जाता है कि ये सुरंगे जबलपुर के मदन महल और मंडला के किले में खुलती हैं। मोती महल गोंड राजाओं की शक्ति और वैभवशाली परम्परा की अनमोल धरोवर है। मध्यप्रदेश शासन द्वारा मोती महल को सन् 1984 में संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।
मोती महल का निर्माण
किवदंतियों के अनुसार राजा हृदय शाह तंत्र विद्या में माहिर थे। हृदय शाह ने तंत्र शक्ति से मोती महल का निर्माण ढाई दिन में कराया था, जिसमें महल के पत्थर हवा में उड़ कर आये थे लेकिन आधुनिक इतिहासकार इस बात को सिरे से नकारते है। उनके अनुसार हृदय शाह तंत्र विद्या के बहुत बड़े जानकार थे लेकिन इस महल का निर्माण में पत्थर हवा में उड़ कर आने की बात सही नहीं कही जा सकती और महल का निर्माण सन् 1651 से सन् 1667 के बीच हुआ है और महल निर्माण में लगे अष्टफलकीय पत्थर बाहर से बुलवाये गये थे और जो पत्थर काला पहाड़ के पास रखे है वो महल निर्माण के बाद बचे पत्थर हैं। इस महल के नजदीक ही दो महल और हैं जिन्हें राय भगत की कोठी और रानी महल के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि रामनगर में इतना सोना था कि आज भी रामनगर के आसपास खुदाई के दौरान लोगों को सोना मिलने की खबर मिलती रहती हैं। महल के आसपास लोगों ने अतिक्रमण भी कर लिया है।