अगर तीन नामों का पैनल गया दिल्ली तो जिलाध्यक्ष बदलना तय, कल होने वाली रायशुमारी के लिए आज से ही सक्रिय हुए दावेदार
क्या विद्यार्थी परिषद के प्रभाव से बाहर निकाला जाएगा जिला संगठन

कटनी। भाजपा जिलाध्यक्ष के चुनाव के लिए दावेदारों ने आज सारा दिन खास रणनीति पर काम किया। कल जिलाध्यक्ष पद के लिए भाजपा जिला कार्यालय में रायशुमारी की जाना है, इसको लेकर दावेदार आज से ही सक्रिय हो गए। पार्टी के जिम्मेदार लोगों ने रायशुमारी के 24 घंटे पहले तक इस बात को सार्वजनिक नहीं किया कि अपनी राय देने किए कौन कौन नेता और कार्यकर्ता पात्र होंगे, लिहाजा आज दोपहर तक असमंजस की स्थिति रही। इस बीच पार्टी ने केंद्र से जिलाध्यक्षों को लेकर जो नई गाइडलाइन तय कर दी है, उससे महिलाएं और युवा चेहरे उत्साहित नजर आ रहे हैं। उनकी उम्मीदें परवान चढ़ चुकी हैं। उधर संगठन चुनाव को लेकर भोपाल में भी हलचल है। दिल्ली से जो खबरें आ रही हैं उसने मौजूदा पावर सेंटर की नींद उड़ा दी है।
मंडल अध्यक्षों के चुनाव निपटने के बाद अब जिलाध्यक्ष और प्रदेश अध्यक्ष को लेकर बिसात बिछाई जा चुकी है, लेकिन दिल्ली दरबार से आ रही खबरों ने नए समीकरणों को जन्म दे दिया है। पता चला है कि एक नाम पर आम सहमति न बनने की सूरत में तीन नामों का पैनल तैयार किया जाएगा और चुनाव अधिकारी पैनल भोपाल के बजाय दिल्ली भेजेंगे। जिलाध्यक्ष की घोषणा दिल्ली से होंगी। एक तरह से पूरी पार्टी में चुनाव की आचार संहिता प्रभावशील है, ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष से लेकर मौजूदा जिला संगठन के पदाधिकारियों को हस्तक्षेप के कोई अधिकार नहीं हैं। सारी कमांड एमपी संगठन के प्रभारी महासचिव और दिल्ली के अन्य नेताओं ने अपने हाथ में ले रखी है। कटनी में कल होने वाली रायशुमारी अहम है। जिला प्रभारी हरिशंकर खटीक कार्यकर्ताओं और नेताओं से उनकी पसंद का नाम पूछेंगे। एक से अधिक नाम होने पर तीन नामों का पैनल बनेगा। रायशुमारी की सारी रिपोर्ट इस बार दिल्ली बुलवाई जा रही है, इसलिए मौजूदा नेतृत्व के माथे पर बल पड़ रहे हैं। वैसे स्थानीय स्तर पर पूरी कोशिश की गई है कि चुनाव अधिकारी के सामने राय देने के लिए ऐसे लोगों को भेजा जाए, जो उनका ही नाम लें। बावजूद इसके अन्य दावेदारों ने भी आज सारा दिन शहर के उन प्रमुख भाजपा नेताओं से संपर्क कर अपने लिए समर्थन मांगा, जो कल रायशुमारी का हिस्सा बन सकते हैं।
संघ की अलग राय, विद्यार्थी परिषद के भी एक गुट को मिली तवज्जो
सूत्र बताते हैं कि जिला संगठन के संचालन के मौजूदा तौर तरीकों से आरएसएस के कटनी में मौजूद पदाधिकारी भी खुश नहीं है, परन्तु वे खुलकर अपनी राय देने से बचते हैं। रामरतन पायल के जमाने में दीपक टंडन को संघ से मुक्त कर सीधे जिला संगठन में उपाध्यक्ष बना दिया गया था। इसके बाद टंडन को वीडी शर्मा के प्रदेश अध्यक्ष रहने का लाभ मिला और वे जिलाध्यक्ष बन गए। तब राजनीतिक तौर पर वजह यही बताई गई कि नई पीढ़ी को नेतृत्व सौंपने विद्यार्थी परिषद के नेताओं को आगे किया जा रहा है। इस मामले में पार्टी के नीति नियंताओं की अपनी सोच हो सकती है किंतु कटनी के जिला संगठन में विद्यार्थी परिषद के केवल एक गुट को ही महत्व मिला। जो गुट विशेष के विद्यार्थी परिषद कार्यकर्ता नहीं थे, वे हाशिए पर ही बने रहे। दूसरी स्थिति यह सामने आई कि जिला संगठन के भरोसे वीडी शर्मा जैसे बड़े नेता की सोच और विचारधारा भी जनता तक उतने प्रभावी ढंग से नहीं पहुंच सकी। वीडी के खिलाफ कटनी में विकास को लेकर उठने वाली आवाजें इसी मिस मैनेजमेंट का नतीजा हैं।
क्या युवाओं को मिलेगी अहमियत
सूत्र बताते हैं कि अगर वीडी शर्मा ने वीटो का इस्तेमाल नहीं किया, या दिल्ली ने इसी टीम पर ज्यादा शिकंजा कस दिया तो फिर जिले में बदलाव तय है। वैसे भी दिल्ली से चली जिस नई गाइडलाइन के बारे में सुना जा रहा है, अगर प्रदेश में लागू हुई तो जिलाध्यक्ष के पद पर नए नेता की ही ताजपोशी होगी। ऐसी स्थिति में नए नामों पर विचार किया जाएगा। रायशुमारी में बनने वाले पैनल पर चर्चा और भोपाल समेत दिल्ली के नेताओं की राय के बाद जिलाध्यक्ष की घोषणा होगी। सूत्रों के मुताबिक इस बार जिले के विधायकों की राय को भी खसा महत्व दिया जा रहा है, इसलिए दावेदार पूरे समय विधायकों को साधने में सक्रिय हैं। चारों विधायकों का समर्थन किसके साथ होगा यह भी बहुत महत्व रखेगा। बदलाव की संभावना पर पूर्व महापौर शशांक श्रीवास्तव का नाम भी अचानक उभरा है। खबर है कि वे जिस चैनल से 7 साल पहले मेयर की टिकट लाए थे, उन्होंने उसी चैनल को सक्रिय कर दिया है। कोई आश्चर्य नहीं कि दिल्ली से उनका नाम आ जाए। अगर वीडी शर्मा की ही चली और बदलाव का भी दबाव रहा तो बीच का रास्ता पीतांबर टोपनानी के रूप में रहेगा। अगर ये समीकरण नहीं चले तो अश्विनी गौतम और सुनील उपाध्याय में से किसी एक की मेहनत और विधायकों का सपोर्ट काम आ जायेगा। इन तमाम स्थितियों के उलट अगर युवा पीढ़ी पर ही सारा फोकस चला गया तो अभिषेक ताम्रकार और अर्पित पोद्दार जैसे नाम भी विचार में आ सकते है। अभिषेक को पार्षद के बतौर सत्ता और मंडल अध्यक्ष के बतौर संगठन की राजनीति का तजुर्बा है। उनके साथ एक बड़ी टीम भी है। दूसरी ओर अर्पित भी अपने स्तर पर शहर में सक्रिय रहते हुए भोपाल और दिल्ली के अपने संपर्कों को खंगाल रहे हैं। उनके भाजपा में रहने या न रहने को मुद्दा अवश्य बनाया जा रहा है किंतु यह सभी जानते है कि हकीकत क्या है। रेलवे स्टेशन में तत्कालीन जिलाध्यक्ष से उनका विवाद किस वजह से हुआ और फिर एकतरफा कार्यवाही कैसे हुई, यह हर कार्यकर्ता जानता है।इस बात से भी सभी वाकिफ है कि लोकसभा चुनाव में पूर्व विधायक राजू पोद्दार द्वारा नामांकन जमा कर देने से टीम वीडी आज भी उनसे नाराज है। इसका असर अर्पित और राजू पोद्दार दोनों की राजनीति पर समान रूप से पड़ रहा है। लगातार कोशिश की जा रही है कि वे पार्टी की मुख्य धारा से बाहर ही रहें, जबकि अन्य चुनावों में जिन लोगों ने पार्टी लाइन से हटकर इलेक्शन लड़ा, उनकी सम्मान पार्टी में वापसी हो गई।

