सावन की थीम पर सजा कटनी का बाजार, सौंदर्य प्रसाधनों में दिख रही प्रकृति की झलक
कटनी, ( संजय खरे )। सावन की थीम पर बाजार तो सज गया हैं लेकिन खरीददारी कम होने से बाजार की रौनक फ़ीकी नज़र आ रही हैं। सावन शुरू होते ही हरियाली उत्सव भी शुरू हो गए है। खासकर महिलाएं सावन को बड़े उत्साह के साथ मनाती है। तीसरा सोमवार बीत गया है। 12 अगस्त को चौथा और 19 अगस्त को पांचवा सोमवार सावन की पूर्णिमा को है। इस दिन भाई बहन के पवित्र बंधन का रक्षाबंधन का त्यौहार भी मनाया जाएगा। ये संयोग ही है की सावन की शुरुआत सोमवार कृष्णपक्ष से हुई तो सावन के आखिरी दिन में भी सोमवार हैं और इसी दिन श्रवण शुक्लपक्ष की पूर्णिमा भी है।
हिन्दू सभ्यता में सावन का अपना अलग ही महत्व है। सावन में सौभाग्यवती महिलाएं हरी चूड़ी और साड़ी से अपना श्रंगार करती है। इसी तर्ज पर शहर में बाजार पूरी तरह सज गए हैं।व्यवसायियों ने हरे रंग की का स्पेशल कलेक्शन मंगवाया है। सभी अलग- अलग रेंज में हैं। हरी चूड़ियों में कटिंग, वेलवेट टच, स्पार्कल, सीप, लहठी, मेटल आदि उपलब्ध हैं। मेहंदी भी कई कंपनियों की मंगवायी गई है। बारिश ने बाजार का माहौल फीका कर दिया है फिर भी महिलाओं की खरीदारी जारी है। कुछ महिलाएं अवसर विशेष तो कई पूरे सावन मास में हरी साड़ी व चूड़ी पहनती हैं।
शहर के कारोबारी बताते है की कटनी शहर में वैसे तो सैकड़ो जनरल स्टोर है लेकिन सभी प्रकार की के मामले में शहर में 60 से 70 सौदर्य प्रसाधन की दुकानें है।और इस सावन में विभिन्न बेरायटी की कांच की हरी चूड़ियों की मांग ज्यादा रहती है। यह सस्ती होती हैं। इसे सभी वर्ग की महिलाएं धारण करती हैं। यही कारण है कि बाजार में अन्य चूड़ियों की अपेक्षा कांच की चूड़ियों की बिक्री ज्यादा है। शृंगार की दुकानों में भी खरीदारी शुरू है।
■ सोंदर्य प्रसाधन के कारोबारी अंकित अग्रवाल बताते हैं कि हरे रंग की डिजाइनर चूड़ियों के साथ लहठी आदि की एक से बढ़कर एक वैराइटी उपलब्ध है। कांच की चूड़ियों में कटिंग, वेलवेट टच, स्पार्कल चूड़ियां सबसे अधिक पसंद की जा रही हैं। इसके अलावा सीप, लहठी, मेटल की भी चूड़ियां बाजार में उपलब्ध हैं। सावन के लिए खासकर इंदौर जयपुर, फिरोजाबाद से डिजाइनर चूड़िया कंगन इत्यादि मंगवाई गई हैं।
◆ सौंदर्य प्रसाधन के अन्य विक्रेता दिनेश चेलानी बताते है बाजार तो सावन के मुताबिक सज गया है लेकिन खरीददारी कम है बारिश की बजह से मार्केट डाउन है। इसका एक कारण महंगाई भी है।वैसे इस बार बाज़ार में बेहतरीन फैंसी आइटमों की भरमार है।
■ तेल पाउडर फेस क्रीम इत्यादि के थोक विक्रेता मनोज पोपटानी कहते है। बाजार में प्रसाधन सामग्री के रेट में 10 से 15 परसेंट की ग्रोथ तो हर साल आती है। अब इसे महंगाई का नाम दे सकते है। लेकिन इन सामग्रियों में कीमत प्रिंट के मुताबिक तय की जाती है।
■ अन्य गिफ्ट सेंटर के संचालक सृजन बताते हैं महंगाई का असर तो बाजार में है लेकिन पिछले साल की तुलना में कुछ सामग्री में रेट बढ़े है। लेकिन बिंदी आज भी एक रुपये पत्ते की कीमत में ही बिक रही है।
■ महिला श्रंगार सदन की संचालिका तान्या पिपरसनिया कहती हैं सावन में हरे रंग की डिमांड ज्यादा रहती हैं लिहाज़ा जनरल स्टोरेज में हरे रंग की चूड़ियां, बिंदी, मेहंदी, की बिक्री ज्यादा रहती हैं।और यही डिमांड और मांग के मुताबिक शहर के श्रंगार सदन में सौदर्य की सामग्री उपलब्ध हैं।
■ उत्साहित हैं महिलाएं
सावन महीने का अलग ही आनंद है। चारों दिशाओं में हरियाली मन काे आनंदित कर देती है। सावन शुरू होते ही हरियाली उत्सव भी शुरू हो जाते है। खासकर महिलाएं सावन को बड़े उत्साह के साथ मनाती है।
— सरिता खरे
■ महिलाएं सावन में झूला झूलतीं हैं, सावन के गीतों पर पैरों की थिरकन रोके नहीं रुकती।
शहर में अलग-अलग संगठनों की महिलाओं ने भी ग्रीन थीम के अनुसार सावन उत्सव सेलिब्रेट करना शुरू कर दिया है। हरे रंग की परिधान धारण करने के साथ हरे रंग के बिंदी, चूड़ी का श्रृंगार कर मनोरंक खेल भी खेलती है।
— माया सेठिया
■ बाजार में महिलाओं के लिए हरे रंग की साड़ियां, चूड़ियां, श्रृंगार के सामान और पारंपरिक खेलों के सामान बिकने लगे हैं। प्रकृति की विभिन्न रूपों में पूजा की जाती है और खास पौधों, जैसे- पीपल, तुलसी और केले के पेड़ को पवित्र माना जाता है। इस प्रकार, हरा पहनना श्रद्धा के कार्य के रूप में देखा जाता है और माना जाता है कि इससे प्रकृति का आशीर्वाद मिलता है।
— नीतू सोनी
■ महिलाओं के लिए ग्रीन थीम पर साड़ी, चुनरी, चूड़ी, कंगन, के साथ अन्य सौंदर्य समानों का सेट शहर की सौदर्य प्रसाधन दुकानों में उपलब्ध हैं।
— सोनम जैन
■ सावन का महीना शुरू होते ही सावन उत्सव शुरू हो गए है। ऐसे में सबसे ज्यादा हरे रंग की सौंदर्य प्रसाधनाें की मांग रहती है। ग्रीम थीम के अनुसार डिजाइनर और अलग-अलग वैरायटी के हरे रंग की साड़ी सहित चूड़ियां दुकान में है।
— किरण त्रिपाठी