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प्राइम टाइम विथ आशीष शुक्ला में मनोवैज्ञानिक पायल चौरसिया से विशेष चर्चा: बच्चों के जीवन में माता-पिता की भूमिका अति महत्वपूर्ण

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जबलपुर यश भारत । आज के बदलते दौर में वर्किंग पैरेंट्स के पास पैसा तो है, लेकिन अपने बच्चों के लिए समय नहीं है। जिसके चलते बच्चे माँ -बाप से दूर होते जा रहे हैं । पैरेंट्स बच्चों की भावनाओं को समझ नहीं पाते, जिससे बच्चों के स्वाभाव में परिवर्तन आ जाता है ।यह कहना है स्टेम्प फील्ड इंटरनेशनल स्कूल में बतौर काउंसलर अपनी सेवा दे रही मनोवैज्ञानिक पायल चौरासिया का, जो प्राइम टाइम विथ अशीष शुक्ला में बच्चों की मनो दशा और मनोविज्ञान से जुड़े बिंदुओं पर चर्चा कर रही थी । जिसे आप यश भारत के अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ यश भारत न्यूज चैनल पर विस्तार से देख सकते हैं।

5 से 14 साल है महत्वपूर्ण

चर्चा के दौरान पायल चौरसिया ने बताया कि बच्चों के लिए 5 साल से लेकर 14 साल तक की उम्र सबसे महत्वपूर्ण होती है। ऐसे में सबसे ज्यादा परिवर्तन देखने को मिलते हैं और माता-पिता को इस दौरान विशेष ध्यान देने की जरूरत रहती है। 14 साल के बाद बच्चों का एक व्यक्तित्व निर्मित हो जाता है और वहां से निर्धारित हो जाता है कि बच्चा किस दिशा में जाने वाला है। कहीं न कहीं बच्चा 14 साल की उम्र के बाद परिपक्वता की ओर बढ़ने लगता है ऐसे में अभिभावकों को 5 से लेकर 14 साल के बीच में बच्चों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। उनकी आदतों उनके व्यवहार उनकी कार्यशैली को समझना चाहिए और उन्हें पूरा समय देना चाहिए।

माता-पिता की काउंसलिंग भी है जरूरी

कार्यक्रम संचालक आशीष शुक्ला द्वारा विभिन्न बिंदुओं पर चर्चा की गई इस दौरान बच्चों के व्यवहार में अभिभावकों की भूमिका को भी समझने की कोशिश की गई। जिसके जवाब में पायल चौरसिया ने बताया कि बच्चों की काउंसलिंग के साथ-साथ माता-पिता की काउंसलिंग भी जरूरी होती है । जब भी स्कूल में किसी बच्चे के साथ बात करती हैं उसके व्यवहार को समझती हैं और उसमें सुधार को लेकर काम करती है तो इसकी जानकारी माता-पिता को भी होनी चाहिए। क्योंकि वह ज्यादा समय घर पर विताते हैं जहां उनके माता-पिता उनके साथ होते हैं । ऐसे में उनके व्यवहार में क्या परिवर्तन आ रहा है क्या नहीं आ रहा है इस बात को माता-पिता बहुत अच्छे से समझ सकते हैं ऐसे में बच्चों के साथ-साथ माता-पिता की काउंसलिंग भी जरूरी होती है।

मोबाइल की जगह टीवी से पढ़ाये

आशीष शुक्ला द्वारा बच्चों के मोबाइल के उपयोग के विषय में चर्चा की गई इसके बारे में काउंसलर द्वारा बताया गया कि बच्चों को स्कूल ऐज में मोबाइल नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि उन्हें दौरान उसकी कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती। लेकिन आज के समय में पढ़ाई और प्रोजेक्ट वर्क के लिए इंटरनेट की जरूरत होती है। इसके लिए अभिभावक प्रयास करें कि वह घर में बड़ी टीवी लगाए और उसके माध्यम से ही बच्चों को पढ़ाई कराए क्योंकि वह मोबाइल स्क्रीन पर क्या देख रहे हैं यह हर समय नजर रखना संभव नहीं है। ऐसे में जब बच्चे टीवी पर देखकर पढ़ाई करते हैं और सीखते हैं तो अभिभावक आसानी से उसे पर नजर रख सकते हैं और बच्चों को सही और गलत में अंतर बता सकते हैं।

मनोविज्ञान और मनोचिकित्सा दो अलग विधाएं हैं

मनोवैज्ञानिक पायल चौरसिया द्वारा बताया गया कि यदि आपको महसूस होता है कि आपका व्यवहार में अवांछित परिवर्तन आ रहे हैं या फिर आपको ऐसा लगता है कि आपकी आदतें पहले से बदलती जा रही हैं , तो फिर किसी मनोवैज्ञानिक से सलाह लेना जरूरी हो जाता है। लोगों के मन में सवाल उठता है कि वह कोई पागल तो नहीं है जो वह मनो चिकित्सक के पास जाए लेकिन वास्तविकता में मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक दो अलग-अलग विधाएं हैं। मनोवैज्ञानिक वो होते हैं जो आप के मन की बातों को आपकी भावनाओं को आपके विचारों को समझते हैं और फिर उसके लिए आपको उपयुक्त सुझाव देते हैं। वही मेंटल डिसऑर्डर की स्थिति में मनोचिकित्सक के पास जाया जाता है एक ओर मनोवैज्ञानिक थेरेपी और काउंसलिंग के माध्यम से आपकी स्थिति में सुधार करता है वही मनोचिकित्सक दबाओ के माध्यम से आपका इलाज करता है । ऐसे में बहुत जरूरी हो जाता है कि आप सही मनोवैज्ञानिक का चयन करें क्योंकि वही आपको बताता है कि आपको मनो चिकित्सक की आवश्यकता है या नहीं। वर्तमान समय में बहुत से लोग हैं जो छोटे-मोटे डिप्लोमा करके यह काम कर रहे हैं जिनके पास जाने से आपको फायदे से अधिक नुकसान हो सकता है

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