इस सिस्टम को कितने सौरभ शर्मा लगाएंगे दीमक ?:भ्रष्टाचार की जड़े गहरी, जनता का भगवान ही मालिक
मध्यप्रदेश में परिवहन विभाग के पूर्व कांस्टेबल के ठिकानों पर छापा कार्रवाई के दौरान हुई देश की सबसे बड़ी सोने की जब्ती के मामले की गूंज पूरे देश में हैं। एक साधारण कॉन्स्टेबल के पास करोड़ों रुपये नकदी, 54 किलो सोना, कई क्विंटल चांदी मिलने की खबर से हड़कंप मचा है। चौंकाने वाला एक खुलासा यह भी हुआ कि वर्ष 2021 में नौकरी छोड़ने वाले सौरभ शर्मा का 3 साल बाद इतना माल एक साथ कैसे पकड़ में आ गया। दरअसल लोकायुक्त में शिकायत के बाद जब सघन छापेमारी हुई तो अकूत संपत्ति का शहंशाह सौरभ शर्मा निकला l बड़ा सवाल यह है कि देश की प्रतिष्ठित जांच एजेंसियां उस वक्त कहां थी जब करोड़ों की संपत्ति का मालिक सौरभ शर्मा अपने भ्रष्टाचार का ताना-बाना बुन रहा था।
ये मामले हाल के हैं, वरना देश में भ्रष्टाचार की अनेक मिसाल हैं, जिन्होंने जनमानस को सोचने पर विवश कर दिया है। जनता की गाढ़ी कमाई पर अफसरों की लार टपकने के बाद व्यवसायियों और राजनेताओं के सिंडिकेट से उनकी सांठगांठ के किस्से जग जाहिर हो चुके हैं। सौरभ शर्मा जैसे लोग इस तालाब की बहुत छोटी मछली हो सकते है। विकास के पथ पर अग्रगामी हो रहे इस देश में आखिर कब तक यह खेल चलेगा। भ्रष्टाचारियों के अवैध किले को भेद पाना बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। आखिर इस नेक्सस को कैसे तोड़ा जा सकेगा।
यूं तो शुरू से ही देश की आजादी के बाद तमाम सरकारों में घोटाले और भ्रष्टाचार उजागर होते रहे है।ऐसा भी नहीं है कि कार्यवाहियां ना हुई हो। बड़ा सवाल यह है कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने का मेकैनिज्म शायद अभी तक प्रमुख संहिता में उपलब्ध तो है लेकिन अफसरशाही के चलते संहिता की तमाम धाराएं मानो बेड़ियों में जकड़ी हुईं है। आए दिन लोकायुक्त की कार्रवाइयों में तमाम प्रशासनिक अधिकारी रिश्वत लेते हुए पकड़े जाते हैं जिन पर कार्यवाहियां भी होती हैं….जिसका साफ मतलब यह है की प्रशासनिक स्तर पर घोर भ्रष्टाचार है जिसकी पुष्टि स्वयं प्रशासनिक कार्रवाइयों के दौरान ही होती आई है। तो क्या ऐसे ही भ्रष्टाचारियों पर लगाम लग सकेगी ? क्या देश में विकास का सपना संजो रहे भारत वासियों को बला-ए-ताक पर रखकर भ्रष्टाचारियों के भरोसे छोड़ दिया जाएगा। सरकार 1 रुपया भेजती है, तो लोगों तक 15 पैसे पहुंचते हैं…भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने यह बात कही थी जो आज भी प्रासंगिक है। विकसित हो रहे देश के ढांचे में भ्रष्टाचार का सुराग लगातार देश की जड़ों को खोखला करता आ रहा है। ऐसी संभावना व्यक्त की जाती है कि कार्रवाइयों के दौरान जांच एजेंसियों के द्वारा केवल 10 फीसद भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई हो पाती है। ऐसे में भ्रष्टाचार की पूरी कहानी यही कहती है की दाल में कुछ काला नहीं बल्कि पूरी दाल ही काली है l यदि कानून को सख्त करते हुए अफसरशाही को नियंत्रित ना किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब इसके गंभीर परिणाम सामने आएंगे। सोचनीय प्रश्न है कि प्रशासनिक पदों की शोभा बढ़ा रहे अधिकारी और कर्मचारी जब स्वयं लुटेरे हो जाएं तो जनता का भगवान ही मालिक है?
अनुराग तिवारी
पत्रकार, यशभारत, जबलपुर