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हरतालिका तीज भगवान शिव और देवी पार्वती के वैवाहिक बंधन का सम्मान करने के लिए मनाई जाती है। हरतालिका तीज पर लड़कियां और विवाहित महिलाएं दोनों ही व्रत रखती हैं और हरतालिका तीज मनाती हैं। यह त्यौहार भाद्रपद के महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। महिलाएं इस त्यौहार को आनंदमय और खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए अनुष्ठानों के साथ मनाती हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखा था।
हरतालिका तीज का धार्मिक महत्व
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हिंदू परंपराओं के अनुसार, हरतालिका तीज को आपकी इच्छाओं की पूर्ति और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए सबसे पवित्र और शुभ व्रत माना जाता है। न केवल उत्तरी भारत में, बल्कि देश के दक्षिणी हिस्से में भी लोग हरतालिका तीज को भक्ति और उत्साह के साथ मनाते हैं। इस त्यौहार को कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में गौरी हब्बा के नाम से जाना जाता है। लड़कियाँ और महिलाएँ गौरी हब्बा की पूर्व संध्या पर देवी गौरी की पूजा करके और स्वर्ण गौरी व्रत रखकर उनसे आशीर्वाद लेती हैं।
हरतालिका तीज व्रत अनुष्ठान
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हरतालिका तीज पर लड़कियां और महिलाएं 24 घंटे का व्रत रखती हैं। ऐसा देखा गया है कि व्रत रखने वाले श्रद्धालु इस पूरे त्यौहार के दौरान पानी या अनाज का सेवन नहीं करते हैं। महिलाएं भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि को भोर में अपना व्रत शुरू करती हैं और चतुर्थी को भोर में इसे समाप्त करती हैं। व्रत शुरू होते ही महिलाओं को एक व्रत लेना होता है जिसे जीवन भर निभाना होता है। व्रत के प्रति सचेत रहना चाहिए और लिए गए व्रत का पालन करना चाहिए।
व्रत के दौरान सोलह श्रृंगार एक महत्वपूर्ण तत्व है। सिंदूर, मंगलसूत्र, बिंदी, बिछुआ, चूड़ियाँ आदि विवाहित महिलाओं के लिए आवश्यक हैं। महिलाएँ अपने लिए नए सौंदर्य प्रसाधन खरीदती हैं और साथ ही देवी पार्वती को भी अर्पित करती हैं। वे अपने पति और परिवार के अन्य सदस्यों की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं। महिलाएँ आमतौर पर लाल और हरे रंग के कपड़े पहनती हैं। काले और नीले रंग से बचना चाहिए।
हरतालिका तीज की पूजन विधि
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लड़कियों और महिलाओं दोनों को सुबह जल्दी स्नान करना चाहिए।
महिलाएं लाल और हरे रंग के कपड़े पहनती हैं और सोलह श्रृंगार करती हैं।
हरतालिका व्रत और पूजा शुरू करने से पहले व्रत या संकल्प लेना चाहिए।
घर के मंदिर में एक चबूतरे या वेदी पर भगवान गणेश, भगवान शिव और माता पार्वती की हस्तनिर्मित मूर्तियां रखें।
आप हरतालिका पूजा के लिए पंडित को भी बुक कर सकते हैं या स्वयं भी यह पूजा करवा सकते हैं।
अब सबसे पहले भगवान गणेश, भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करें। अब पूजा स्थल को केले के पत्तों और फूलों से सजाएँ और मूर्तियों के माथे पर कुमकुम लगाएँ।
भगवान शिव और देवी पार्वती की षोडशोपचार पूजा शुरू करें। षोडशोपचार पूजा एक 16 चरणों वाली पूजा अनुष्ठान है जो आवाहनम से शुरू होती है और नीरजनम पर समाप्त होती है।
देवी पार्वती के लिए अंग पूजा शुरू करें।
हरतालिका व्रत कथा का पाठ करें।
व्रत कथा पूरी होने के बाद माता पार्वती को सुहाग का सामान अर्पित करें।
व्रत रखने वाले को रात्रि जागरण करना चाहिए। व्रती भक्त पूरी रात भजन-कीर्तन करते हैं। वे विवाहित महिला को दान-कर्म करते हैं और अगली सुबह उसे खाने-पीने की चीजें, श्रृंगार सामग्री, कपड़े, गहने, मिठाई, फल आदि देते हैं।
हरतालिका तीज व्रत में पति भी इन बातों का रखें ध्यान
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हरतालिका तीज व्रत महिलाओं पति के बेहतर स्वास्थ्य और उनकी दीर्घायु के लिए करती हैं। ऐसे में पतियों को भी चाहिए कि अपनी पत्नी के लिए सुहाग का सामान, आभूषण, नए वस्त्र आदि लाकर उन्हें उपहार में दें। ऐसा करने से उनका दांपत्यए जीवन खुशहाली से भरा रहता है।
हरतालिका तीज पतियों को भी घर में तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन भूलकर भी शराब, मांस मछली, अंडा, लहसुन और प्याज का प्रयोग न करें।
हरतालिका तीज व्रत के दिन पतियों को संयम के साथ हर मामले में पत्नी का सहयोग करना चाहिए। इस व्रत में मन, वचन और कर्म की शुद्धता सबसे ज्यादा मायने रखती है।
हरतालिका तीज की कथा
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माँ पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। काफी समय सूखे पत्ते चबाकर ही काटे और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा ही ग्रहण कर जीवन व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुःखी थे।
इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वतीजी के विवाह का प्रस्ताव लेकर माँ पार्वती के पिता के पास पहुँचे जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब बेटी पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वे बहुत दु:खी हो गईं और जोर-जोर से विलाप करने लगीं।
फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वे यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं, जबकि उनके पिता उनका विवाह श्री विष्णु से कराना चाहते हैं। तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गईं और वहाँ एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गईं। माँ पार्वती के इस तपस्वनी रूप को नवरात्रि के दौरान माता शैलपुत्री के नाम से पूजा जाता है।
भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि के हस्त नक्षत्र मे माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।
मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वे अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करतीं हैं। साथ ही यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशी बनाए रखने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है।