दमोह में सरकारी नौकरी का महाघोटाला
फर्जी ST प्रमाण पत्र से सरकारी नौकरी: 'मुड़ा' जाति के लोगों ने 'मुंडा' जनजाति के नाम पर हासिल की नौकरियां, जबलपुर और दमोह में बड़े नाम शामिल।

दमोह/जबलपुर: मध्य प्रदेश के दमोह जिले में सरकारी नौकरियों में एक बड़े फर्जीवाड़े का पर्दाफाश हुआ है। आरोप है कि ‘मुड़ा’ जाति के व्यक्तियों ने आदिवासी समुदाय की ‘मुंडा’ जनजाति के नाम पर जाली दस्तावेज तैयार कर आरक्षित कोटे के तहत सरकारी नौकरियां हथिया ली हैं। इस घोटाले में जबलपुर के पाटन की मुख्य नगर पालिका अधिकारी जय श्री मुड़ा, उनके भाई विक्रम मुड़ा और दमोह कलेक्ट्रेट में पदस्थ क्लर्क जयदीप मुड़ा जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं।
यह सनसनीखेज मामला ऐसे समय में सामने आया है जब दमोह जिला पहले से ही फर्जी डॉक्टरों के मामले से जूझ रहा है। नए खुलासे ने सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं में व्याप्त खामियों और भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को उजागर किया है।
फर्जीवाड़े का तरीका: ‘मुड़ा’ पर बिंदी, बन गए ‘मुंडा’
जांच में सामने आया है कि ‘मुड़ा’ जाति के लोगों ने चालाकी से अपने नाम ‘मुड़ा’ के ऊपर एक बिंदी लगाकर उसे ‘मुंडा’ जैसा दर्शाया और इसी आधार पर फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवा लिए। इन जाली दस्तावेजों के सहारे उन्होंने न केवल महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर नियुक्तियां प्राप्त कीं, बल्कि आरक्षित वर्ग के हक को भी मारा।
जनजाति विभाग का खंडन: दमोह में ‘मुंडा’ का कोई वाजूद नहीं
इस फर्जीवाड़े की पोल तब खुली जब दमोह के जनजाति विभाग ने आधिकारिक तौर पर यह स्पष्ट कर दिया कि जिले में ‘मुंडा’ जाति का कोई भी व्यक्ति निवास नहीं करता है। इसके बावजूद, सैकड़ों की संख्या में लोगों द्वारा इस तरह से जाति परिवर्तन कर सरकारी नौकरी हासिल करने का आरोप है, जो प्रशासन की मिलीभगत या घोर लापरवाही की ओर इशारा करता है।
शिकायतकर्ता सक्रिय, कलेक्टर ने लिया संज्ञान
एक जागरूक शिकायतकर्ता ने इस पूरे फर्जीवाड़े की विस्तृत जानकारी और आरोपियों की सूची दमोह कलेक्टर को सौंपी। मामले की गंभीरता को देखते हुए कलेक्टर ने तत्काल कार्रवाई करते हुए सभी অভিযুক্তों के मूल दस्तावेजों की जांच के आदेश जारी कर दिए हैं। कलेक्टर ने यह स्वीकार किया है कि सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार दमोह में ‘मुंडा’ जाति का कोई अस्तित्व नहीं है, और अब यह जांच की जा रही है कि कैसे ‘मुड़ा’ जाति के लोग ‘मुंडा’ बनकर सरकारी नौकरियों में प्रवेश कर गए।
‘मुड़ा’ समुदाय भी उतरा विरोध में, की कार्रवाई की मांग
इस फर्जीवाड़े का एक अप्रत्याशित पहलू यह है कि ‘मुड़ा’ जाति के कुछ ईमानदार लोग भी इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। उनका कहना है कि जो लोग फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरियां कर रहे हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। उन्होंने यह भी मांग की है कि यदि इन फर्जीवाड़े करने वालों को ‘मुंडा’ जाति का लाभ मिलता है, तो उनके समुदाय के वास्तविक लोगों को भी उसी लाभ का हकदार माना जाए। इस संबंध में आंदोलन कर रहे अरविंद नामक व्यक्ति ने कलेक्टर के समक्ष प्रमाण सहित दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं।
प्रशासन की भूमिका पर सवाल, जांच में खुली पोल की उम्मीद
दमोह जिले में पहले से ही फर्जी डॉक्टरों का मामला सामने आने के बाद यह नया घोटाला प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े करता है। दस्तावेजों के मिलान और सत्यापन में हुई चूक के कारण इतने बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा कैसे संभव हुआ, यह जांच का विषय है। अब देखना यह है कि कलेक्टर सुधीर कुमार कोचर के आश्वासन के बाद प्रशासन इस मामले में कितनी तेजी और निष्पक्षता से कार्रवाई करता है और कितने और ऐसे फर्जी नियुक्तियों का खुलासा होता है। इस घटना ने मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया की विश्वसनीयता को खतरे में डाल दिया है।