अंतिम क्षणों तक चली बागियों को मनाने और प्रेशर में लाने की कोशिशें………….अमित शाह से चर्चा के बाद मोती कश्यप ने लिया नाम वापस
कटनी,यशभारत। आज नाम वापसी के अंतिम क्षणों तक बागियों को मनाने की कोशिशें जारी रहीं। इसके पहले 31 अक्टूबर और 1 नवम्बर को राजनैतिक दलों ने अपने नाराज नेताओं को साथ लाने के लिए सभी तरह के उपाय किए। जानकारी के मुताबिक केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से कल रात हुई चर्चा के बाद आज बड़वारा क्षेत्र से निर्दलीय नामांकन दाखिल करने वाले मोती कश्यप ने कलेक्ट्रेट पहुंचकर नाम वापस ले लिया। सूत्रों के मुताबिक मुड़वारा से निर्दलीय नामांकन दाखिल करने वाले जिला पंचायत के उपाध्यक्ष अशोक विश्वकर्मा भी दोपहर 1 बजे कलेक्ट्रेट पहुंच गए थे। चर्चा थी कि वे भी बड़े नेताओं की समझाईश के बाद नाम वापस लेने आए हैं। इसके पहले इस बार रूठों को मनाने के लिए कांग्रेस की तुलना में भाजपा को अधिक मशक्कत करना पड़ी। सूत्रों के मुताबिक बागियों को मनाने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा और प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव देर रात तक बात करते रहे। उधर दूसरी ओर कटनी चारों सीटों पर निगरानी की जिम्मेदारी अमित शाह ने अपने भरोसेमंद पूर्व केन्द्रीय मंत्री संतोष गंगवार को सौंप रखी है, जो ताजा हालातों से सीधे अमित शाह को अवगत करा रहे हैं।
विधानसभा चुनाव के लिए आज नाम वापसी के लिए 3 बजे तक का समय निर्धारित था, लिहाजा इसके पहले तक पार्टी से नाराज होकर निर्दलीय पर्चा दाखिल करने वालों से अंतिम दौर की बातचीत चलती रही। कांग्रेस को बहोरीबंद में शंकर महतो के साथ छोड़ जाने का मलाल है। हालांकि शंकर बहुत ज्यादा दिन कांग्रेस में नही रह पाए। वे टिकट के लिए ही भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे। यशभारत से बातचीत में उन्होंने साफ कहा भी कि दिग्विजय सिंह ने उन्हें टिकट का आश्वासन दिया था, अब कांग्रेस ने उनके साथ धोखा कर दिया। वैसे कांग्रेस ने शंकर महतो को अपने साथ लाकर बहोरीबंद सीट के समीकरण अपने पक्ष में कर लिए थे। महतो के सपा से चुनाव लडऩे की वजह से कांग्रेस की उम्मीदों को झटका लगा है। बहोरीबंद के अलावा कांग्रेस जिले की बाकी तीन सीटों पर बगावत को रोकने सफल रही। मुड़वारा, बड़वारा और विजयराघवढ़ में किसी बड़े कांग्रेस नेता ने पार्टी से इतर नामांकन दाखिल नही किया। दिखावटी ही सही पर इस चुनाव में कांग्रेस हर सीट पर एकता प्रदर्शित करने में अब तक तो सफल रही है। मुड़वारा और बहोरीबंद में टिकट से नाराज नेताओं ने यशभारत से चर्चा में कहा कि हाईकमान के निर्णय को लेकर उनका गुस्सा अपनी जगह है लेकिन प्रदेश में इस बार कांग्रेस की सरकार बनने की संभावनाओं के चलते कोई नेता बगावत करने का साहस नही कर पा रहा। सबको पता है इस बार नही तो फिर कभी नही। इसलिए कांग्रेस के तमाम नेता और कार्यकर्ता प्रदेश में कांग्रेस की वापसी के लिए जुटे हुए हैं, प्रत्याशी कोई भी हो। उधर भाजपा में इस बार हालात इसके उलट हैं। 18 साल की सत्ता के साइड इफेक्ट बड़े पैमाने पर कार्यकर्ताओं को नाराजगी और खुली बगावत के रूप में सामने आ रहे हैं। चुनाव की घोषणा के पहले ही जिले में वरिष्ठ नेताओं द्वारा भाजपा छोडऩे का सिलसिला शुरू हो चुका था जो मुड़वारा और बड़वारा सीट पर बगावत का रूप में सामने आ गया। समय से पहले नया चेहरा सामने लाकर इस बार भाजपा बड़वारा सीट कांग्रेस के कब्जे से बाहर निकालने की योजना पर काम कर रही थी लेकिन पूरे प्रदेश में माझी समाज का नेतृत्व करने वाले पूर्व मंत्री मोती कश्यप ने पार्टी की उम्मीदों को झटका दे दिया। सूत्र बताते है कि कश्यप को मनाने के प्रयास अंत तक जारी रहे। जिलाध्यक्ष से लेकर भोपाल के बड़े नेता तक कश्यप को मनाने की कवायद में जुटे रहे लेकिन उनकी ओर से साफ सन्देश दे दिया गया कि सवाल उनके चुनाव लडऩे का नही बल्कि माझी समाज की अस्मिता का है, जिसके महत्व को बीजेपी ने दरकिनार कर दिया। अंत में अमित शाह को स्वयं मोर्चा सम्हालाना पड़ा। सूत्र बताते हैं कि कल रात उन्होंने मोती कश्यप से बात की तथा समाज से जुड़े विषयों को चुनाव के बाद हल करने का आश्वासन दिया जिसके बाद वे मान गए। …………. मुड़वारा में दबाव की राजनीति आई काम, दोपहर 1 बजे अशोक भी कलेक्ट्रेट पहुंचे सूत्र बताते हैं कि नाम वापस लेने के लिए बीजेपी के एक बागी पर देर रात तक दबाव डालने का सिलसिला चलता रहा। भोपाल के बड़े पार्टी नेता भी इसमें सक्रिय रहे। स्थानीय स्तर पर भी प्रेशर बनाने की कोशिशें जारी रहीं। उनके अलावा दो और बागियों को भी पार्टी नाम वापसी के लिए मनाती रही। एक प्रत्याशी ने तो भोपाल के एक बड़े नेता से साफ ही कह दिया कि अभी भी वक्त है, बी फार्म उन्हें अलाट कर दिया जाए। जानकारी के मुताबिक निर्दलीय रूप से नामांकन दाखिल करने वाले संतोष शुक्ला, अशोक विश्वकर्मा और ज्योति विनय दीक्षित भी आपस मे संपर्क में रहे और पिछले दो दिन में इनके बीच कई बार इस पर मंथन हुआ कि तीनों में से कोई एक ही चुनाव लड़े, बाकी दो उनके समर्थन में नाम वापस ले लें । बताया जा रहा है कि दोपहर 1 बजे अशोक विश्वकर्मा कलेक्ट्रेट पहुंच गए थे। खबर थी की वे भी बड़े नेताओं से हुई बातचीत के बाद मैदान से हट जाएंगे।