23 करोड़ बचाने अब सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाएगा नगर निगम, 22.6 करोड़ का अवार्ड पारित होने का मामला
कटनी। हाईकोर्ट में मजबूती से अपना पक्ष न रखने के कारण नगर निगम स्टेशन चौराहे पर स्थित व्यवसायिक कांप्लेक्स के मामले में 22.6 करोड़ रुपए का अवार्ड पारित करने से संबंधित केस हार चुका है। हाईकोर्ट ने नगर निगम की अपील को खारिज करते हुए प्रमोटर खुशीराम एंड कंपनी के पक्ष में फैसला दे दिया है। नगर निगम अब हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी में है। उल्लेखनीय है कि रेस्ट हाउस के स्थान पर व्यवसायिक कांप्लेक्स बनाने का ठेका वर्ष 2001 में खुशीराम एंड कंपनी की साझेदारी फर्म को मिला था। इसके पहले लोक निर्माण विभाग ने यह बेशकीमती जमीन नगर निगम को सौंपी थी। बदले में प्रमोटर ने माधवनगर में सर्किट हाउस बनाकर दिया था। नगर निगम के अधिकारियों ने प्रोजेक्ट के चलते ड्राइंग डिजाइन में अनेक बदलाव किए। इसके अलावा क्षेत्रफल भी कम निकला, इसका फायदा बिल्डर को न्यायालय में मिला।
सूत्रों के मुताबिक प्रमोटर द्वारा नगर निगम के विरुद्ध न्यायालय में लगभग 23 करोड़ की क्षतिपूर्ति से संबंधित केस दायर किया गया, जिसमे न्यायालय ने 22.6 करोड़ का क्षतिपूर्ति अवार्ड पारित भी कर दिया। इस आदेश के आते ही नगर निगम में हड़कंप की स्थिति बन गई। ठेका कंपनी को मिले लाभ के विरुद्ध नगर निगम ने हाईकोर्ट की शरण ली। बिल्डर और नगर निगम के बीच मध्यस्थता के लिए अदालत ने आर्बिटेटर की नियुक्ति की। बताया जाता है कि एमसीके के प्रतिदावे को अस्वीकार करते हुए अवार्ड पारित किया गया था। नगर निगम हाईकोर्ट में अवार्ड के विरुद्ध केस तो ले गई लेकिन उसके अफसर और अधिवक्ता मजबूती से अपना पक्ष नही रख सके, लिहाजा हाईकोर्ट में नगर निगम की अपील को डिसमिस कर दिया। हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद नगर निगम पर बड़ा संकट आ खड़ा हुआ है। फैसले को मानते हुए उसे प्रमोटर को 22.6 करोड़ रुपया मय ब्याज के अदा करने होंगे और नगर निगम ने यदि ऐसा कदम उठाया तो उसकी वित्तीय स्थिति चरमरा जायेगी। वैसे भी वर्तमान में एफडी तोड़कर ठेकेदारों का पेमेंट करने और कर्मचारियों की तनख्वाह बांटने के मामले में निगम प्रशासन पर परिषद की बैठक में उंगलियां उठ चुकी है। ताज्जुब तो इस बात पर है कि हाईकोर्ट में पक्ष रखने के मामले में इतना लचर रवैया कैसे रहा। अधिवक्ताओं और अधिकारियों की विरोधी पक्ष से मिलीभगत से इंकार भी नही किया जा सकता।
दुकान विक्रय करने का अधिकार था
व्यवसायिक कांप्लेक्स बनाने के बाद शर्तों के मुताबिक प्रमोटर को दुकानें विक्रय करने का अधिकार था। इसके पहले जब टेंडर की प्रक्रिया पूरी होने के बाद जब नगर निगम ने फाइल एप्रूवल के लिए राज्य शासन के पास भेजी तो पता चला टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से ड्राइंग डिजाइन ही स्वीकृत नहीं है । शासन द्वारा टीएनसी को भेजी ड्राइंग डिजाइन में बाद में नियमो के मुताबिक बदलाव हुआ और इसका फ़ायदा प्रमोटर को इस केस में न्यायालय में मिला। यह कांप्लेक्स नगर निगम की बेशकीमती संपत्तियों में से एक है, लेकिन वर्तमान स्थिति में यह निगम के लिए गले की फांस बन चुका है।
सर्वोच्च न्यायालय जायेंगे – महापौर
इस सिलसिले में मेयर प्रीति सूरी का कहना है कि हाईकोर्ट के फैसले को नगर निगम द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जायेगी। उन्होंने इस संबंध में पत्र लिखा है और आयुक्त से सारे पहलुओं पर चर्चा की है। महापौर ने कहा कि किसी भी कंडीशन में नगर निगम का नुकसान नहीं होने दिया जाएगा।
कमेटी गठित हुई थी, पर अधिकारियों ने किया अनसुना – मिथलेश
इस संबंध में वरिष्ठ कांग्रेस पार्षद मिथलेश जैन ने कहा कि नगर निगम परिषद द्वारा अपनी बैठक दिनांक 28/ 06/2011 के अन्य विषय निर्णय क्रमांक 18 में लिए गए निर्णय अनुसार कटनी स्टेशन के बाहर स्थित राजीव गांधी शॉपिंग कांप्लेक्स के संबंध में कमेटी गठित की गई थी जिसमें उन्होंने एवं अन्य पार्षदों ने संपूर्ण जांच करके अपना प्रतिवेदन एवं अनुशंसा नगर निगम को दी थी, लेकिन इस प्रतिवेदन और अनुशंसा पर भी अधिकारियों द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई और इसके परिणाम स्वरूप नगर निगम न्यायालय से केस हारती गई और नगर निगम के विरुद्ध 22 करोड़ 60 लाख रुपया ठेकेदार को भुगतान करने का अवार्ड निर्णय पारित किया गया है। यदि ऐसा हो गया और राशि का भुगतान करना पड़ा तो नगर निगम का भवन बिकने की स्थिति में आ जाएगा।