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नर्मदा नदी में पाई जाने वाली महाशीर मछली के अस्तित्व पर मंडरा रहा संकट : नर्मदा में यह पहले अन्य मछलियों की तुलना में 30 फीसदी थी जो अब घटकर 2 फीसदी रह गई

मण्डला lमछली जलीय पर्यावरण पर आश्रित जलीय जीव है तथा जलचर पर्यावरण को संतुलित रखने में इसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है जिस पानी में मछली नहीं हो तो निश्चित ही उस पानी की जल जैविक स्थिति सामान्य नहीं है।

 

 

वैज्ञानिकों द्वारा मछली को जीवन सूचक (बायोइंडीकेटर) माना गया है। विभिन्न जलस्रोतों में चाहे तीव्र अथवा मन्द गति से प्रवाहित होने वाली नदियां हो, चाहे प्राकृतिक झीलें, तालाब अथवा मानव-निर्मित बड़े या मध्यम आकार के जलाशय, सभी के पर्यावरण का यदि सूक्ष्म अध्ययन किया जाय तो निष्कर्ष निकलता है कि पानी और मछली दोनों एक दूसरे से काफी जुड़े हुए हैं। पर्यावरण को संतुलित रखने में मछली की विशेष उपयोगिता है।नदियों के अलग- अलग क्षेत्र अलग – अलग प्रकार की मत्स्य प्रजातियों के लिए आवास प्रदान करता है। ट्राउट प्रजाति की मछली नदी के उंचे इलाकों में पनपती है, जबकि कैटफिश प्रजाति (पाढीन) धीमी गति से बहने वाली पानी के तल के साथ दुबकी रहती है। सैल्मन जैसी प्रवासी मछलियां प्रजनन के लिए ठंडे, पथरीली तल पर तैरती है। पारिस्थितिकी तंत्र में छोटी मछली भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बांध, पुलिया या अन्य अवरोध प्रवासी मछलियों को उनके ऐतिहासिक प्रजनन स्थलों पर लौटने से रोकते हैं। जब मछलियां अपने निवास स्थान तक नहीं पहुंच पाती हैं तो वे प्रजनन नहीं कर पाती हैं और अपनी आबादी बढ़ा नहीं पाती है। बांध के नीचे की ओर बहनें वाले पानी और तलछट की की मात्रा भी बदल जाता है, जिससे बांध के उपर और नीचे मछलियों के रहने की स्थिति बदल जाती है।

 

अमरकंटक से निकलकर खंभात की खाङी में गिरने वाली नर्मदा नदी पर गत दशकों में अलग- अलग बांध बनने के बाद इसके पानी का प्राकृतिक बहाव में रुकावट आई है, जिससे मध्यप्रदेश की राजकीय मछली महाशीर के अस्तित्व पर संकट आ गया है। इस महाशीर मछली को “टाईगर ऑफ नर्मदा” भी कहा जाता है। महाशीर मछली प्रवाहित स्वच्छ जल धाराओं में में प्रजनन करती है। नर्मदा में लगातार होने वाला रेत खनन, नदियों में मछली की अवैध शिकार, मछलियों को पकड़ने के लिए विस्फोटकों का प्रयोग और बनने वाले बांध भी महाशीर की संख्या घटने की एक प्रमुख वजह है।

 

 

नर्मदा में यह पहले अन्य मछलियों की तुलना में 30 फीसदी थी जो अब घटकर 2 फीसदी रह गई है। विशेषज्ञ बताते हैं कि जैवविविधता के लिहाज से नर्मदा में महाशीर का होना बेहद जरूरी है। 26 सितम्बर 2011 में महाशीर को राज्य में संरक्षण प्रदान किया गया है। वर्ष 2012 में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आई यू सी एन) द्वारा महाशीर को विलुप्त घोषित किया गया है। इन मछलियों की खासियत यह है कि ये पत्थरों में लगने वाली काई और पानी की गंदगी खाकर नदी को साफ रखने में अहम भूमिका निभाती है।मध्यप्रदेश प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड हर छह माह में नर्मदा के प्रदुषण का आंकलन करता है। आंकलन में नर्मदा जल को कई स्थानों पर “ए” ग्रेड और बिना किसी उपचार के पीने योग्य बताया गया है। लेकिन उक्त जल में भी महाशीर का अस्तित्व नहीं बच पाया है।यदि जल वाकई साफ होता तो महाशीर के अंडे पानी में जरूर नजर आते। प्रदेश में मछलियों की 215 प्रजातियां हैं। इनमें से 17 पर विलुप्ति का खतरा है।

 

सीवेज से प्रदुषित जल निकायों में मछलियों की मौत का कारण आक्सीजन की कमी होती है।मिडिया रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र के पंचगंगा एवं कृष्णा नदी, मुम्बई के ऐतिहासिक बाणगंगा तालाब, तामिलनाडु के कावेरी एवं अडयार नदी, कर्नाटक की उदयावरा एवं फाल्गुनी नदी, केरल की पेरियार नदी, दिल्ली- हरियाणा सीमा के नजफगढ़ नाले, यमुना नदी के बागपत एवं आगरा क्षेत्र, गंगा नदी के हल्द्वानी वाराणसी कानपूर, जम्मू कश्मीर के बसंतर नदी, मध्यप्रदेश के बेतबा और मुरैना की कुवांरी नदी में हजारों की संख्या में मछलियां मृत पाई गई।ये कुछ उदाहरण मात्र हैं। इसलिए प्रत्येक नदियों के जल प्रवाह को अविरल और निर्मल रखने और गर्मी के मौसम में भी सुखने नहीं देना है यह सुनिश्चित करना होगा।नदी के उदगम स्थल से समुद्र तक पहुंचने वाली नदी को हर प्रकार के प्रदुषण से मुक्त रखा जाए। इस हेतु नदी घाटी के हर क्षेत्र के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट जल्द से जल्द तैयार करना तथा शहरी, ग्रामीण और औधोगिक क्षेत्र का अपशिष्ट और खेती में उपयोग किया जाने रसायनिक खाद, कीटनाशक दवाई आदि को नियंत्रित करना होगा।नदी जल, भूजल, जलीय जीव आदि पर असर लाने वाला अवैध रेत खनन पर संपुर्ण प्रतिबंध लगाना होगा। नदी और नदी घाटी के किसी भी संसाधनों को प्रभावित करने वाली कोई भी विकास परियोजनाओं का सर्वांगीण अध्ययन और निष्पक्ष मुल्यांकन किया जाना आवश्यक है।

इन्होंने कहा….. 

नदियों को संरक्षित करने के लिए जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन‌एपीएम) का नदी घाटी मंच द्वारा “नदी संरक्षण, सुरक्षा और पुनर्जीवन अधिनियम” ड्राफ्ट प्राईवेट बिल आगामी संसद के शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत करने की तैयारी चल रही है।

राज कुमार सिन्हा

बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ

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