जेएनकेविवि की बड़ी उपलब्धिः 8 किस्म की गेहूं, धान, रामतिल और जई की फसल विकसित
रोग प्रतिरोधी और कम सिंचित वाले क्षेत्रों में आसानी हो सकेंगी ये किस्में
जबलपुर, यशभारत। जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय ने गेहूं, धान, रामतिल, जई की 8 किस्मों को विकसित किया है। ये किस्में रोग प्रतिरोधी हैं और कम सिंचित वाले क्षेत्रों में भी आसानी से इनकी फसल हो सकेगी। 120 से 125 दिनों में ये फसलें होंगी। विश्वविद्यालय की इन 8 नई किस्मों को भारत सरकार के कृषि मंत्रालय ने भी अधिसूचित कर दिया है। अब इसे ब्रीडर योजना के तहत बीज उत्पादन वाली इकाइयों को दिया जाएगा।
कुलपति डाॅ. पीके बिसेन के अनुसार कृषि वैज्ञानिकों ने अनाज की 8 नई किस्में विकसित की हैं। इनमें से दो किस्में अधिक न्यूट्रीशन वाली हैं। जबकि 4 किस्में सिर्फ एमपी को ध्यान में रखकर विकसित की गई हैं। आदिवासियों के लिए लाभ की फसल माने जाने वाली रामतिल की तीन किस्मों को विकसित किया गया है। एक नेशनल किस्म है, तो दो किस्में मप्र और छत्तीसगढ़ को ध्यान में रखकर विकसित की गई हैं।
पशु चारे के तौर पर जई
जेओ 10-506ः उड़ीसा, बिहार, झारखंड, पूर्वी यूपी, असम, मणिपुर राज्यों के लिए ये उपयुक्त है। हरा चारा और बीजों के लिए इसकी बुआई कर सकेंगे। 90 से 100 दिन हरा चारा के रूप में प्रयोग करें। 225 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा का उत्पादन होगा। एक कटिंग के बाद छोड़ दें। 10 से 11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर जई भी तैयार हो जाएगी।
जेओ05-304ः मप्र, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, बुंदेलखंड राज्यों के लिए ये मुफीद होगा। इसकी कटिंग भी 90 से 100 दिन में कर सकते हें। पहली कटिंग 55 से 60 दिन में कर पाएंगे। हरा चारा प्रति हेक्टेयर 560 से 600 क्विंटल प्राप्त कर सकते हैं। इसे खिलाने से पशु दुग्ध उत्पादन और फैट दोनों बढ़कर मिलेगा।
गेहूं की दो किस्मों का विकास किया
एमपी 1323- पूरे प्रदेश में इसकी बुआई हो सकेगी। उत्तम उपज, रोग प्रतिरोधक, अधिक प्रोटीन होगा। औसत पैदावार 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होगी। 125 दिन में ये तैयार हो जाएगा।
एमपी 1358- अधिक उपज प्राप्त होगी। औसत पैदावार 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होगी। इसमें प्रोटीन 12ः से अधिक होगा। आयरन की मात्रा 406 पीपीएम होगी। गेहूं की ये फसल भी 125 से 130 दिन में तैयार हो जाएगी।
धान की एक किस्म
जेआर10ः कम सिंचाई में अधिक उपज किसान प्राप्त कर सकेंगे। पूरे एमपी में इसकी रोपाई कर सकेंगे। इसके चावल पतले और सुगंधित होंगे। 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होगा। 120 दिन में ये धान तैयार हो जाएगा।
रामतिल की तीन किस्में
जेएनएस 521ः असिंचित और सिंचित दोनों क्षेत्रों में खरीफ और रबी में इसकी बुआई कर सकेंगे। ये शीघ्र पक जाएंगी। 100 से 110 दिन में ये पक कर काटने लायक हो जाएगी। 5 से 6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर इसका उत्पादन होता है। ये आदिवासी बेल्ट में बोया जाता है। वहां घी के विकल्प के तौर पर इसका प्रयोग करते हैं। 80 रुपए प्रति किलो की दर से इसकी बिक्री होती है।
जेएनएस 2015-9ः मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ को ध्यान में रखकर ये किस्में विकसित की गई हैं। सिंचित और असिंचित क्षेत्र में मध्य खरीफ के समय इसकी बुआई करें। 100 दिन में ये तैयार हो जाएगी। इससे जेएनएस-9 की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक उपज और 9 प्रतिशत अधिक तेल की मात्रा मिलेगी। पौधे छोटे होंगे और गिरेंगे नहीं। कई गंभीर बीमारी और कीटों से प्रतिरोधी किस्म है। 541 किलो प्रति हेक्टेयर उत्पादन होगा।
जेएनएस 2016-1115ः इसे देश के किसी भी हिस्से में बो सकेंगे। सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में इसकी बुआई हो सकेगी। मध्य खरीफ में इसकी बुआई कर सकेंगे। इससे अधिक उपज प्राप्त होगी। रामतिल के साथ किसान मधुमक्खी पालन भी कर पाएंगे। इससे एक से दो क्विंटल जहां उत्पादन बढ़ जाएगा। वहीं तीन से चार हजार रुपए प्रति एकड़ प्राप्त राशि भी प्राप्त कर पाएंगे।